राहुलजी, हाफिज सईद की रिहाई मोदी की विफलता कैसे हो गयी?

By डॉ. दिलीप अग्निहोत्री | Nov 28, 2017

अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी की पाकिस्तान में रिहाई वस्तुतः विश्व समुदाय की चिंता होनी चाहिए। अनेक देशों ने इस पर पार्टी लाइन से ऊपर उठकर चिंता भी व्यक्त की है। उसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने आतंकवादी घोषित किया था। दस मिलियन डॉलर अर्थात 65 करोड़ रुपये का ईनाम रखा गया। उसका रिहा होना केवल भारत की समस्या नहीं है। अमेरिका में कांग्रेस के उस निर्णय की आलोचना हो रही है, जिसमें पाकिस्तान को सहायता के लिए लगाई गई शर्तें शिथिल की गईं। वैसे वहां के सत्ताधारी और विपक्ष दोनों ने उसकी रिहाई को अनुचित कहा है। जबकि भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने इसे लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला बोला है। राहुल विरोध की इस धुन में भूल जाते हैं कि इसकी गूंज कहां तक जाएगी। पहला सन्देश तो यही गया कि भारत में आतंकवाद के खिलाफ राष्ट्रीय सहमति नहीं है। राहुल ने मोदी की विदेश नीति को विफल घोषित कर दिया। राहुल की बताना चाहिए कि मुम्बई हमले के बाद से छह वर्षों तक उनकी सरकार इस मसले पर कितनी सफल थी। उसका रिहा होना पाकिस्तान की व्यवस्था का तात्कालिक परिणाम है।

पाकिस्तानी निजाम की असलियत एक बार फिर सामने आ गई। वहां की एक अदालत ने आतंकी सरगना हाफिज सईद को रिहा कर दिया। यह फैसला न्यायपालिका का था। उसने मौजूदा प्रमाणों का संज्ञान नहीं लिया। कार्यपालिका अर्थात सरकार ने उसके खिलाफ नए सिरे से आरोप पत्र दाखिल करने से इनकार कर दिया। इसके अलावा व्यवस्थापिका अर्थात नेशनल असेंबली में भी आतंकी की रिहाई पर खुश होने वाले प्रतिनिधि मौजूद हैं। यह वहां के शासन के तीनों अंगों की दशा है। किसी में भी आतंकवाद को समाप्त करने की इच्छाशक्ति नहीं बची है। सेना के वर्चस्व ने इनको इस मामले में नाकारा बना दिया है। इसके पहले भारतीय नागरिक को अदालत द्वारा मृत्युदंड देने में भी यही हुआ था। उन्हें ईरान सीमा से पकड़ा गया था। जहाँ वह निजी व्यापार के सिलसिले में गए थे। पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया। भारत को बदनाम करने के लिए उन पर जासूसी का आरोप लगाया और सैनिक अदालत ने उन्हें मृत्युदंड दे दिया। कहने को पाकिस्तान में संविधान है। निर्वाचित संसद है, निर्वाचित कार्यपालिका है। लेकिन जो मसला सेना अपने नियंत्रण में लेती है, उस पर न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका तीनों लाचार हो जाती हैं।  इसी व्यवस्था ने पाकिस्तान को आतंकी मुल्क के रूप में स्थापित कर दिया है। यह विचार यहां की राजनीति में समाहित हो चुका है। कोई नेता या सियासी पार्टी इससे बाहर नहीं जा सकती। यह पाकिस्तानी सियासत की मुख्यधारा है।

 

पाकिस्तान के हौसले बुलंद करने में अमेरिका और चीन भी बहुत जिम्मेदार हैं। चीन तो इसी आतंकी का सुरक्षा परिषद परिषद तक में खुलेआम बचाव करता है। अमेरिकी कांग्रेस ने कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान को सहायता देने के लिए लागू शर्तों को लचीला बनाया है। पहले शर्त यह थी कि पाकिस्तान हक्कानी और लश्कर तैयबा के खिलाफ कार्रवाई करेगा तभी उसे सहायता दी जाएगी। लेकिन अब इससे लश्कर को बाहर कर दिया गया है। मतलब पाकिस्तान केवल हक्कानी के खिलाफ कार्रवाई करेगा तब भी उसे सहायता दी जा सकेगी। यह अमेरिकी कांग्रेस का अनुचित प्रस्ताव है। हक्कानी का आतंकी नेटवर्क अफगानिस्तान में है। इसलिए अमेरिका की कांग्रेस ने वहीं तक चिंता की। लश्कर भारतीय सीमा पर सक्रिय है। इसे शर्त से हटा दिया। अमेरिकी कांग्रेस यह भूल गई कि ऐसी सीमित सोच ने ही उस पर आतंकी हमले का रास्ता तैयार किया था। अमेरिका, यूरोप के देश निश्चिंत थे कि इस्लामी आतंकवाद पाकिस्तान के पड़ोसी देशों की समस्या है। लेकिन इससे अमेरिका भी शिकार बना।  यूरोप भी सुरक्षित नहीं रहा। एक बार फिर अमेरिकी कांग्रेस ने वही गलती दोहराई है।

 

लेकिन इससे यह नहीं मानना चाहिए कि भारत अमेरिका के संबंध खराब हो गए हैं। अमेरिका प्रजातांत्रिक देश है। व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में मतभेद पहले भी होते रहे हैं लेकिन यह मानना होगा कि राष्ट्रपति ट्रम्प भारत से रक्षा सहित कई अन्य क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हैं। अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया के बीच संयुक्त सहयोग की स्थापना महत्वपूर्ण है। जो लोग केवल हाफिज की रिहाई से खुश हैं या इसे नरेंद्र मोदी की विफलता मान रहे हैं, वह अपनी संकुचित दृष्टि का प्रदर्शन कर रहे हैं।

 

- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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