दोनों गठबंधनों में उठापटक के बीच बिहार में तीसरे मोर्चे की तैयारी !

By अंकित सिंह | Sep 25, 2020

बिहार विधानसभा चुनाव का ऐलान हो गया है। राज्य में आचार संहिता भी लागू हो गई है। लेकिन दोनों गठबंधनों में अभी भी सीट बंटवारे को लेकर बीच फंसा हुआ है। महागठबंधन टूट की ओर बढ़ रहा है। पहले ही जीतन राम मांझी उससे अलग हो गए हैं। अब उपेंद्र कुशवाहा भी महागठबंधन को आंखें दिखा रहे हैं। मुकेश साहनी भी मन मुताबिक सीट नहीं मिलने पर महागठबंधन से अलग हो सकते हैं। उधर कांग्रेस लगातार आरजेडी पर दबाव बना रही है और 80 से 90 सीटें मांग रही है। वहीं लेफ्ट पार्टी भी तेजस्वी के नेतृत्व को स्वीकार करने में हिचक रही है। ऐसे में शायद ही वह महागठबंधन का हिस्सा बने। फिलहाल महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर कोई दल सहज नहीं है।

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दूसरी ओर एनडीए में लोजपा लगातार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमलावर है। माना जा रहा है कि एनडीए में बात नहीं बनने पर चिराग पासवान खुद विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं और लोजपा उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश कर सकती है। यह कहा जा रहा है कि लोजपा बीजेपी से सीधा-सीधा टक्कर नहीं लेना चाहेगी और जैसा कि वह बार-बार कह रही है कि वह जनता दल यू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतार सकती है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर महागठबंधन से निकलने के बाद उपेंद्र कुशवाहा और एनडीए से अलग होने के बाद चिराग पासवान कहां जाएंगे? ऐसे में अब तीसरे मोर्चे की बात की जा रही है। बिहार में यशवंत सिन्हा, पप्पू यादव और अरुण सिंह पहले से ही तीसरे मोर्चे के विकल्प पर विचार कर रहे है। ऐसे में लोजपा और रालोसपा जैसी पार्टियां तीसरे मोर्चे में शामिल होती हैं तो उसे मजबूती मिलेगी।

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हालांकि कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में शामिल हो सकते हैं। लेकिन बिहार की राजनीति और नीतीश कुमार को समझने वाले इस बात से इंकार कर रहे है। उनका मानना है कि नीतीश कुमार कभी भी उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए में शामिल नहीं होने देंगे। इसके अलावा जिस तरीके से उपेंद्र कुशवाहा ने मोदी सरकार से इस्तीफा देकर भाजपा पर हमले किए थे उसके बाद शायद ही भाजपा उन्हें एनडीए में लेने को लेकर उत्सुक होगी। चिराग पासवान भले ही जदयू को खटक रहे हैं लेकिन भाजपा अभी भी लोजपा को साथ लेकर चलना चाहती है। तभी तो भाजपा शुरू से यह कह रही है कि एनडीए में सब कुछ ठीक है और तीनों दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे। राजनीतिक विशेषज्ञ भी कहते हैं कि लोजपा इस बार बिहार में अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। ऐसे में उसे रिस्क उठाना पड़ेगा।

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लोजपा के लिए परेशानी यह है कि वह भाजपा से तो अलग नहीं होना चाहती और जदयू से उसकी बन नहीं रही। भाजपा से अलग होने का मतलब यह भी होगा कि लोजपा को केंद्रीय नेतृत्व से भी अलग होना पड़ेगा। ऐसे में राज्यसभा में रामविलास पासवान की सीट और उनका मंत्रालय खतरे में पड़ सकता है। खैर, चुनावी तारीखों का ऐलान हो गया है। ऐसे में अब राजनीतिक दल अपनी अपनी रणनीति को आखिरी रूप देने में जुटे है। देखना दिलचस्प होगा कि आखिर बिहार की सियासी रंग किस राजनेता के ऊपर चढ़ती है और किसे यहां की जनता अपना नेतृत्वकर्ता चुनती है।

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