सत्ता के सौदागरों के लिए गंगा केवल चुनावी जुमला बनकर रह गई है

By देवेन्द्रराज सुथार | Oct 15, 2018

गंगा की अविरलता व निर्मलता सुनिश्चित करने के लिए गंगा एक्ट की मांग को लेकर पिछले 111 दिनों से अनशन कर रहे गंगा पुत्र स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद उर्फ जीडी अग्रवाल का निधन वर्तमान सत्ता की निर्लज्जता का जीता जागता प्रमाण है। गौरतलब है कि सम्पूर्ण गंगा अविरल, निर्मल बनाने के लिए भारत सरकार ने एक बहुत बड़ी कार्य योजना भारत के सात प्रौद्योगिकी संस्थानों द्वारा बनवाई थी, लेकिन उस योजना के अनुसार गंगा में काम नहीं हो रहा था। इसलिए प्रो. जीडी अग्रवाल दुःखी होकर आमरण अनशन पर बैठे थे। इसके लिए उन्होंने इस साल 13 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था, जिसका कोई जवाब नहीं आने पर 22 जून से उन्होंने अपना आमरण अनशन शुरू कर दिया था। उन्होंने गंगा रक्षा के संबंध में एक ड्राफ्ट तैयार किया था, जिसके आधार पर एक्ट बनाने के लिए सरकार को 9 अक्टूबर तक का समय दिया था। जब यह मांग पूरी नहीं हुई तो 10 अक्टूबर से उन्होंने जल त्याग कर दिया। इसके बाद उन्हें हिरासत में लेकर जबरन ऋषिकेश के एम्स में भर्ती करा दिया गया था।

 

मुजफ्फरनगर के कांधला में 20 जुलाई 1932 को जन्मे जीडी अग्रवाल यानी गुरुदास अग्रवाल कोई आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं थे बल्कि वे आईआईटी कानपुर में प्रोफेसर रह चुके थे और गंगा को बचाने की मुहिम में लंबे समय से लगे हुए थे। इसी क्रम में उन्होंने 2011 में संन्यास लिया और स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद बन गए। उनका यह कोई पहला अनशन नहीं था बल्कि वे इससे पहले भी 2008 व 2009 में 380 मेगावाट की भैरोघाटी, 480 मेगावाट की पाला-मनेरी जल विद्युत व लोहारीनाग-पाला परियोजना के लिए अनशन कर चुके थे, जिनमें उन्हें सफलता भी हासिल हुई थी। स्वामी सानंद का मानना था कि जैसे पहले गंगा एक्शन प्लान के अंतर्गत अरबों रूपए खर्च करने के बावजूद गंगा की स्थिति में कोई सुधार नहीं बल्कि बिगाड़ ही हुआ है, उसी तरह राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण व 2020 तक स्वच्छ गंगा मिशन के तहत भी अरबों रूपए खर्च हो जाएंगे और हमारे सामने पछताने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं बचेगा।

 

सवाल है कि सरकार को गंगा के लिए एक्ट बनाने में आखिर परेशानी क्या थी। क्यों 86 साल के एक वृद्ध को अपनी बात सुनाने के लिए सत्ता के दरवाजे पर सिर पटक-पटककर मरना पड़ा। गंगा को न तो अध्यात्म से मतलब है न ही भौतिकवाद से। वह तो दोनों की ही जीवनरेखा है। अफसोस यह है कि 111 दिनों की भूख हड़ताल के बाद भी उन मुद्दों की तरफ वे लोगों का ध्यान नहीं खींच सके, जिसके लिए उन्होंने भूख हड़ताल की हुई थी। यह हमारी असंवेदनशीलता ही कही जाएगी। क्या कभी गंगा साफ हो पाएगी या फिर हम झूठ-मूठ का 'नमामि गंगे' और 'गंगे ! तव दर्शनात् मुक्ति' ही रटते रह जाएंगे। एक शोध के मुताबिक गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा गिर रहा है। उत्तर प्रदेश में होने वाली 12 फीसदी बीमारियों की वजह गंगा का प्रदूषित जल है। 1985 में पहली बार गंगा एक्शन प्लान बनाया गया। 15 वर्ष में इस पर 901 करोड़ रुपए खर्च हुए। 1993 में कुछ और नदियों को मिलाकर गंगा एक्शन प्लान-2 शुरू किया गया। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना बनी। 1995 से लेकर 2014 तक 4168 करोड़ रुपए खर्च करने का दावा है, लेकिन यदि सच में यह काम हुआ है तो वह गया कहां। सच तो यह है कि सत्ता के सौदागरों के लिए गंगा केवल एक चुनावी जुमला बनकर रह गई है। असल में गंगा की चिंता किसी को नहीं है?

 

-देवेन्द्रराज सुथार

प्रमुख खबरें

Vastu Tips: घर की नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए रोजाना करें ये काम, घर आएगी सुख-समृद्धि

Shaniwar Vrat Vidhi: इस दिन से शुरू करना चाहिए शनिवार का व्रत, शनि की ढैय्या और साढ़ेसाती से मिलेगी मुक्ति

चार करोड़ रुपये से अधिक कीमत वाले घरों की बिक्री मार्च तिमाही में 10 प्रतिशत बढ़ीः CBRE

Chhattisgarh : ED ने चावल घोटाले में मार्कफेड के पूर्व MD Manoj Soni को किया गिरफ्तार