तालाबों के शहर नाहन में आकर देखिये तो सही, दिल बाग़ बाग़ हो जायेगा

By संतोष उत्सुक | Jul 03, 2018

हिमाचल प्रदेश की दिलकश खूबसूरती कुछ प्रसिद्ध जगहों तक सीमित नहीं है। कितने ही आकर्षक स्थल हैं यहाँ। कभी रियासत सिरमौर का मुख्यालय रहा नाहन एक छोटा सुन्दर शहर है। अंतर्राष्ट्रीय ख्यात कलाकार जे.सी. फ्रेंच 1931 में नाहन आए तो यहां की सुंदरता से प्रभावित हुए, उनकी लिखी ‘ट्रैवल इन वैस्टर्न हिमालयज’ को पढ़कर पंजाब के तत्कालीन मुख्य सचिव कला प्रेमी एस.एस. रंधावा 1963 में यहां आए और यहां के तालाबों की विशेष प्रशंसा की। निःसंदेह यह तालाब आज भी कायम हैं तभी नाहन को तालाबों का शहर भी कहा जा सकता है। यहां कालिस्थान तालाब, पक्का तालाब व रानी ताल के अलावा ग्रामीण इलाके में बावड़ियां भी हैं। बाज़ार के कुशल खिलाड़ियों की कोशिश को असफल कर शहर के पर्यावरण प्रेमियों ने इन जल स्त्रोतों को जीवित रखने की कोशिश की। तालाब ज़मीन में नमी बरकरार रखते हुए सामाजिक उपयोगिता के साथ, पारिस्थितिकीय संतुलन बनाने रखने में सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं। 

 

पुराना छोटा शहर संकरी गलियां बाज़ार

शिवालिक पहाड़ियों पर सन 1621 में बसे नाहन का श्रेय तीन व्यक्तियों को जाता है। एक योद्धा राजकुमार, पालतू शेर के साथ रहने वाले साधु और अपनी लूट यहां छिपाने वाला एक कुख्यात लुटेरा। विकास की बाट जोहते 933 मीटर पर बसे नाहन को कभी हिमाचल का बंगलौर कहा जाता था। अनेक एतिहासिक इमारतें लिए पर्यावरणीय बदलाव सहने के बाद नाहन उम्दा मौसम के कारण आज भी हिमाचल के चुने हुए शहरों में शुमार है। यहां की सड़कों और गलियों का जुड़ाव किसी को गुम नहीं होने देता। चार दर्जन राजाओं द्वारा शासित रहे नाहन की बसावट प्रशंसनीय है, ऐसा 1820-30 में राजा फतेह प्रकाश के ज़माने में पधारे लेफ्टिनेंट जौर्ज फ्रांसिस व्हाइट ने लिखा, नाहन भारत का छोटा, सुनियोजित व श्रेष्ठ तरीके से बनाया शहर माना जा सकता है। यहां गलियां संकरी हैं, घरों की छतें ऊपर नीचे हैं तभी तो एक छत से दूसरी पर आराम से जाया जा सकता है। सुबह अनगिनत स्थानीय लोग व पर्यटक विला राऊण्ड स्थित जौगर्स पार्क व छतरी के पास उगे चीड़ के स्वास्थ्य वर्धक वृक्षों के सानिध्य में सैर का मज़ा लेते हैं। प्रदेश के सबसे पुराने बागों में से एक, 129 वर्षीय रानीताल बाग भी सैर के लिए लाजवाब है। शहर में बरसात का पानी रुकता नहीं और घूमती धुंध, ठहरते खिसकते बादल आपकी आवारगी को रोमांस से लबरेज कर देते हैं। रंग बदलते नयनाभिराम सूर्यास्त शाम को सुहानी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। शाम होते होते चौगान में चहल पहल जवां हो जाती है।  

 

सर्व धर्म सद्भाव की मिसाल

प्रकृति, कला, संस्कृति, साहित्य, सर्वधर्म सद्भाव, सहजता भरे नाहन में अनेक पुराने मंदिर, मस्जिद गुरुद्वारा व चर्च हैं। रानीताल में विशिष्ट शैली में निर्मित शिवालय हैं। यहां लगने वाला वामन द्वादशी व छड़ियों का प्रसिद्ध मेला स्थानीय ही नहीं आसपास के क्षेत्रों से हज़ारों को बुलाते हैं। शहर के सभी उत्सवों में सभी धर्मों के लोग आपसी सद्भाव बढ़ाने के लिए शामिल होते हैं। यहां का मुहर्रम विरला आयोजन है। अन्यत्र जगहों पर यह आयोजन शिया सम्प्रदाय द्वारा होता है मगर नाहन में यह सुन्नी सम्प्रदाय द्वारा आयोजित किया जाता है। ऐसा यहां राजा के ज़माने से हो रहा है। 

 

पैदल चलने का मज़ा   

मुख्य शहर को चंद घंटों में पैदल घूमा जा सकता है। सरकार द्वारा कोई स्थानीय ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नहीं है यहां इसलिए पैदल चलना ही पड़ता है। शहर के पुराने लोग आज भी पैदल ही चलते हैं जिससे उनकी सेहत ठीक रहती है। यहां के पुराने बाज़ार में लगे कोबल्ड पत्थर, ब्रसेल व प्रेग की गलियों की याद दिलाते थे, मगर राजनीति ने इनको लील लिया। पुराने बाज़ार में पैदल शॉपिंग कर सकते हैं और गपशप भी। यहां वाहन प्रयोग की मनाही है। इस शहर में और आसपास साल के लोहे जैसे ठोस वृक्ष, चीड़ व अन्य वृक्षों के अलावा जड़ी बूटियां उपलब्ध हैं। 

 

ऐसे पहुंचें

कहावतें यूं ही नहीं जन्मी होंगी, कुछ तो बात होगी। शहर के बारे में कहा जाता रहा है, ‘नाहन शहर नगीना आए दो दिन ठहरे महीना’। इतिहास में तो रहना मुश्किल है, हां इतने बदलावों के बाद भी यहां आकर सहज, शांत व आराम महसूस करेंगे। नाहन, चंडीगढ़ से 90 किलोमीटर है यह रास्ता दोसड़का पहुंचाएगा जहां से चढ़ाई वाले कुछ मोड़ काटकर, ऊंट जैसी पहाड़ी पर बसा शहर मिलेगा। देहरादून से भी यह 90 किमी है, पाव्ंटा साहिब होकर आ सकते हैं। यहां से ड्राइव, काफी दूर तक नदी के किनारे, साल के खूबसूरत दरख्तों के साथ साथ है। यह रास्ता, वृक्ष आपको बार बार रोकेंगे जहां कैमरा अपना रोल बखूबी निभाएगा। खजूरना पुल पर कुछ देर रुक कर दोसड़का से वही रास्ता मिलेगा। शिमला से नाहन 135 किमी दूर है।

 

-संतोष उत्सुक

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