आज़ादी (कविता)

By संतोष उत्सुक | Aug 13, 2019

कवि ने व्यक्ति की आजादी अपनी कविता में अच्छा वर्णन किया है। कवि ने बताया कि व्यक्ति अपनी आजादी का कैसे-कैसे फायदा उठाता है। कवि ने कहा कि आदमी स्वतंत्र होने के बाद क्या काम करता है। इस कविता में कवि ने आजादी के महत्व को काफी अच्छे ढंग से चित्रित किया है।

 

बहुत ग़लत चीज़

होती है आज़ादी  

जो चाहे, जब चाहे 

इसका ग़लत फायदा उठाता है

छोटा आदमी, छोटा खेल खेलने को

कुलबुलाता रह जाता है……

बड़ा आदमी बड़ा खेल खेलकर लुप्त हो जाता है

 

सबको उकसाती है स्वतंत्रता 

लुभाती है ......

भरमाती है इतना कि

ज़िंदगी बेशर्म हो जाती है 

सही और ग़लत का फर्क दफन हो जाता है

अफसर मंत्री ठेकेदार का अंतर मिट जाता है

बाप बेटे का रिश्ता हिल जाता है

मां बेटी में वक्त ठन जाता है

गुरू शिष्य एक हो लेते हैं

शेर और बकरी एक फ्रेम में हँसते हैं......

 

आज़ादी यह भी है कि

शारीरिक भूख विकराल हो रही है 

भीड़ हर कहीं संतुलन खो रही है 

हर नुक्कड़ पर धर्म खड़ा है 

हर गली में ज़ख्मी मर्म पड़ा है 

मानवीय रिश्ते हो रहे संपादित  

अपने ही बच्चे अवांछित

पैसा अतिरिक्त, मन मगर रिक्त

दिशाओं पर छाया संचार, मगर

हर तरफ से 

समय समाप्ति की घोषणा……

 

आज़ादी का रियल्टी शो है यह

इतना स्वतंत्र हो उठा है 

आदमी

जितना कि गधा……।

वह गधा जो सड़क के बीच मे

खड़ा है और

पीछे से लगातार, हार्न दे रहे समय के

ट्रक से भी नहीं डरता

 

- संतोष उत्सुक

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