Ramdhari Singh Dinkar Death Anniversary: कलम से देश की आजादी का अलख जगाते थे रामधारी सिंह दिनकर

By अनन्या मिश्रा | Apr 24, 2025

आज ही के दिन यानी की 24 अप्रैल को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का निधन हो गया था। वह एक राष्ट्रकवि होने के साथ जनकवि भी थे। उनकी गिनती ऐसी कवियों में की जाती हैं, जिनकी कविताएं आम आदमी से लेकर विद्वानों तक भी पसंद करते हैं। देश की गुलामी से लेकर आजादी मिलने तक के सफर को दिनकर ने अपनी कविताओं द्वारा व्यक्त किया है। दिनकर की कविताओं में विद्रोह, ओज, आक्रोश और क्रांति की पुकार है। तो वहीं दूसरी ओर कविताओं में कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति भी देखने को मिलती है। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और शिक्षा

बिहार राज्य में पड़ने वाले बेगूसराय जिले के सिमरिया ग्राम में 23 सितंबर 1908 को रामधारी सिंह दिनकर का जन्म हुआ था। इनके पिता एक साधारण किसान थे। वहीं जब दिनकर 2 साल के थे, तो उनके पिता का निधन हो गया था। ऐसे में दिनकर और उनके बहन-भाई का पोषण मां ने किया था। फिर साल 1928 को उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। फिर पटना विश्वविद्यालय इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान में बीए किया। इसके अलावा दिनकर ने बांग्ला, संस्कृत और उर्दू का गहन अध्ययन किया। इसके बाद वह मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे। भागलपुर यूनिवर्सिटी में उपकुलपति के पद पर रहे और फिर भारत सरकार के हिंदी सलाहकार बने।

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रचनाएं

बता दें कि रामधारी सिंह दिनकर की पहली रचना साल 1930 के दशक में 'रेणुका' प्रकाशित हुई थी। फिर करीब तीन साल बाद रचना 'हुंकार' प्रकाशित हुई। तो देश के युवा दिनकर के लेखन से चकित रह गए। इसके अलावा दिनकर की रचना 'संस्कृति के चार अध्याय' के साल 1959 में उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया था। फिर साल 1959 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।


राजनीतिक सफर

कवि होने के साथ-साथ रामधारी सिंग दिनकर स्वतंत्रता सेनानी भी थे। इसके अलावा उनको राजनीति में भी रुचि थी। साल 1952 में जब पहली बार भारत की पहली संसद का गठन हुआ था। तो वह राज्यसभा के सदस्य के रूप में चुने गए थे और वह दिल्ली चले गए। दिनकर की फेमस पुस्तक 'संस्कृति के चार अध्याय' की प्रस्तावना तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने लिखी है। इस प्रस्तावना में पीएम नेहरु ने दिनकर को अपना 'साथी' और 'मित्र' बताया है।


मृत्यु

वहीं 24 अप्रैल 1974 को 65 साल की उम्र में रामधारी सिंह दिनकर का बेगुसराय में निधन हो गया था।

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