सीटों पर बात करते करते आखिर क्यों मायावती ने कांग्रेस को दे दिया झटका

By नीरज कुमार दुबे | Sep 22, 2018

क्या बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा की राह आसान कर दी है। दरअसल यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि मायावती ने कांग्रेस पार्टी के साथ चली लंबी वार्ताओं के बाद 'एकला चलो' की राह पकड़ ली। भाजपा इन तीनों राज्यों में अभी सत्ता में है और अगर बसपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन हो जाता तो यह सत्तारुढ़ पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन सकता था। कांग्रेस आलाकमान खुद भी मायावती के इस फैसले से हतप्रभ है क्योंकि उसके मुताबिक तीनों राज्यों में सीटों के लिए चल रही बातचीत अभी जारी थी और अचानक ही मायावती ने छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के साथ गठबंधन करने, मध्य प्रदेश में अकेले लड़ने और राजस्थान में अपना मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। कांग्रेस अब महागठबंधन बनाने के प्रति आशंकित नजर आ रही है।

 

सुनहरी तसवीर पड़ गयी धुंधली

 

जिन लोगों ने कर्नाटक में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण में सोनिया गांधी और मायावती की एक दूसरे के बेहद करीब वाली तसवीर देखकर भविष्य के बारे में सुनहरी भविष्यवाणी कर दी थी आज वह लोग सकते में हैं क्योंकि उन्होंने इन तसवीरों के राजनीतिक कैप्शन बेहद लुभावने दिये थे। दरअसल मायावती एक साथ दो रणनीति पर काम करती हैं। आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर भी वह यही काम कर रही थीं। कांग्रेस के साथ ही वह अन्य दलों के संपर्क में भी थीं। हालांकि मायावती यह पहले ही कह चुकी थीं कि सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही समझौता होगा। उनके इस बयान पर मात्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ही प्रतिक्रिया दी थी और कहा था कि भाजपा को रोकने के लिए वह दो कदम पीछे हटने को तैयार हैं लेकिन कांग्रेस ने मायावती के बयान को शायद हल्के में ले लिया था।

 

क्या महागठबंधन बनाने के कांग्रेसी प्रयास अब भी सफल हो पाएंगे?

 

कांग्रेस का हालांकि प्रयास यही है कि देश स्तर पर भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बना कर चुनाव लड़ा जाये और चुनाव परिणाम बाद जिस दल के सर्वाधिक सांसद हों उसके नेता को प्रधानमंत्री बनाया जाये। लेकिन कांग्रेस के साथ कई प्रमुख विपक्षी दल इसलिए आने को तैयार नहीं हैं क्योंकि यह कभी ना कभी कांग्रेस के साथ रह चुके हैं और पार्टी के बारे में ज्यादा अच्छी राय नहीं रखते। तृणमुल कांग्रेस वैसे तो विभिन्न राष्ट्रीय मुद्दों पर कांग्रेस के साथ खड़ी दिखती है लेकिन उसके गठबंधन के तले आने को तैयार नहीं है। समाजवादी पार्टी भी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने पर नुकसान उठा चुकी है। बहुजन समाज पार्टी ने तो अब साफ कर दिया है कि वह विधानसभा चुनावों में अकेले जा रही है। इसी प्रकार कई अन्य विपक्षी दल हैं जोकि कल तक महागठबंधन की बातें कर रहे थे लेकिन आज कह रहे हैं कि चुनावों बाद ही गठबंधन बने तो अच्छा रहेगा।

 

भाजपा को क्यों हुआ फायदा ?

 

भाजपा ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में राहत की सांस इसलिए महसूस की है क्योंकि इन तीनों ही राज्यों में बसपा को पिछले चुनावों में 3 से 6 फीसदी तक मत मिले थे। राज्यवार आंकड़ों पर निगाह डालें तो मध्य प्रदेश में भाजपा को पिछले विधानसभा चुनावों में लगभग 45 फीसदी और कांग्रेस को 37 फीसदी मत मिले थे जबकि बहुजन समाज पार्टी सवा 6 फीसदी तक मत हासिल करने में सफल रही थी। अब अगर कांग्रेस और बसपा के मत मिल जाते तो निश्चित रूप से भाजपा सत्ता से बाहर हो जाती। अब बसपा राज्य में क्षेत्रीय दल गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और शायद समाजवादी पार्टी के साथ भी गठबंधन कर सकती है। बसपा ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए अपना एक और कदम आगे बढ़ाते हुए अपने 22 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान भी कर दिया है जिसमें तीन निवर्तमान विधायक शामिल हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की प्रदेश इकाई हालांकि बसपा के साथ किसी प्रकार के गठबंधन के खिलाफ थी लेकिन कांग्रेस आलाकमान इस बात का पूरा प्रयास कर रहा था कि यह गठबंधन हो जाये।

 

जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है तो यहां तो पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के बीच बेहद कड़ी टक्कर हुई थी और कांग्रेस तथा भाजपा के बीच सिर्फ एक फीसदी मतों का ही अंतर था जबकि बहुजन समाज पार्टी 4 फीसदी तक मत हासिल करने में सफल रही थी। माना जा सकता है कि यदि कांग्रेस और बसपा का गठबंधन हो जाता तो भाजपा के लिए सत्ता में वापसी की राह बेहद मुश्किल हो जाती। अब बसपा ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी के साथ गठबंधन किया है और उन्हें ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित कर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। यह गठबंधन सत्ता में पहुँच पायेगा या नहीं यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे लेकिन इसने एक काम तो कर ही दिया है और वह यह है कि भाजपा विरोधी मत जो कांग्रेस को मिलने वाले थे उसमें सेंध लगा दी है। अब इस बात का सीधा फायदा भाजपा उठा सकती है।

 

वहीं राजस्थान में भी कुछ सीटों पर बसपा प्रभावी भूमिका में है और राजस्थान में अशोक गहलोत की सरकार के लिए तो एक बार बसपा के विधायक तारणहार भी बन चुके हैं। लेकिन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट बसपा के साथ गठबंधन करने के एकदम खिलाफ हैं जबकि गहलोत चाहते हैं कि यह गठबंधन हो। अब बसपा ने यहां भी तय कर लिया है कि वामपंथी दलों के साथ मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ा जायेगा। यदि ऐसा होता है तो फिर से एक बार भाजपा विरोधी मतों का बंटवारा होगा जिससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।

 

बहरहाल, मायावती का प्रयास है कि विधानसभा चुनावों में एक बड़ी ताकत बनकर उभरा जाये और मत प्रतिशत बढ़ाने के साथ ही सीटों की संख्या बढ़ायी जाये। विधानसभा चुनावों बाद यदि बसपा किसी भी राज्य में निर्णायक भूमिका में आ गयी तो लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस तथा अन्य दलों से 'राजनीतिक सौदेबाजी' प्रभावी रूप से हो सकेगी। बसपा की तीन राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करती है तो उत्तर प्रदेश में भी सीटों के बंटवारे में सर्वाधिक सीटें हासिल करने का दबाव बनाने में सफल हो सकती है।

 

-नीरज कुमार दुबे

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