By अभिनय आकाश | Dec 19, 2025
गंगा की आरती, घाटों की सीढ़ियाँ, धूप में चमकता जल, शंख-घंटों की ध्वनि बनारस की सुबह का मिजाज कुछ ऐसा ही हुआ करता है। वहीं नज़ाकत, नफ़ासत, ठहराव—इत्र की खुशबू, शायरी, तमीज़दार बातचीत और लखनवी अंदाज़ अवध की शाम को रंगीन बनाता है। इसलिए तो कहा भी जाता है कि जीवन में अगर बनारस की सुबह जैसी शुद्धता और अवध की शाम जैसी नर्मी आ जाए, तो दिन पूरा हो जाता है। बनारस की सुबह और अवध की शाम की चर्चा आपने सुनी है तो मद से भरे गोवा की नाइट लाइफ और ताजगी से भरे सूर्योदय का भी एहसास आपको करना चाहिए। गोवा के इसी मिजाज को समझते हुए घूमने-फिरने के शौकीनों ने अंग्रेजी में एक बात कही When life hits you with boredom, Escape to Goa! ढलती हुई शाम...सामने अथाह समंदर... इस समंदर में धीरे-धीरे डूबता सूरज और समुद्र के किनारे सूर्य की किरणों से सुनहरे हुए रेत के विशाल मैदान पर पसरे हुए आप। लगता है मानो शाम ठहर जाए। सपनों के इस सिलसिले पर ब्रेक न लग जाए। गोवा देश ही नहीं विश्व भर के पर्यटकों का प्रिय है। हर वर्ष लाखों लोग यहां पर छुट्टियां मनाने आते हैं लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि गोवा जाने के लिए भारतीयों को भी वीजा और पासपोर्ट की आवश्यकता पड़ सकती थी 15 अगस्त 1947 को जब पूरे भारत पर तिरंगा ध्वज लहरा रहा था तब उस उत्सव में गोवा सम्मिलित नहीं था। गोवा पर अब भी पुर्तगाल का औपनिवेशिक शासन बना हुआ था। फ्रांस के अधिकार वाले पांडिचेरी कराई कल और चंद्रनगर भी समय के साथ स्वतंत्र होते गए। लेकिन गोवा अब भी परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, तब किसी ने कल्पना नहीं की थी कि भारत के इस छोटे से भूभाग के लोगों के लिए स्वतंत्रता अब भी लगभग डेढ़ दशक दूर है। गोवा के साथ साथ दादर नगर हवेली दमन और दीव क्षेत्र भी पुर्तगाल के अधिकार में थे।
आश्चर्य यह कि भारत की तत्कालीन सरकार इनकी मुक्ति का कोई गंभीर प्रयास करती नहीं दिख रही थी यह व्यवहार एक ऐसे क्षेत्र के साथ जो चार शताब्दी से अधिक समय तक कैथोलिक चर्च के बर्बर अत्याचारों का शिकार बन चुका था धर्म ग्रंथों के अनुसार गोवा भगवान परशुराम की धरती है वहां पर इसे गोमांतक कहा गया है गोवा में कभी इसके ढेरों प्राचीन चिन्ह भी हुआ करते थे लेकिन अधिकांश पुर्तगाली शासन के दौरान मिटा दिए गए वीर सावरकर ने अपने खंड काव्य गोमांतक में पुर्तगाली अत्याचारों का वर्णन किया है महाभारत में गोवा का उल्लेख गोप राष्ट्र अर्थात पालकों के देश के नाम से है 14वीं शताब्दी में यहां पर पहली बार इस्लामी आक्रमणकारियों के पैर पड़े थे लेकिन तब विजयनगर के राजा हरि हर प्रथम ने उन्हें खदेड़ दिया था लेकिन 100 वर्ष बाद फिर से दिल्ली की इस्लामी सल्तनत ने गोवा को अपने चंगुल में ले लिया।
महाभारत में गोवा का उल्लेख गोपराष्ट्र यानि गोपालकों के देश के रूप में मिलता है। गोवा के लंबे इतिहास की शुरुआत् तीसरी सदी इसा पूर्व से शुरू होता है जब यहाँ मौर्य वंश के शासन की स्थापना हुई थी। बाद में पहली सदी के शुरुआत में इस पर कोल्हापुर के सातवाहन वंश के शासकों का अधिकार स्थापित हुआ और फिर बादामी के चालुक्य शासकों ने इस पर वर्ष 580 से 750 तक राज किया। इसके बाद के सालों में इस पर कई अलग अलग शासकों ने अधिकार किया। वर्ष 1312 में गोवा पहली बार दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ लेकिन उन्हें विजयनगर के शासक हरिहर प्रथम द्वार वहाँ से खदेड़ दिया गया। 1469 में गुलबर्ग के बहामी सुल्तान द्वारा फिर से दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनाया गया। वर्ष 1510 में गोवा में पुर्तगालियों के कदम पड़े धीरे-धीरे उन्होंने पूरे क्षेत्र को अपना उपनिवेश बना लिया पुर्तगालियों का सबसे बड़ा उद्देश्य गोवा के सांस्कृतिक चरित्र को बदलना और हिंदु को ईसाई बनाना था इसी के लिए वर्ष 1560 में गोवा इनक्विजिशन की शुरुआत की गई। इनक्विजिशन चर्च द्वारा बनाई एक तरह की न्यायिक संस्था थी जिसका काम हिंदुओं को धर्मांतरण के लिए विवश करना था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2022 में गोवा में एक रैली के दौरान कहा था कि अगर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू चाहते तो 1947 में ही कुछ ही घंटों के भीतर गोवा आज़ाद हो जाता। लेकिन कांग्रेस ने 14 वर्षों तक गोवा की आज़ादी के लिए कुछ नहीं किया। राम मनोहर लोहिया (डॉ. लोहिया) गोवा मुक्ति आंदोलन के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने 1946 में गोवा में सत्याग्रह शुरू कर पुर्तगाली शासन के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत की। इस आंदोलन में महात्मा गांधी का उन्हें स्पष्ट समर्थन मिला, लेकिन जवाहरलाल नेहरू ने साथ नहीं दिया। यह अंतर दोनों नेताओं की विचारधारा, राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में निहित है। लोहिया ने गोवा को भारत का अभिन्न हिस्सा मानते हुए तत्काल मुक्ति की मांग की, लेकिन नेहरू की कूटनीतिक और शांतिवादी नीति ने उन्हें सैन्य या प्रत्यक्ष समर्थन से रोका। गांधीजी ने लोहिया के गोवा सत्याग्रह को पूर्ण समर्थन दिया क्योंकि यह उनकी अहिंसा और सिविल डिसओबिडिएंस की विचारधारा से मेल खाता था। 1946 में लोहिया ने गोवा में पुर्तगाली शासन के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया, जहां वे नागरिक अधिकारों की मांग कर रहे थे। गिरफ्तार होने
कूटनीति, शांतिवाद और अंतरराष्ट्रीय छवि नेहरू ने लोहिया के सत्याग्रह को समर्थन नहीं दिया क्योंकि उनकी प्राथमिकता अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और शांतिपूर्ण समाधान थी। नेहरू की विदेश नीति गुटनिरपेक्षता और विश्व शांति पर आधारित थी, और वे भारत को एक शांतिवादी राष्ट्र के रूप में पेश करना चाहते थे। गोवा पुर्तगाली उपनिवेश था, और नेहरू को डर था कि सत्याग्रह या सैन्य हस्तक्षेप से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि प्रभावित होगी। 1946 में लोहिया के सत्याग्रह के समय नेहरू ने कहा कि गोवा समस्या महत्वपूर्ण है, लेकिन भारत को पहले अपनी स्वतंत्रता पर फोकस करना चाहिए।
गोवा के भारत में विलय की कहानी दमन और दीव के भारत में विलय की कहानी भी है। जब भारत के बड़े इलाके पर अंग्रेज हुकूमत कर रहे थे। तब गोवा, दमन और दीव पर पुर्तगाल का शासन था। ये दोनों राज्य यूरोप में भी पड़ोसी थे। गोवा वालों की राजकुमारी कैथरीन और इंग्लैंड के किंग्स चार्ल्स टू से हुई थी। तब पुर्तगालियों ने ही दहेज में अग्रेजों को मुंबई दी थी। मुंबई यानी उस वक्त की बम्बई तो आजाद होकर भारत का हिस्सा बन गया। लेकिन गोवा, दमन और दीव में पुर्तगाली जमे रहे। पुर्गताली गोवा को किसी भी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। पुर्तगालियों ने आजादी के 14 साल बाद तक गोवा और दमन व दीप पर अपना कब्जा जमाए रखा। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और रक्षा मंत्री मेनन के बार-बार आग्रह करने के बावजूद पुर्तगाली भारत के आगे झुकने को बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। उनके खिलाफ स्थानीय लोगों ने विद्रोह किया। गोवा कांग्रेस बनी और आजादी का आंदोलन चलाया गया। भारत में जो कांग्रेस थी उसे उसका साथ मिला। देश आजाद हुआ तो पुर्तगाल से बात शुरू हई। लेकिन गोवा पर बात करने का पुर्तगात ने कोई जवाब नहीं दिया। 11 जून 1953 को पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में भारत ने अपने दूतावास बंद किए। फिर पुर्तगाल पर प्रेशर गेम शुरू किया। गोवा, दमन और दीव के बीच आने जाने पर बंदिशे लग गई। 15 अगस्त 1955 को तीन से पांच हजार आम लोगों ने गोवा में घुसने की कोशिश की। लोग निहत्थे थे और पुर्तगाल की पुलिस ने गोली चला दी। 30 लोगों की जान चली गई। तनाव बढ़ने के बाद गोवा पर सेना की चढ़ाई की तैयारी की गई। 1 नवंबर 1961 में भारतीय सेना के तीनों अंगों को युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा। भारतीय सेना ने अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने के साथ आखिरकार दो दिसंबर को गोवा मुक्ति का अभियान शुरू कर दिया। जमीन से सेना, समुद्र से नौसेना और हवा से वायुसेना गई। इसे ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। बता दें कि 1999 के करगिल युद्ध को भी ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया था। लेकिन ये सेना का पहला ऑपरेशन विजय पुर्तगालियों के खिलाफ हुआ था। दिसंबर 1961 को गोवा की तरफ सेना पहली बार बढ़ी। सेना जैसे-जैसे आगे बढ़ती लोग स्वागत करते। कुछ जगह पुर्तगाल की सेना लड़ी। लेकिन हर तरफ से घिरे होने की वजह से पराजय तय थी। वायु सेना ने आठ और नौ दिसंबर को पुर्तगालियों के ठिकाने पर अचूक बमबारी की, थल सेना और वायुसेना के हमलों से पुर्तगाली तिलमिला गए। आखिर में 19 दिसंबर 1961 की रात साढ़े आठ बजे भारत में पुर्तगाल के गवर्नर जनरल मैन्यु आंतोनियो सिल्वा ने इंस्ट्रूमेंट ऑफ सरेंडर पर दस्तखत किए। इसी के साथ गोवा पर 451 साल का पुर्तगाली राज खत्म हुआ। इसी ऐतिहासिक घटना के सम्मान में गोवा लिबरेशन डे मनाया जाता है। ये भारतीय इतिहासा का महत्वपूर्ण बिंदू था जिसने हमारे देश को उस विदेशी शासन से पूरी तरह से मुक्त कर दिया था जो कई शताब्दियों तक चला था।