By डॉ. रमेश ठाकुर | Aug 02, 2025
भविष्य में लड़ाई लड़ने के तरीके बदलने वाले हैं। पावरफुल मुल्क बंदूक, तोप, तलवारों या अन्य हथियारों से नहीं, बल्कि मिसाइलो से अतंरिक्ष में बनें 'स्पेस स्टेशनों' से योजना बना रहे हैं। सुखद ख़बर यहां ये है कि भारत भी इस योजना से पीछे नहीं हैं। अन्य देशों की 'मिसाइल अटैक' वाली मंशाओं की संभावनाओं के बीच भारत ने भी अतंरिक्ष में अपना पैर जमा दिया है। ज्यादा नहीं सिर्फ दशक भर बाद किसी पराए नहीं, स्वयं के स्वनिर्मित ‘अतंराष्टीय स्पेस सेंटर’ में उतरा करेंगे हमारे भारतीय अंतरिक्ष यात्री। इसके लिए भारतीय वैज्ञानिकों की कोशिशें अंतिम चरण में हैं। कुल मिलाकर अगर ये मिशन 10 सालों में मुकम्मल होता है, तो स्पेस में भी हम सफलता के झंडे गाड़ देंगे। आत्मनिर्भरता की विधा में जमीन से कोसों मील दूर अंतरिक्ष में अपना स्पेस स्टेशन होगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो द्वारा वर्ष-2035 तक अंतरिक्ष में खुद का ‘इंटरनेशनल स्पेस सेंटर’ बनाने का ऐलान किया जा चुका है। बीते दिनों बेशक शुभांशु शुक्ला नासा अधिकृत मिशन के जरिए स्पेस सेंटर में उतरे हों, पर भविष्य में जब कोई भारतीय अंतरिक्ष में यात्रा करेगा, तो वह अपने स्पेस सेंटर में ही लैंड करेगा। ऐसी सफलता निश्चित रूप से बदलते हिंदुस्तान की अकल्पनीय, करिश्माई, व अनोखी कही जाएगी।
पावरफुल देश अंतरिक्ष क्षेत्र को क्यों तवज्जो देने में लगे हैं? क्यों वहां नित नई तकनीकी शक्तियों के विस्तार में जुटे हैं? क्या भविष्य में ‘स्पेस स्टेशन’ के जरिए मिसाइल अटैक करने की कोई योजनाएं तो नहीं बनाई जा रही हैं? ऐसे तमाम सवाल लोगों के मन में कौंधने लगे। सवाल उठने वाजिब इसलिए भी हैं, क्योंकि मौजूदा वक्त में ज्यादातर देश अपनी लड़ाइयां जमीन को छोड़कर हवाई मिसाइलों से लड़ने लगे हैं। ईरान, इजरायल, गाजा, फिलिस्तीन, यूक्रेन-रूस और अभी हाल में भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव में हुए सीजफायर इसके उदाहरण हैं। शायद वो वक्त दूर नहीं, जब आगामी लड़ाईयों की आहटें हमें सीधे अंतरिक्ष से सुनाई दिया करेंगी। अभी तक दो देशों के बीच जंगें जमीन, हवा और पानी में ही दिखती थी। पर, भविष्य की जंगें अंतरिक्ष से लड़ी जाने की संभावनाओं को नहीं नकारा जा सकता? ये बातें बेशक चौंकाने वाली हों, पर ऐसा मुमकिन होता दिखाई पड़ने लगा है?
अंतरिक्ष स्टेशनों से युद्ध स्तर पर विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक शोधों में कुछ मुल्क बीते कुछ दशकों से लगे हुए हैं। अभी तक अंतरिक्ष में मात्र दो ही स्पेस स्टेशन हैं। पहला, ‘इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन’ जिसे अमेरिका-रूस व अन्य देशों ने अपने साझा प्रयास से मिलकर तैयार किया है। वहीं, दूसरा स्पेस स्टेशन चीन का निजी है। हालांकि अब रूस, अमेरिका, भारत व एकाध और अन्य मुल्क अपने-अपने निजी ‘स्पेस स्टेशन’ बनाने की अंतिम चरणों में हैं। अगले 10 में भारत के अलावा रूस भी अपना स्पेस स्टेशन स्थापित कर लेगा। मकसद भले ही इन स्पेस स्टेशनों का प्रयोग वैज्ञानिक शोधों के लिए हो, लेकिन इस बात से इनकार नहीं कर सकते हैं कि इन स्पेस स्टेशनों के जरिए कुछ देश सैटेलाइट्स मिसाइलों से लड़ाइयां लड़ने का जुगत भिड़ा रहे हों? बहरहाल, 41 बरस बाद शुभांशु शुक्ला के रूप में अब हमारा भी एक अतंरिक्ष यात्री अतंरिक्ष में पहुंचा है जिनके जाने का मकसद 10 साल बाद स्वर्निमित भारतीय स्पेस स्टेशन की तैयारियों की जांच-पड़ताल करना होगा। उनके पहुंचने का माध्यम इस बार भले ही ‘एक्सिओम मिशन-4’ क्यों न रहा हो? लेकिन भविष्य में ये निर्भरता खत्म होने को है।
अंतरिक्ष में निजी स्पेस स्टेशन सिर्फ चीन का है, लेकिन उस दिशा में भारत भी करीब पहुंच चुका है। वर्ष 2009 में अमेरिका ने रूस के साथ एक करार किया था, जिसमें उन्होंने अपना अलग स्पेस स्टेशन बनाने का प्रस्ताव रखा था। उस प्रस्ताव की प्रासंगिकता अब समझ में आती है। अपने निजी स्पेस स्टेशन के जरिए अमेरिका अंतरिक्ष से मिसाइल से लड़ने की योजना बना रहा है। अंतरिक्ष में भी अपना एकछत्र राज करना चाहता है। धरती से अंतरिक्ष की दूरी करीब 62 मील है, जिसे पूरा करने में 28 घंटे लगते हैं। इतनी दूरी वाली मारक क्षमता वाली मिसाइल अमेरिका तैयार कर रहा है। अंतरिक्ष में 24 घंटे में 16 दफे सूर्योदय और 16 बार सूर्यास्त होता है। 90-90 मिनट की दिन और रातें होती है। अंतरिक्ष स्टेशन 24 घंटे में पृथ्वी के चारों ओर लगभग 16 बार चक्कर लगाते हैं। इन सभी की पड़ताल अमेरिका कर चुका है। सैटेलाइट मिसाइलों का प्रयोग अतंरिक्षत से कैसे हो, इसके लिए नासा की रिसर्च बहुत पहले से जारी है।
इसरो और नासा अंतरिक्ष में मानव जीवन, सांस, पानी होने की पड़तालों में भी जुटे हैं। पर, इसरो का अगला कदम सन-2035 में अंतरिक्ष में खुद का ‘भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन’ स्थापित करने के अलावा वर्ष-2040 तक चंद्रमा पर मनुष्य को उतारना है। इसके लिए वह ‘मिशन गगनयान’ को लांच करने की घोषणा पहले ही कर चुका है। इस मिशन में लगे वैज्ञानिकों को विशेष स्पेस ट्रेनिंग दी जा रही है। मौजूदा अंतरिक्ष में शुभांशु की उड़ान न सिर्फ एक मिशन है बल्कि भारतीय अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए एक नए युग में साहसपूर्वक कदम रखने का संकेत भी है। इसरो अपने आगामी ‘गगनयान मिशन’ को अब तक के सबसे बड़े मिशन में गिन रहा है जिसकी तैयारियां में बीते कई वर्षों से देश के टॉप 400 अतंरिक्ष वैज्ञानिक लगे हैं।
- डॉ. रमेश ठाकुर
सदस्य, राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (NIPCCD), भारत सरकार!