By विजय कुमार | Mar 16, 2022
पर्वत उधर सुबेल था, बैठे लक्ष्मण-राम
बना रहे थे योजना, लड़ने की अविराम।
लड़ने की अविराम, विभीषण ने बतलाया
एक बाण रघुनंदन ने इस तरह चलाया।
कह ‘प्रशांत’ रावण का मुकुट गिरा धरती पर
कर्णफूल मंदा रानी के कटे सरासर।।11।।
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चमत्कार यह देखकर, हुए सभी हैरान
पर रावण के सिर चढ़ा, था भारी अभिमान।
था भारी अभिमान, कहा अपने घर जाओ
डरने की कुछ बात नहीं, सब मौज मनाओ।
कह ‘प्रशांत’ लेकिन चिंतित थी मंदा रानी
हाथ जोड़कर बोली, अतिशय मीठी बानी।।12।।
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प्राणेश्वर हठ छोड़कर, करो राम से प्रीति
मेरी नजरों में यही, सबसे उत्तम रीति।
सबसे उत्तम रीति, मगर रावण ना माना
हठी बहुत था, बैर राम से पक्का ठाना।
कह ‘प्रशांत’ अब समझ गयी यह मंदा रानी
मृत्यु पाश में बंधा हुआ रावण अभिमानी।।13।।
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रघुनंदन थे कर रहे, सबसे वहां विचार
जामवंत बोले गुणी, चरणों में सिर धार।
चरणों में सिर धार, दूत इक वहां पठाएं
जो रावण को अंतिम बार बात समझाए।
कह ‘प्रशांत’ है बुद्धिमान अंगद युवराजा
उसे भेजना उचित रहेगा राघवराजा।।14।।
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सबको ही अच्छी लगी, जामवंत की राय
युद्ध टालने का यही, अंतिम एक उपाय।
अंतिम एक उपाय, राम के भाया मन को
दूत बनाकर लंका में भेजें अंगद को।
कह ‘प्रशांत’ राघव बोले हे चतुर सुजाना
काम हमारा बन जाए, ऐसा कर आना।।15।।
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अंगद सुन हर्षित हुए, काम मिला मजबूत
रावण के दरबार में, जाएंगे बन दूत।
जाएंगे बन दूत, काम वह कर आएंगे
लंका के सब लोग चकित से रह जाएंगे।
कह ‘प्रशांत’ श्रीराम चरण में शीश नवाया
और किया प्रस्थान बोलकर जय रघुराया।।16।।
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लंका में जैसे घुसे, हुआ बड़ा इक काम
रावण का बेटा मिला, कीन्हा काम तमाम।
कीन्हा काम तमाम, मच गया हाहाकारा
जिसने लंक जलाई, आया फिर दोबारा।
कह ‘प्रशांत’ जिससे पूछो, वह था हकलाता
चुप्पी साधे रस्ते को बतलाता जाता।।17।।
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अंगद पहुंचा सभा में, मानो सिंह समान
सभी सभासद उठ गये, देने को सम्मान।
देने को सम्मान, क्रुद्ध हो रावण गरजा
तू है बंदर कौन, कहां किसकी है परजा।
कह ‘प्रशांत’ किसकी आज्ञा से है तू आया
अंगद ने अपना पूरा परिचय करवाया।।18।।
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हूं राघव का दूत मैं, अंगद मेरा नाम
भला तुम्हारा चाहने, को भेजे श्रीराम।
को भेजे श्रीराम, बालि का हूं मैं बेटा
याद करो, थी उनसे हुई तुम्हारी भेंटा।
कह ‘प्रशांत’ है मौका अभी बात निबटाओ
छोड़ो सीताजी को, शरण राम की आओ।।19।।
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करो प्रार्थना आर्त हो, रक्षा कीजे नाथ
कर देंगे तुमको क्षमा, देंगे पूरा साथ।
देंगे पूरा साथ, क्रोध में रावण आया
रे अंगद, कुलनाशक, तूने वंश डुबाया।
कह ‘प्रशांत’ था बाली मेरा मित्र पुराना
बतला उसकी कुशल, कहां है ठौर-ठिकाना।।20।।
- विजय कुमार