आजाद भारत की सबसे ताकतवर दलित नेता, भव्यता से भरा रहा जिनका जीवन

By अभिनय आकाश | Jan 14, 2021

ये 1977 की बात है। सर्द वाली दिसंबर की रात जिसकी गवाह बनी। घड़ी की सुईंयां एक दूसरे को छूने को बेकरार थीं, लेकिन इसमें एक घंटे का वक्त शेष रह गया था। भारतीय डाक विभाग के तृतीय श्रेणी के एक कर्मचारी प्रभुदयाल के घर पर दो लोगों की दस्तक होती है। दरवाजा खोलने पर प्रभुदयाल के सामने गले में मफलर लगाए, लगभग गंजा सा एक अधेड़ उम्र का शख्स खड़ा था। उसकी नजरें किसी को तलाश रही थीं, और जब निगाह मनचाहें शख्स पर पड़ी तो मुख से फूट उठा बहुत पढ़ाई कर रही हो, इतना पढ़कर क्या करोगी? लड़की ने कहा मैं आईएएस बनना चाहती हूं ताकि अपने समाज के लोगों का भला कर सकूं। जिसके जवाब उस अधेड़ उम्र के नेता ने कहा-तुम गलत सोच रही हो। तुम आईएएस बनकर क्या करोगी? मैं तुम्हें ऐसा नेता बना सकता हूं जिसके पीछे एक नहीं बल्कि दर्जनों कलेक्टर हाथ बांधे खड़े रहेंगे। तभी तुम सही मायने में अपने लोगों के ज्यादा काम आ सकती हो। 

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 उस लड़की ने इस बात पर एक दिन सोचा दो दिन सोचा फिर आखिरकार निर्णय लिया। अपने रास्ते  को सिविल सर्विस की तैयारी से एक मिशन की ओर ले जाने का निर्णय। बेटी के इस निर्णय से उसके पिता प्रभुदयाल नाराज हुए। पिता-पुत्री के बीच तकरार भी हुई और फिर एक दिन पिता प्रभुदयाल ने दो टूक कह दिया कि या तो तुम सिविल सेवा की तैयारी करो या फिर ये घर छोड़ दो। अपने कुछ कपड़े और जमा पूंजी को एकत्रित कर उस लड़की ने कहा कि ठीक है फिर मैं घर छोड़ती हूं और चली आई दिल्ली के करोलबाग स्थित राजनीतिक पार्टी के दफ्तर। आज की कहानी है राजनीति के एक ऐसे किरदार की जिसने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत ही बदलाव की बयार पर सवार होकर आई पार्टी के ही बैनर तले बुलाई सभा में उन्हीं के दावों की धज्जियां उड़ा कर की। जिसके तीखे तेवर और वाद-विवाद की शैली ने उस वक्त के बामसेफ नेता कांशीराम को आधी रात दस्तक देने पर मजबूर कर दिया। बात उस राजनीति के ऐसे माहिर खिलाड़ी की जिसके बारे में माना जाता रहा है कि उसकी धमक को भारतीय राजनीति में मौजूद किसी भी हुक्मरानों के द्वारा सिरे से खारिज करने या नजरअंदाज करना मुश्किल है। आज की कहानी आजाद भारत की सबसे ताकतवर दलित नेता मायावती की करेंगे। 

मायावती का जन्म 15 जनवरी 1956 को दिल्ली के सुचेता कृपलानी अस्पताल में हुआ। मायावती के पिता डाक विभाग में तृतीय श्रेणी के कर्मचारी थे। मायावती के छह भाई और दो बहनें हैं। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सरकारी विद्यालय से की और इसके बाद 1975 में कालिंदी काॅलेज से बीए की डिग्री ली। 1976 में उन्होंने गाजियाबाद के वीएमएलजी काॅलेज से बीएड की और पड़ोस के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और इसके साथ ही आईएएस की तैयारी भी करने लगी। 1977 के सितंबर की बात है। उस वक्त मायावती दिल्ली विश्वविद्यालय से लाॅ कर रही थीं। बदलाव की बयार पर सत्ता में आई जनता पार्टी की सरकार ने दिल्ली के कासांस्टिट्यूशन क्लब में जाति तोड़ो नाम से तीन दिवसीय सम्मेलन कर रहे थे। इस सम्मेलन का संचालन केंद्रीय मंत्री राजनारायण कर रहे थे। वही राजनारायण जिन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा और उन्हीं के गढ़ रायबरेली से हराया भी। ये राजनारायण ही थे जिनकी याचिका की वजह से इंदिरा गांधी का निर्वाचन इलाहबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। राजनारायण मंच से दलित हितों की बात कर रहे थे लेकिन इसके साथ ही वो बार-बार हरिजन शब्द का इस्तेमाल कर रहे थे। उसी के थोड़ी देर बाद मायावती मंच पर अपनी बात रखने के लिए चढ़ी। मायावती ने कहा कि एक तरफ आप जाति तोड़ने की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ आप दलितों के लिए बार-बार हरिजन शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। ये एक किस्म का अपमान है। यह शब्द ही दलितों में हीन भाव को जगाता है। उन्होंने यहा तक कह दिया कि गांधी ने हमारी बेइज्जी के लिए ये शब्द दिया। मायावती के भाषण से राजनारायण समेत सभी लोग खासे प्रभावित हुए। मायावती की वार्ता कौशल से कांशीराम इतने प्रभावित हुए कि आधी रात मायावती के घर परिवार से मिलने आ गए। साल 1982 में कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की और मायावती ने बतौर सदस्य शामिल हुई। भारतीय राजनीति में यह उनका पहला कदम था। 


 1984 में कांग्रेस के सांसद गिरधारी लाल के निशन के बाद बिजनौर सीट खाली हुई। 1985 में उपचुनाव होना था।  1985 बसपा चुनावी मैदान में थी। इस चुनाव में कांशीराम ने कहा था कि पहला चुनाव हम हारेंगे, दूसरे चुनाव में राएंगे और तीसरे में जीतेंगे। इस चुनाव में दलित राजनीति के उफान को पूरे उत्तर प्रदेश और बिहार ने महसूस किया। इस लोकसभा उप चुनाव का परिणाम चाहे जो रहा हो लेकिन इसके उम्मीदवारों ने अपनी जीत के लिए जी-तोड़ कोशिश की थी। 1985 के उप चुनाव के लिए एक महिला उम्मीदवार प्रचार के लिए सायकिल के सहारे थीं। अपने सायकिल के जरिये वो बिजनौर की गलियां छानते हुए लोगों से मिलते हुए अपनी जीत के लिए सत्ता की लड़ाई लड़ रही थीं। ये कोई और नहीं बल्कि बसपा सुप्रीमों मायावती थीं। जो अपना पहला लोकसभा उपचुनाव लड़ रही थीं। मायावती के मुकाबले एक और दलित चेहरा मैदान में था जो ब्रिटेन, स्पेन और मारीशस के भारतीय दूतावासों में अपनी सेवा देने के बाद उस चुनावी मैदान में उतरी थीं और वो नाम था बाबू जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार का। लेकिन 1985 के इस चुनाव में एक और दलित नेता की एंट्री होती है। रामविलास पासवान ने भी बिजनौर का उपचुनाव लड़ा। बिजनौर का ये चुनाव भारतीय राजनीति को बदल देने वाला था। बड़े-बड़े दिग्गज के बीच घमासान हुआ। कांग्रेस, लोकदल और मायावती के बीच त्रिकोणीय मुकाबले में मीरा कुमार ने अपने पहले ही चुनाव में दिग्गज दलित नेता रामविलास पासवान और बीएसपी प्रमुख मायावती को हरा दिया।  इस चुनाव में रामविलास पासवान दूसरे और मायावती तीसरे नंबर पर रहीं। बिजनौक की उसी सीट पर साल 1989 में मायावती जीत दर्ज कर पहली बार संसद पहुंची। साल 1993 के विधानसभा चुनाव को उत्तर प्रदेश में एक बड़ा सियासी प्रयोग कहा जा सकता है।

बीजेपी को पूरा यकीन था कि राम नाम की लहर में सत्ता पर वापसी तय है। लेकिन इस दौरान प्रदेश की सियासत भी बड़ी तेजी से करवट ले रही थी। बसपा सुप्रीमो कांशीराम और सपा के मुलायम सिंह यादव की नजदीकियां बढ़ रही थी। दोनों दलों ने गठबंधन किया औ बीजेपी के सामने नारा दिया मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम। सपा ने 109 और बसपा ने 67 सीटें हासिल कर गठबंधन कर सरकार बनाई। अप्रैल 1994 में वह पहली बार राज्यसभा के लिए चुनी गईं। 

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1995 का गेस्ट हाउस कांड

उत्तर प्रदेश की राजनीति में 2 जून 1995 को स्टेट गेस्ट हाउस कांड के रूप में जाना जाता है। बसपा ने सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया। फैसले के बाद मायावती गेस्ट हाउस में अपने विधायकों की बैठक बुलाई। मायावती के फैसले से नाराज सपा कार्यकर्ताओं ने लखनऊ के मीराबाई मार्ग स्थित गेस्ट हाउस का घेराव शुरू कर दिया। मायावती गेस्ट हाउस के कमरा नं-1 में रुकी हुई थीं। उनके साथ बसपा विधायक और कार्यकर्ता भी मौजूद थे। लेकिन तभी सपा कार्यकर्ताओं ने बसपा के लोगों से मारपीट कर उन्हें बंधक बना लिया। तभी मायावती जाकर एक कमरे में छिप गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। बसपा के नेता फोन कर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को फोन कर बुला रहे थे। लेकिन उस वक्त किसी ने नहीं फोन उठाया था। मायावती के कमरे का दरवाजा तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। ऐसे में मायावती की जान बचाने के लिए फर्रुखाबाद से बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी सामने आते हैं। बताया जाता है कि ब्रह्मदत्त द्विवेदी को जब इस घटना का पता चलता है तो वो डीएम और एसपी से पहले ही गेस्ट हाउस पहुंच जाते हैं और अकेले ही सपा कार्यकर्ताओं से भिड़ जाते हैं। बताया जाता है कि उस वक्त द्विवेदी के साथ भाजपा नेता लाल जी टंडन भी मौजूद थे। 

मायावती अक्सर इस घटना का जिक्र करते हुए कहती रहीं कि जब मैं मुसीबत में थी तो मेरी पार्टी के लोग मुझे छोड़कर भाग गए थे लेकिन ब्रह्मदत्त भाई ने अपनी जान की परवाह किए बिना मेरी जान बचाई। अगले ही दिन भाजपा के लोग राज्यपाल के पास जाते हैं और बसपा को समर्थन देकर सरकार बनाने की बात करते हैं। इस तरह मायावती पहली बार जून 1995 में उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। 18 अक्टूबर 1995 तक वो इस पद पर रहीं। उनका दूसरा कार्यकाल 21 मार्च 1997 से 21 सितंबर 1997 तक रहा। इस दौरान बीजेपी के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई और दूसरी बार सीएम पद की शपथ ली। सीएम के रूप में उनका तीसरा कार्यकाल पिछले दोनों कार्यकाल की अपेक्षा लंबा रहा और वे 3 मई 2002 से 29 मई 2003 तक सीएम रहीं। 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को पूर्ण बहुमत मिला और वे 13 मई 2007 से 7 मार्च 2012 तक पूरे पांच साल उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं। 

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विवादों से भी रहा नाता

साल 2002 के दौरान मायावती के घर पर सीबीआई की छापेमारी हुई। ताज हेरिटेज काॅरिडोर में वित्तीय अनियमितताओं को लेकर मायावती और कुछ अन्य लोगों के घर पर सीबीआई की छापेमारी हुई। सीबीआई ने मायावती पर आय से अधिक संपत्ति का मामला भी दर्ज किया। लेकिन दोनों ही मामलों में सीबीआई को कोई टोस सबूत नहीं मिला और मायावती के खिलाफ केस बंद कर दिया गया। 

24 साल बाद आए साथ और फिर हुई दूरी

गेस्ट हाउस कांड के 24 साल बाद यूपी में बसपा और सपा की जोड़ी फिर एक बार चुनावी मैदान में उतरी। दोनों ने महागठबंधन बनाकर बीजेपी को मात देने की ठानी। मायावती ने सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के खिलाफ स्टेट गेस्ट हाउस कांड में मुकदमा वापस लेने के लिए शपथ पत्र भी दिया। लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद मायावती फिर से सपा के साथ कभी गठबंधन न करने की कसमें खातीं दिखीं। 

वर्तमान परिपेक्ष्य में देखें तो राजनीति की माहिर खिलाड़ी मायावती धीरे-धीरे राजनीति के पन्नों से उत्तर प्रदेश में बहुत ही कम नजर आने लगी हैं। मायावती के बारे में ये माना जाता रहा है कि वो सत्ता में रहे सत्ता के बाहर रहे। उनके अटैक करने का तरीका हमेशा सुर्खियां बटोरता था। लेकिन धीरे-धीरे उत्तर प्रदेश में ही धूमिल होती जा रही है मायावती की राजनीतिक तस्वीर। कई लोग ये मानते हैं कि मायावती पहले की तरह की सक्रियता में भारी कमी आई है। पहले के मुकाबले मायावती अब कुछ ट्वीटर पर लिखती हैं तो सलाहकार की भूमिका में नजर आती है। उनकी पुरानी छवि के बिल्कुल विपरीत है। बहरहाल, भले ही वर्तमान दौर में मायावती और बसपा गर्त के अंधेरों में है लेकिन उत्तर प्रदेश की सियासत में वो दौर भी नजर आया है जब एक राजनेता के रूप में मायावती ने सपा, मुलायम और अखिलेश को नाकों चने चबवा दिए थे। चाहे वो गेस्ट हाउस कांड हो या फिर अपनी मूर्तियां लगवाना और अपने जन्मदिन पर लाखों/करोड़ों वाली माला पहनना। इस बात में कोई शक नहीं कि एक राजनेता के रूप में मायावती का जीवन भव्यता से भरा रहा है।  लेकिन भव्य केक और प्रदेश के अलग-अलग पार्टी कार्यालयों पर भव्य आयोजन के लिए चर्चा का केंद्र रहने वाला मायावती का जन्मदिन में इस बार कोई भव्य आयोजन नहीं होगा। मायावती ने अपना 65वां जन्मदिन नवंबर में पिता के निधन, कोविड महामारी और किसान आंदोलन की वजह से नहीं मनाने का फैसला किया है। - अभिनय आकाश