International Yoga day 2025: एक धरती, एक शांति, एक योग

By पंकज आर्य | Jun 19, 2025

आगामी 21 जून, अर्थात 11वां अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, भारत के लिए केवल एक तिथि भर नहीं, बल्कि आत्मगौरव और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रतीक है। यह वही दिन है जब भारत की प्राचीन पहचान को वैश्विक स्तर पर एक नई स्वीकृति और सम्मान प्राप्त हुआ। आज संपूर्ण विश्व भारत को "योगभूमि" के नाम से जानता है। यह उसी निरंतर साधना और समर्पण का परिणाम है कि “योग” आज विश्व पटल पर स्थापित हो चुका है।


योग न किसी धर्म से जुड़ा है, न किसी मत, मज़हब या जाति से। यह पूर्णतः निरपेक्ष और मानव उपयोगी पद्धति है। यही कारण है कि योग का अभ्यास आज विश्व के हर कोने में, हर मत-पंथ के अनुयायियों द्वारा निःस्वार्थ भाव से किया जा रहा है। योग ही एकमात्र ऐसा उपहार है, जिसे भारतीय ऋषियों ने मानवता को दिया और जो सम्पूर्ण मानव जीवन के लिए समान रूप से लाभकारी है।

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आज जब विश्व अशांति, हिंसा, कलह और अपराध की गिरफ्त में है, तब योग ही एकमात्र उपाय है जो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र में शांति की स्थापना कर सकता है। जब तक मानव जीवन में योग नहीं होगा, तब तक वैश्विक शांति केवल एक कोरी कल्पना भर रहेगी।


आज अधिकांश देश किसी न किसी रूप में हिंसा से ग्रस्त हैं—कहीं सीमाओं पर तनाव है, तो कहीं आंतरिक विद्वेष। इसका मूल कारण यही है कि योग के स्थान पर भोग को महत्व देने वाली दूषित विचारधारा ने मनुष्यता को ग्रस लिया है। परंतु अब भी समय है—हमें संभलना होगा। योग को जीवन में उतारना होगा, उसे आचरण में लाना होगा, योग को जीना होगा। क्योंकि व्यक्ति निर्माण से ही राष्ट्र निर्माण संभव है।

 

योग वही शक्ति है जो साधक को दुर्गुण और दुर्व्यसनों से मुक्ति दिलाती है। हमारे इतिहास में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जहाँ योग के माध्यम से साधारण व्यक्ति ने असाधारण ऊंचाइयाँ प्राप्त कीं। चाहे महायोगी शिव हों, योगेश्वर श्रीकृष्ण हों, महर्षि अरविंद या महर्षि दयानंद—सभी के जीवन में योग की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। 


इसी योग-संस्कृति के प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्पित प्रयासों का ही परिणाम था कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 जून को “अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में मान्यता प्रदान की—जो सम्पूर्ण मानवता के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।


हाल के वर्षों में हमने देखा कि जब वैश्विक महामारी “कोरोना” ने तांडव मचाया, तब भारत में अन्य देशों की तुलना में इसका प्रभाव अपेक्षाकृत कम रहा। इसका एक बड़ा कारण था—भारत में योग और आयुर्वेद का व्यापक उपयोग। विशेषकर श्वसन प्रणाली को मजबूत करने वाले भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम, भुजंगासन जैसे योगाभ्यासों ने लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को सशक्त किया।


आज जब सम्पूर्ण मानव सभ्यता शारीरिक और मानसिक रूप से जर्जर होती जा रही है, तब योग ही वह मार्ग है जो मानवता को पुनः स्वस्थ और संतुलित बना सकता है। भोगवाद की शिकार हो चुकी मनुष्यता को अब भारतीय ऋषियों के ज्ञान की ओर लौटना ही होगा।


शास्त्रों में कहा गया है—"नान्यः पन्थाः विद्यते"—अर्थात, जीवन में आरोग्यता और सुख के लिए कोई अन्य उपाय नहीं है। योग न केवल शारीरिक और मानसिक आरोग्यता प्रदान करता है, बल्कि आर्थिक रूप से भी सहायक है। आज आम आदमी की कमाई का बड़ा हिस्सा बीमारियों में खर्च होता है, जो कि अक्सर साधारण ही होती हैं—बुखार, बीपी, मोटापा, शुगर, थायरॉयड आदि। नियमित योगाभ्यास से इन सभी को बिना खर्च और दवा के नियंत्रित किया जा सकता है।


योग आत्मबल और अंतःप्रेरणा को जाग्रत करता है, नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलता है और जीवन को सरल, सुंदर और सफल बनाता है। जब तक व्यक्ति निर्माण नहीं होगा, तब तक एक सशक्त राष्ट्र या सशक्त विश्व की कल्पना व्यर्थ है।


इसलिए आगामी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लें। स्वयं योग करें और अपने आसपास के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें।


- पंकज आर्य, 

वरिष्ठ योगाचार्य

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