By नीरज कुमार दुबे | Nov 26, 2025
26 नवम्बर 2008 की वह काली रात भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय बन गई, जिसे याद करते ही आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भारत की आर्थिक राजधानी तथा जीवंतता और विविधता की प्रतीक मुंबई, कुछ ही घंटों में गोलियों, ग्रेनेडों और आग की लपटों में बदल गई। ताज महल पैलेस होटल की ऐतिहासिक दीवारें चीखों से गूंज उठीं, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर मासूमों का खून बहा, कैफे लियोपोल्ड और नरीमन हाउस में दहशत की परछाइयाँ उतर आईं। 175 निर्दोष लोग मारे गए, 300 से अधिक घायल हुए और सम्पूर्ण राष्ट्र दहशत तथा क्षोभ से भर उठा। यह भारत पर किया गया सीधा प्रहार था।
आज, सत्रह साल बाद, भारत और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सम्मिलित सुरक्षा विश्लेषण यह स्पष्ट रूप से साबित करते हैं कि यह हमला किसी अकेले आतंकी संगठन की कारगुजारी नहीं थी, बल्कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई, आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और अंतरराष्ट्रीय जिहादी नेटवर्क अल-कायदा के संयुक्त ऑपरेशन की परिणति थी। एक विस्तृत भारतीय सुरक्षा डोजियर और विदेशों में हुई विभिन्न स्वतंत्र जांचों ने यह स्थापित किया है कि 26/11 की यह हिंसा पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सबसे वीभत्स उदाहरण थी।
डोजियर में यह तथ्य वस्तुतः दर्ज हैं कि हमला आईएसआई की “एस ब्रांच” द्वारा संचालित था, जो कश्मीर से बाहर अपने आतंकवादी ऑपरेशन का दायरा बढ़ाना चाहती थी। हम आपको यह भी बता दें कि ब्रिटिश पत्रकार कैथी स्कॉट-क्लार्क और एड्रियन लेवी की पुस्तक The Exile ने तो इसको और भी भयावह रूप में प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार ओसामा बिन लादेन स्वयं मंसेहरा आया और इस हमले की योजना से जुड़े एक महत्वपूर्ण बैठक में शामिल हुआ। यह बैठक लश्कर-ए-तैयबा द्वारा आयोजित, आईएसआई के संरक्षण में और अल-कायदा के प्रायोजन में हुई थी, यह तथ्य पाकिस्तान के "नॉन-स्टेट एक्टर" वाले झूठ को पूरी तरह बेनकाब करता है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि ये खुलासे केवल भारत या पश्चिमी देशों ने नहीं किए। पाकिस्तान की अपनी संघीय जांच एजेंसी (FIA) के पूर्व प्रमुख तारिक खोसा ने 2015 में डॉन अख़बार में लिखे एक लेख में स्वीकार किया था कि 26/11 के सभी हमलावर लश्कर-ए-तैयबा के प्रशिक्षित आतंकवादी थे। उन्होंने बताया था कि ये दहशतगर्द सिंध प्रांत के प्रशिक्षण शिविरों में तैयार किए गए और कराची में मौजूद लश्कर के नियंत्रण कक्ष से पूरे हमले को रिमोट कंट्रोल किया गया। जहाज़, हथियार, संचार उपकरण, सब कुछ पाकिस्तान की ज़मीन से संचालित था।
इसके बाद भी पाकिस्तान की सरकार और सेना लगातार झूठ बोलती रही, जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई नहीं की। न मेजर इक़बाल को छुआ गया, न सजिद मजीद को, न ही हाफ़िज़़ सईद के संगठनों पर कोई ठोस अंकुश लगा। पाकिस्तान आज भी इन्हें “गैर-राज्य तत्व” बताकर दुनिया को धोखा देने की कोशिश करता है, लेकिन साक्ष्य और स्वीकारोक्तियाँ उसके इस छल को पूरी तरह ध्वस्त कर चुके हैं।
मुंबई हमले का एक महत्वपूर्ण और कम चर्चा में रहने वाला पहलू था— स्थानीय सहयोग। जांचों से यह संकेत मिला कि यदि मुंबई में सक्रिय दाऊद इब्राहिम गिरोह का समर्थन न होता, तो दस आतंकवादी इतनी आसानी से भारतीय तट को पार नहीं कर पाते। बताया गया कि दाऊद के आदमी, जो डॉक क्षेत्रों में सक्रिय थे, कसाब और उसके साथियों को तटरक्षक की नज़र से बचा कर बदवार पार्क तक सुरक्षित ले आए। और शहर के भीतर उनकी निर्बाध आवाजाही भी स्थानीय नेटवर्क की सहायता के बिना संभव नहीं थी। यह तथ्य बताता है कि आतंकवाद केवल सीमा पार से ही नहीं, बल्कि हमारे तंत्र की कमजोरियों का लाभ उठाकर भीतर भी प्रवेश करता है।
सत्रह वर्षों बाद सबसे बड़ा प्रश्न यही है— क्या पाकिस्तान कभी 26/11 की जिम्मेदारी स्वीकार करेगा? क्या वह हाफ़िज़़ सईद, ज़की-उर-रहमान लखवी, साजिद मजीद और आईएसआई के उन अधिकारियों को सजा देगा जो इस नृशंसता के सीधे सरगना हैं? उत्तर है— नहीं। दरअसल, पाकिस्तान की सत्ता-संरचना आतंकवाद को अपनी विदेश नीति का औजार मानती रही है लेकिन अब उसकी यह नीति पूरी दुनिया के सामने निर्वस्त्र हो चुकी है।
भारत ने इन सत्रह वर्षों में आतंकवाद के खिलाफ अपना रुख और भी कठोर किया है— सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयरस्ट्राइक, ऑपरेशन सिंदूर, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लगातार कूटनीतिक दबाव और आतंरिक सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के कदम इसका प्रमाण हैं। आज दुनिया जानती है कि भारत आतंकवाद के विरुद्ध किसी भी स्तर पर समझौता नहीं करेगा। 26/11 केवल एक हमला नहीं था, यह एक चेतावनी थी कि आतंकवाद किस प्रकार देशों की सीमाएँ ध्वस्त कर मानवीय सभ्यता को चुनौती देता है। भारत आज भी 26/11 के शहीदों और पीड़ितों की स्मृति में दृढ़ संकल्प के साथ खड़ा है। यह लड़ाई केवल भारत की नहीं, पूरी दुनिया की है। इसमें कोई दो राय नहीं कि आतंकवाद को पनाह देने वाली हुकूमतें मानवता की सबसे बड़ी शत्रु हैं।