छोटी-सी ये ज़िंदगी, तिनके-सी लाचार !! (कविता)

By डॉo सत्यवान सौरभ | Jun 17, 2020

समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !

छोटी-सी ये ज़िंदगी, तिनके-सी लाचार !!


सुबह हँसी, दुपहर तपी, लगती साँझ उदास !

आते-आते रात तक, टूट चली हर श्वास !!

पिंजड़े के पंछी उड़े, करते हम बस शोक !

जाने वाला जायेगा, कौन सके है रोक !!

होनी तो होकर रहे, बैठ न हिम्मत हार !

समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !!


पथ के शूलों से डरे, यदि राही के पाँव !

कैसे पहुंचेगा भला, वह प्रियतम के गाँव !!

रुको नहीं चलते रहो, जीवन है संघर्ष !

नीलकंठ होकर जियो, विष तुम पियो सहर्ष !!

तपकर दुःख की आग में, हमको मिले निखार !

समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !!


दुःख से मत भयभीत हो, रोने की क्या बात !

सदा रात के बाद ही, हँसता नया प्रभात !!

चमकेगा सूरज अभी, भागेगा अँधियार !

चलने से कटता सफ़र,चलना जीवन सार !!

काँटें बदले फूल में, महकेंगें घर-द्वार !

समय सिंधु में क्या पता, डूबे; उतरे पार !!

छोटी- सी ये ज़िंदगी, तिनके सी लाचार !!


-डॉo सत्यवान सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी,

कवि, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

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