By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Apr 24, 2024
उत्तर प्रदेश के 22 जिलों में गंगा और उसकी सहायक नदियों में दूषित जल के शोधन में व्यापक अंतर है, जबकि 12 जिलों में कोई शोधन सुविधा मौजूद नहीं है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) यह टिप्पणी करते हुए संबंधित अधिकारियों से ‘शीघ्रतापूर्वक’ सुधारात्मक उपाय करने को कहा।
एनजीटी ने गंगा और उसकी सहायक नदियों में प्रदूषण कम करने के मामले पर सुनवाई की। इससे पहले उसने उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड से नदी के प्रदूषण पर विशेष जानकारी मांगी थी।
एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश द्वारा एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, जिसमें 23 जिलों की जानकारी दी गई थी। इनमें बागपत, बुलन्दशहर, बलिया, मथुरा, सहारनपुर, ललितपुर, गोंडा, हमीरपुर, हाथरस, मऊ, अलीगढ, बरेली, एटा, जालौन, कासगंज, अंबेडकर नगर, शाहजहांपुर, रायबरेली, प्रतापगढ़, अमेठी, हरदोई, गाजीपुर और अयोध्या शामिल है।
पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य अफरोज अहमद भी शामिल हैं। पीठ ने कहा, ‘‘जिला कासगंज को छोड़कर सभी 23 जिलों में दूषित जल शोधन में व्यापक अंतर है, जिसे सत्यापित किया जाना बाकी है।’’
एनजीटी ने 16 अप्रैल के आदेश में कहा, ‘‘बलिया, ललितपुर, गोंडा, हमीरपुर, हाथरस, जालौन, मऊ, अंबेडकर नगर, शाहजहांपुर, अमेठी, हरदोई और गाजीपुर मेंसीवेज शोधन की कोई सुविधा मौजूद नहीं है।’’
अधिकरण ने पाया कि गंगा के प्रदूषण में सबसे अधिक योगदान देने वाले वाराणसी, प्रयागराज, फर्रुखाबाद, कानपुर, उन्नाव और मिर्ज़ापुर जिलों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।
एनजीटी ने कहा कि गंगा की प्रदूषित सहायक नदियां काली (पूर्व और पश्चिम), कृष्णा, हिंडन, बेतवा, सहजवाल, बिशुई, मनहरण, रामगंगा, अरिल, पश्चिम और पूर्व बेगुल, किच्छा, करवन, पहुज, तमसा, सरयू, गर्रा, सई, खन्नौत और गोमती हैं।