Rajasthan का Pushkar Mela बना देसी ‘ब्रांड शो’, घोड़े-भैंसे की कीमतें करोड़ों रुपए में, ग्रामीण भारत की ताकत देख दुनिया आश्चर्यचकित

By नीरज कुमार दुबे | Oct 29, 2025

राजस्थान का पुष्कर जहां आध्यात्म और आस्था का संगम होता है, इन दिनों पशुधन की दुनिया का भी ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल’ बना हुआ है। यहाँ 23 करोड़ रुपये का भैंसा और 15 करोड़ रुपये का घोड़ा लोगों की जुबान पर हैं और कैमरों की फ्लैश लाइट्स लगातार इनकी ओर घूम रही हैं। पुष्कर मेला, जो सदियों से भारत की पशुपालन परंपरा का प्रतीक रहा है, अब देसी नस्लों के ग्लैमर शो में बदल चुका है, जहां पशुओं की कीमतें किसी लग्ज़री कार या बंगले से कम नहीं हैं।


हम आपको बता दें कि चंडीगढ़ के गैरी गिल के अस्तबल से आया दो साल ढाई महीने का मारवाड़ी घोड़ा ‘शाहबाज’ इस बार मेले का सुपरस्टार है। शाहबाज न सिर्फ कई शो जीत चुका है, बल्कि इसकी वंशावली इतनी शुद्ध बताई जाती है कि इसकी ‘कवरिंग फीस’ (प्रजनन शुल्क) ही दो लाख रुपये है। गैरी गिल ने बताया, “शाहबाज एक रॉयल ब्लडलाइन से है। इसके लिए पहले ही नौ करोड़ तक के ऑफर मिल चुके हैं, लेकिन हम 15 करोड़ से कम पर चर्चा भी नहीं कर रहे।” भीड़ इस घोड़े के पास पहुँचते ही ठहर जाती है। कैमरे क्लिक होते हैं, बच्चे विस्मय से देखते हैं, और बुज़ुर्ग कहते हैं, “ऐसे घोड़े तो राजा-महाराजाओं के अस्तबल में भी कम ही होते थे।”

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दूसरी तरफ, हरियाणा के पलमिंद्र गिल का भैंसा ‘अनमोल’ देसी ताकत और शाही ठाठ का प्रतीक बन चुका है। वजन 1,500 किलो और दाम 23 करोड़ रुपये — यानी एक किलो के दाम तकरीबन 1.5 लाख रुपये। पलमिंद्र गर्व से कहते हैं, “हमने अनमोल को राजाओं की तरह पाला है। रोज़ दूध, देसी घी और सूखे मेवे खिलाए जाते हैं। उसकी चमक देखिए — किसी शाही घोड़े से कम नहीं।” यह सिर्फ एक भैंसा नहीं, बल्कि भारत की देसी नस्लों की ‘ब्रांड वैल्यू’ का चलता-फिरता उदाहरण है।


वहीं उज्जैन का 600 किलो वजनी भैंसा ‘राणा’ भी किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं, जिसकी खुराक ही रोज़ 1,500 रुपये की है। साथ ही जयपुर के बगरू से आए अभिनव तिवारी की 16 इंच ऊँची लघु गाय मेले की मिनी स्टार बन चुकी है। पशु प्रेमियों के लिए यह मेला किसी ‘वर्ल्ड एग्रीकल्चर एक्सपो’ जैसा अनुभव दे रहा है, जहां हर नस्ल, हर पशु के पीछे मेहनत, लगन और परंपरा की कहानी है।


अजमेर ग्रामीण के डीएसपी रामचंद्र चौधरी ने बताया कि इस बार सुरक्षा के अभूतपूर्व इंतज़ाम किए गए हैं। “दो हज़ार से अधिक पुलिसकर्मी तैनात हैं। ट्रैफिक से लेकर भीड़ प्रबंधन तक सब पर विशेष निगरानी है।'' 4,300 से अधिक पशु अब तक पंजीकृत हो चुके हैं— जिनमें 3,028 घोड़े और 1,306 ऊंट शामिल हैं। पशुपालन विभाग ने पशुओं की पहचान और स्वास्थ्य जांच के लिए डिजिटल टैगिंग और रिकॉर्डिंग सिस्टम लागू किया है। संयुक्त निदेशक डॉ. सुनील घिया के अनुसार, “हर पशु का मेडिकल चेकअप किया जा रहा है, ताकि किसी भी संक्रामक रोग का खतरा न रहे। मेला स्थल पर 24 घंटे पशु चिकित्सकों की टीम मौजूद है।”


देखा जाये तो यह मेला सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत की आत्मा का उत्सव है। यहाँ ‘सर्वश्रेष्ठ अश्व नस्ल’, ‘सर्वश्रेष्ठ दुग्ध उत्पादक’, और ‘सर्वश्रेष्ठ साज-सज्जा वाला ऊंट’ जैसी प्रतियोगिताएँ दिखाती हैं कि पशुपालन भारत में सिर्फ आजीविका नहीं, बल्कि सम्मान और गौरव की परंपरा है। पुष्कर का यह रंग-बिरंगा मेला बताता है कि आधुनिकता की दौड़ में भी देसी नस्लें और देसी जज़्बा आज भी भारत की असली ताकत हैं।


15 और 23 करोड़ की कीमतें भले चौंकाती हों, लेकिन इन पशुओं के पीछे वर्षों की देखभाल, आनुवंशिक शोध और परिश्रम छिपा है जो भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को न सिर्फ संजीवित कर रहे हैं, बल्कि ‘Made in India’ की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं।


देखा जाये तो पुष्कर मेला आज सिर्फ ऊंट, घोड़े या भैंसों का बाज़ार नहीं रहा, यह भारत की पशुधन संस्कृति का ग्लोबल ब्रांड शोकेस बन चुका है। यह उस भारत की तस्वीर है, जहां परंपरा आधुनिकता से हाथ मिला रही है; जहां ग्रामीण अर्थव्यवस्था ‘स्टार्टअप इकोनॉमी’ की तरह नवाचार की भाषा सीख रही है। यह मेला हमें याद दिलाता है कि भारत की असली ताकत न तो शेयर मार्केट में है, न ही मेट्रो शहरों की चकाचौंध में— बल्कि खेतों, खलिहानों और इन जैसे मेलों में है, जहां मिट्टी अब भी सोना उगलती है।

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