कांग्रेस का सहारा लेने की बजाय खुद अपना आंदोलन आगे बढ़ाएं किसान

By रमेश ठाकुर | Jun 05, 2018

देश में जारी किसान आंदोलन ने इस बार पूरी तरह से सियासी रूप धारण कर लिया है। छह जून को राहुल गांधी किसानों के आंदोलन में शामिल होंगे। आंदोलनकारी किसान राहुल गांधी को किस मकसद से अपने मूवमेंट में शामिल कर रहे हैं? इसलिए तो नहीं कि उनके आने से ज्यादा भीड़ एकत्र होगी? अगर मात्र सिर्फ यही मकसद है तो किसानों को फायदा नहीं होने वाला। किसानों को अपने दम पर अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए। हालांकि कुछ किसान नेता कह रहे हैं कि राहुल अपनी मर्जी से आ रहे हैं। किसान इस बात को जोर देकर कह रहे हैं कि जब तक मांगें नहीं मानी जाएंगी तब तक आंदोलन को लंबा खींचने के लिए सभी किसान इस बार पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतरे हैं। सैंकड़ों किसान संगठन एकजुट होकर सामूहिक तरीके से अपना आक्रोश सरकार के प्रति जता रहे हैं। मध्य प्रदेश में आंदोलन को लेकर भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता आमने−सामने आ गए हैं, जिससे पुलिसकर्मियों को भी काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है। आंदोलन की आग धीरे−धीरे पूरे देश में फैलती जा रही है। अगर स्थिति को समय रहते नहीं रोका गया तो माहौल बेकाबू हो जाएगा।

मौजूदा हिंसक आंदोलन को देखते हुए प्रशासन पूरी तरह से हाई अलर्ट पर है। किसानों को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि आंदोलन हिंसक न हो, अमन−शांति के साथ भी अपनी बात सरकार तक पहुंचाई जा सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कुछ सालों से किसानों की दशा बहुत ही दयनीय हुई है। भारी कर्ज के बोझ में तले किसान लगातार मौत को अपने गले लगा रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन सालों में छत्तीस हजार किसानों ने खुदकुशी की है। ये आकंड़ा दर्शाते हैं कि देश का किसान किस हाल में है। वैसे केंद्र सरकार की तरफ से किसानों को उनकी फसलों पर लागत का डेढ़ गुना कीमत देने का नोटिफिकेशन जारी हो चुका है। इंतजार बस इस बात का है कि उसे लागू कब किया जाएगा। अगर समय रहते किसानों की जरूरी समस्याओं को दूर नहीं किया गया तो हालात और ज्यादा खराब हो जाएंगे।

 

इस समय जो आंदोलन किया जा रहा है उसमें किसान स्वामीनाथन कमीशन को लागू करने और कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं। विगत कुछ सालों से किसानों के समक्ष कर्ज को चुकता न करने की बड़ी समस्या बनी हुई है। कर्ज न चुकाने के पीछे एक ही कारण है उनका किसानी में लगातार घाटा होना। किसान जितनी लागत फसल उगाने में लगा रहे हैं वह भी वापस नहीं हो पा रही। कर्ज समय पर नहीं चुकाने पर बैंक कर्मचारी किसानों को प्रताड़ित करना शुरू कर देते हैं। फिर उनके सामने आत्महत्या के अलावा दूसरा रास्ता दिखाई नहीं देता। इन समस्याओं से निदान पाने के लिए किसान इस बार आरपार के मूड में दिखाई दे रहे हैं। कई राज्यों में किसानों ने मुख्य सड़कों पर कब्जा जमा लिया है, जिससे दोनों तरफ की आवाजाही बंद हो गई है।

 

किसानों ने आंदोलन का स्वरूप इस बार तरीके का बनाया है। पहले चरण में पहली जून से चार जून तक गांवों में युवाओं के सांस्कृतिक कार्यक्रम और पुरानी खेल गतिविधियों पर आधारित रहेगा। इसके बाद पांच जून को किसान धिक्कार दिवस के रूप में मनाएंगे। और अगले दिन यानी छह जून को श्रद्धांजलि के रूप में मनाएंगे। आंदोलन को सियासी रूप देने के लिए छह जून को ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मंदसौर में किसानों के आंदोलन को संबोधित कर अपना समर्थन देंगे। इसके बाद आठ तारीख को असहयोग दिवस के रूप में मनाया जाएगा। और दस जून को किसान पूरे भारत को बंद करने की अपील करेंगे। इस अंतराल में देश के आम लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ सकती है। किसान आंदोलन केंद्र सरकार के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है।

 

खेतीबाड़ी करना आज के समय में सबसे कठिन और घाटे का क्षेत्र माना जाने लगा है। किसान परंपरागत किसानी छोड़ अब दूसरे धंधों में आ रहे हैं। इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखकर करीब 187 किसान संगठनों ने एक मंच पर आकर सभी ने एक सुर में सरकार की गलत नीतियों खिलाफ के आवाज बुलंद की। किसानों की मांगें जायज हैं। सालों से अपना हक मांग रहे हैं। पिछली सरकारों ने भी इनके साथ छल किया। ऐसा लगता है किसानों की जरूरत चुनाव के वक्त वोट की ही मात्र रह गई है। वोट लेने के बाद इनको कोई नहीं पूछता। दरअसल अब किसान फसलों की कीमतों के आकलन के साथ वैध हक के तौर पर पूर्ण लाभकारी कीमतें और उत्पादन लागत पर कम से कम 50 फीसदी का लाभ अनुपात पाना चाहते हैं। उनकी मुख्य मांगों की बात करें तो वह फौरन व्यापक कर्ज माफी सहित कर्ज से आजादी चाहते हैं और कर्ज की समस्या के हल के लिए सांविधिक संस्थागत तंत्र स्थापित किए जाने की भी मांग कर रहे हैं।

 

आंदोलनों की प्रत्यक्ष रूप से मार आम जनता पर ही पड़ती है। आंदोलन के दूसरे दिन ही रोजमर्रा की चीजों की कीमतें आसमान छूने लगती हैं। इस समय भी यही हाल है। किसान मूवमेंट के चलते पिछले दो दिनों से सब्जियों के दाम बढ़ने लगे हैं। किसानों ने जरूरतमंद चीजें जैसे सब्जियां और दूध को सप्लाई न करने का ऐलान किया है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ ऐसे जिले हैं जहां से शहरों में सब्जियां और दूध की भारी मात्रा में सप्लाई होती है। लेकिन अब किसानों ने सप्लाई बंद कर दी है। आगरा−मालवा, खंडवा, खरगोन, ग्वालियर, छिंदवाड़ा, देवास, नरसिंहपुर, नीमच, बालाघाट, बुरहानपुर, भोपाल, मंदसौर, मुरैना, रतलाम, राजगढ़, रायसेन, शाजापुर, श्योपुर, सीहोर, हरदा, एटा, इटावा और होशंगाबाद ये ऐसे इलाके हैं जहां आंदोलन का प्रभाव ज्यादा है। स्थिति और ज्यादा न बिगड़े इसके लिए राज्य सरकारों व केंद्र सरकार को तुरंत प्रभाव से किसान नेताओं से बात करनी चाहिए। और उनकी मांगों पर विचार−विमर्श कर निवारण करना चाहिए। क्योंकि हमारे लिए किसान ही वह जरिया है जिससे हम अपने पेट की भूख की आग को शांत करते हैं। इस लिहाज से दूसरों का पेट भरने वाला जब खुद भूखा होगा तो हमारा पेट कौन भरेगा। किसानों की समस्याओं का तुरंत निवारण होना चाहिए।

 

आंदोलन के जरिए किसान प्रधानमंत्री के उस वायदे को आधार बनाकर चल रहे हैं जो उन्होंने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान कहे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि यदि वह चुने जाते हैं तो किसानों को अपनी फसलों के लिए अच्छी कीमतें मिलेंगी और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाएगा। वर्तमान में लागत और आमदनी के बीच असंतुलन की वजह ईंधन, कीटनाशक, उर्वरक और यहां तक कि पानी सहित लागत की कीमतों में लगातार वृद्धि का होना है। किसान इन समस्याओं का समाधान चाहते हैं। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। यही वजह है कि कीमतों में घोर अन्याय किसानों को कर्ज में धकेल रहा है, वे आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं और देश भर में बार−बार प्रदर्शन हो रहे हैं।

 

-रमेश ठाकुर

 

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