कश्मीर में शांतिपूर्वक चुनाव जनता और सुरक्षाबलों के लिए बड़ी चुनौती

By सुरेश डुग्गर | Mar 12, 2019

जम्मू। देशभर में लोकसभा चुनावों के लिए सिर्फ राजनीतिक दल ही कमर कस रहे हैं पर जम्मू कश्मीर में कई पक्ष इसके लिए कमर कसने लगे हैं। राजनीतिक दलों की ओर से चुनावी समर में कूदने की कवायद अगर तेज हुई है तो सुरक्षाबलों के लिए यह मोर्चा आसान इसलिए नहीं है क्योंकि वे आप स्वीकार करते हैं कि आतंकियों के साथ-साथ पाकिस्तान भी इन चुनावों के दौरान गुल खिलाने से बाज नहीं आएगा। अगर दूसरे शब्दों में कहें तो इस बार करीब दो माह तक कश्मीरी जनता की जान सांसत में फंसी रहेगी। यह सच है। अधिकारी आप कह रहे हैं कि आतंकी किसी भी समय अपनी चुनाव विरोधी मुहिम आरंभ कर सकते हैं।

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अधिकारी कह रहे हैं कि जम्मू कश्मीर के लिए लोकसभा चुनावों के लिए घोषित 5 चरणों में होने वाले इस चुनाव में सभी चरणों के बीच के समय का लाभ आतंकी उठाने का प्रयास करेंगें। यही कारण है कि जम्मू कश्मीर में तैनात सुरक्षाबलों को मतदान के दिन के साथ ही पांचों चरणों के बीच के समय में अधिक सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए हैं। कहा यह जा रहा है आतंकियों के कहर से आम नागरिकों को बचाने के इरादों से ही राज्य में चुनावों को पांच चरणों में फैलाया गया है। बावजूद इसके सभी आशंकित है कि चुनाव चरणों के बीच के समय का लाभ आतंकी मतदाताओं को डराने धमकाने के लिए उठा सकते हैं और प्रथम चरण के बाद उनका मकसद अगले चरण के लिए मतदान के लिए तैयार लोगों को भयभीत करना होगा।

वैसे चुनाव प्रचार अवधि कम होने का लाभ चुनाव मैदान में उतरने वाले उठाना चाहते हैं। इस बार भी प्रचार अवधि कम होने पर सबसे अधिक खुशी उन लोगों को है जो कश्मीर से अपना भाग्य आजमाने की तैयारियों में जुटे हुए हैं। हालांकि वर्ष 1996 में राज्य में होने वाले लोकसभा चुनावों में लम्बी चुनाव प्रचार अवधि के कारण अधिकतर प्रत्याशी भय के कारण प्रचार आरंभ ही नहीं कर पाए थे। ऐसा भी नहीं है कि प्रशासन इन सभी पहलुओं से अनभिज्ञ हो बल्कि उसने इस स्थिति से बचने के लिए उपाय करने भी आरंभ किए हैं और सुरक्षाबलों को जारी किए निर्देशों में कहा गया है कि वे सिर्फ मतदान के दिन ही सतर्कता और चौकसी का परिचय न दें बल्कि अधिसूचना जारी होने से लेकर मतों की गिनती पूरी होने तक की अवधि में चौकसी और सतर्कता बरतनी होगी।

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अधिकारियों का मानना है कि इस बार खतरा अधिक है इन चुनावों के दौरान। इसके लिए वे पाकिस्तान की अप्रत्यक्ष छटपटाहट को भी उद्धृत करते हैं और कहते हैं कि माना कि युद्ध के माहौल के बीच पाकिस्तान दोस्ती के हाथ बढ़ा रहा है लेकिन वह भीतरघात की नीति का त्याग अभी भी नहीं कर रहा है। नतीजतन पाकिस्तान चुनाव प्रक्रिया को तहस नहस करने के इरादों से अपनी पूरी ताकत झौंक देने की कोशिश में है क्योंकि यह सर्वविदित है कि कश्मीर में होनेे वाले चुनाव दोनों ही देशों के लिए -भारत तथा पाकिस्तान- मूंछ की लड़ाई के समान होते हैं।

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