नेशनल कोच ओपी भारद्वाज जो राहुल गांधी के थे बॉक्सिंग गुरू, हासिल किया था पहला द्रोणाचार्य अवॉर्ड

By निधि अविनाश | May 22, 2021

मुक्केबाजी में भारत के पहले द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच ओ पी भारद्वाज का लंबी बीमारी और उम्र संबंधी परेशानियों के कारण शुक्रवार को निधन हो गया। वह 82 वर्ष के थे। भारद्वाज को 1985 में द्रोणाचार्य पुरस्कार शुरू किये जाने पर बालचंद्र भास्कर भागवत (कुश्ती) और ओ एम नांबियार (एथलेटिक्स) के साथ प्रशिक्षकों को दिये जाने वाले इस सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

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ओम प्रकाश भारद्वाज - या ओपी सर, जैसा कि वह अपने छात्रों के बीच जाने जाते थे - उस समय भारतीय मुक्केबाजी के मुख्य राष्ट्रीय कोच थे। वह 1968 से 1989 तक भारत के बॉक्सिंग कोच थे, एक ऐसा दौर जब भारत ने दर्जनों अंतरराष्ट्रीय पदक जीते, खासकर एशियाई स्तर पर। 1970 और 1986 के बीच की अवधि विशेष रूप से सफल रही। बीरेंद्र थापा, कौर सिंह, जे एल प्रधान, हवा सिंह, जयपाल सिंह और एमके राय सहित भारत के कुछ बेहतरीन मुक्केबाजों ने भारद्वाज के कारण अपने करियर की शुरुआत की। आर्मी फिजिकल ट्रेनिंग कॉर्प्स (APTC) के एक हवलदार, ओपी भारद्वाज, पटियाला में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स से बॉक्सिंग डिप्लोमा प्राप्त करने वाले पहले कोच में से एक बनने से पहले, खुद एक बॉक्सर थे। आईएबीएफ के पूर्व महासचिव ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) पीके मुरलीधरन राजा के अनुसार, इसके तुरंत बाद, उन्होंने कोचिंग में कदम रखा और इसके बाद के दशकों तक इस भूमिका में बने रहे। 

भारद्वाज 1968 से 1989 तक भारतीय राष्ट्रीय मुक्केबाजी टीम के कोच थे। वह राष्ट्रीय चयनकर्ता भी रहे। उनके कोच रहते हुए भारतीय मुक्केबाजों ने एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और दक्षिण एशियाई खेलों में पदक जीते। पूर्व मुक्केबाजी कोच और भारद्वाज के परिवार के करीबी मित्र टी एल गुप्ता ने कहा, ‘‘उन्होंने पुणे में सेना स्कूल एवं शारीरिक प्रशिक्षण केंद्र में अपना करियर शुरू किया और सेना मशहूर कोच बने। राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) ने 1975 में जब मुक्केबाजी में कोचिंग डिप्लोमा का प्रस्ताव रखा तो भारद्वाज को पाठ्यक्रम की शुरुआत के लिय चुना गया था। मुझे गर्व है कि मैं उनके शुरुआती शिष्यों में शामिल था।

 राहुल गांधी को भी दी थी बॉक्सिंग की शिक्षा

ओपी ने साल 2008 में कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी को भी दो महीने तक मुक्केबाजी के गुर सिखाये थे। पूर्व राष्ट्रीय कोच गुरबख्श सिंह भी उनके शुरुआती शिष्यों में शामिल थे। सिंह ने कहा, ‘‘मेरी भारद्वाज जी के साथ बहुत अच्छी दोस्ती थी। मैं एनआईएस में उनका शिष्य और सहायक था। उन्होंने ही भारतीय मुक्केबाजों को आगे तक पहुंचाने की नींव रखी थी। ’’ राष्ट्रीय महासंघ के पूर्व महासचिव ब्रिगेडियर (सेवानिवृत) पी के एम राजा ने कहा कि भारद्वाज का खेल में अपने योगदान के लिये बहुत सम्मान था। उन्होंने कहा, ‘‘वह सेना खेल नियंत्रण बोर्ड के दिग्गज थे।सही मायनों में वह बेहतरीन कोच और प्रभावशाली व्यक्ति थे।

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