By टीम प्रभासाक्षी | Dec 28, 2021
रतन टाटा किसी पहचान के मोहताज नहीं है। रतन टाटा का नाम दिग्गज कारोबारियों की फेहरिस्त में शामिल है। रतन टाटा ने टाटा समूह को दुनिया के बड़े कॉरपोरेट घरानों में से एक बनाने के लिए दशकों तक कड़ी मेहनत की है। टाटा समूह को बुलंदियों पर पहुंचाने में रतन टाटा का बहुत बड़ा योगदान रहा है, रतन टाटा जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति हैं। उनका आकर्षण उनके व्यक्तित्व की सादगी है। इतने बड़े कारोबार के मालिक होने के बावजूद रतन टाटा में वह सादगी नजर आती है। रतन टाटा की पैदाइश भले ही राजकुमार की हो, लेकिन रतन टाटा ने पढ़ाई से लेकर अपने करियर तक का सफर कठिन परिश्रम से तय किया है। बहुत कम लोग ही जानते हैं कि, पढ़ाई के वक्त रतन टाटा को रेस्तरां में जूठे बर्तन धोने पड़े। और अपनी शुरुआती नौकरी में उन्होंने फावड़े चलाने का काम भी किया।
आज इस दिग्गज शक़्स का जन्मदिन है। रतन टाटा की पैदाइश आज ही के दिन 1937 में हुई थी। जेआरडी टाटा के बाद टाटा समूह की कमान रतन टाटा के हाथ में आ गई। रतन टाटा ने अपनी जिंदगी में कई अच्छे और बुरे तजुर्बे का सामना किया। रतन टाटा पर सबसे ज्यादा असर उनके मां बाप के तलाक का हुआ। उनकी मां ने जब दूसरी शादी कर ली तो उन्हें स्कूल में इसके लिए ताने भी सुनने पड़े। इस बारे में रतन टाटा ने कुछ ही वक्त पहले सोशल मीडिया पर अपने तजुर्बे को साझा किया था। रतन टाटा बताते हैं कि, कि उन्हें अपनी दादी से सीख मिली इस कारण वह ऐसे हालातों को इग्नोर करके आगे बढ़ जाते थे।
कॉलेज के दिनों में था विमान उड़ाने का शौक
अमेरिका के कॉरनेल विश्वविद्यालय से रतन टाटा की उच्च शिक्षा हुई। जहां उन्होंने आर्किटेक्चर की डिग्री हासिल की। यह उन्हीं दिनों का वाकया जब रतन टाटा को विमान उड़ाने का शौक हुआ। अमेरिका में उन दिनों ऐसे सेंटर खुल चुके थे जो विमान उड़ाने की सुविधा देते थे। रतन टाटा को भी अपना शौक पूरा करने का मौका मिल गया। लेकिन दिक्कत थी पैसों की, तब उन्हें इतने पैसे नहीं मिलते थे कि वह विमान उड़ाने की फीस भर सकें। लिहाजा रतन टाटा ने विमान उड़ाने के लिए फीस जुटाने की ठानी और इसके लिए उन्होंने कई नौकरियां करनी शुरू कर दीं। इस दौरान कुछ समय के लिए रतन टाटा ने रेस्तरां में जूठे बर्तन धोने की भी नौकरी की।
रतन टाटा ने फावड़ा भी चलाया
परिवार के कारोबार से जोड़ने से पहले रतन टाटा ने अमेरिका में 2 साल तक कंपनी में आर्किटेक्चर की नौकरी भी की थी। 1962 में वे समूह से जुड़े तो उन्हें अपनी पहली नौकरी टेल्को ( अब टाटा मोटर्स) के शॉप फ्लोर पर मिली। इसके बाद रतन टाटा ने करियर की शुरुआत टाटा स्टील के साथ की। टाटा स्टील में उनकी नौकरी ब्लास्ट फर्नेश की टीम में काम करने की थी। इस काम को करने में रतन टाटा फावड़ा चला कर चूना पत्थर भी उठाया करते थे
जेआरडी टाटा की विरासत को ले गए आगें
अपनी काबिलियत के दम पर रतन टाटा धीरे धीरे टाटा समूह में एक-एक सीढ़ी ऊपर चढ़ते गए। 1981 में वे टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बन गए और उन्हें जेआरडी टाटा का उत्तराधिकारी मान लिया गया। जेआरडी टाटा ने 1991 में जब रिटायरमेंट ली तो पूरे टाटा समूह की जिम्मेदारी रतन टाटा के कंधों पर आ गई। रतन टाटा 2012 तक अपने इस पद पर रहे, उनकी अगुवाई में टाटा समूह ने एक नई उड़ान भरी और टाटा समूह का रेवेन्यू 100 बिलियन डॉलर को पार कर गया।
कई दिग्गज यूरोपीय कंपनियां टाटा के खाते में आई
भारत के गुलाम बनने के इतिहास में ईस्ट इंडिया कंपनी के चाय कारोबार को अहम माना जाता है। रतन टाटा ने ब्रिटेन के फेमस टी ब्रांड टेटली को 2000 में खरीद लिया था उसके बाद इसे टाटा समूह का हिस्सा बना दिया। रतन टाटा ने विदेशी कंपनियों को अपने समूह में मिलाने का सिलसिला यही नहीं रोका, बल्कि 2007 में उन्होंने एंग्लो डच कंपनी कोरस ग्रुप को टाटा समूह में शामिल किया। और 2008 में जगुआर लैंड रोवर का भी अधिग्रहण कर लिया।
टाटा का व्यापार 100 से ज्यादा देशों में फैला है
टाटा संस और टाटा ग्रुप के चेयरमैन Emeritus रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह की कंपनियों के व्यापार में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। हाल ही में एयर इंडिया भी दोबारा टाटा समूह के हिस्से में आ गई। आज टाटा समूह की कंपनियां 100 से अधिक देशों में अपना कारोबार कर रही हैं। टाटा समूह की 29 कंपनियों का एमकैप 242 बिलियन डॉलर का है।