काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-6

By विजय कुमार | May 26, 2021

सभी देव हर्षित हुए, बाजे बजे अपार

फूलों की वर्षा हुई, आनंदित संसार।

आनंदित संसार, अश्व गज गोधन-मणियां

सोने-चांदी के बर्तन हीरे की लडि़यां।

कह ‘प्रशांत’ दीना दहेज अकूत हिमवाना

चरण पकड़कर बोले हे शंकर भगवाना।।61।।

-

मैना के आंखों भरा, गंगा-जमुना नीर

चरणकमल शंकर गहे, होकर बड़ी अधीर।

होकर बड़ी अधीर, उमा प्राणों से प्यारी

करना सब अपराध क्षमा हे गंगाधारी।

कह ‘प्रशांत’ भोले ने दोनों को समझाया

धीरे-धीरे समय विदाई का हो आया।।62।।

-

मैना बोली हे उमा, सुन मेरी यह बात

पति की सेवा धर्म है, तू नारी की जात।

तू नारी की जात, उन्हीं की करना पूजा

छोड़ उन्हें नारी जीवन में देव न दूजा।

कह ‘प्रशांत’ इस तरह उसे पतिधर्म बताया

सजी पालकी थी सुंदर उसमें बैठाया।।63।।

-

सबकी आंखों में नमी, चेहरे हुए उदास

धीरे-धीरे पालकी, बढ़ी धाम कैलास।

बढ़ी धाम कैलास, देवता हर्षित होकर

करने लगे पुष्प वर्षा मंगल जोड़ी पर।

कह ‘प्रशांत’ दोनों फिर पहुंचे अपने घर में

नित्य नया उत्साह समाया था जीवन में।।64।।

-

पार्वती ने यों कही, इक दिन मन की बात

रामकथा जो है मधुर, मुझे सुनाओ तात।

मुझे सुनाओ तात, चरित उनका समझाओ

जन्म बाल लीला-विवाह सब कुछ बतलाओ।

कह ‘प्रशांत’ रावण मारा फिर किया सुराजा

प्रजा सहित निज धाम गये फिर राघव राजा।।65।।

-

शिवजी को अच्छा लगा, सुन यह श्रेष्ठ विचार

पुलकित हुआ शरीर सब, परमानंद अपार।

परमानंद अपार, दो घड़ी ध्यान लगाया

और राम के बाल रूप को शीश नवाया।

कह ‘प्रशांत’ जो कथा राम की कहे-सुनेगा

उसको कामधेनु-सेवा का पुण्य मिलेगा।।66।।

-

हैं अनंत श्रीरामजी, कथा कीर्ति-गुणगान

संदेहों को छोड़कर, धरो चरण में ध्यान।

धरो चरण में ध्यान, वेद जिनके गुण गाते

ज्ञानी ध्यानी मुनिजन शरणागति हैं पाते।

कह ‘प्रशांत’ वे अवधपति दशरथ के नंदन

भक्तों के हितकारी कीजे उनका वंदन।।67।।

-

जब अधर्म बढ़ता बहुत, घटता धर्म अपार

तब-तब कृपानिधान प्रभु, लेते हैं अवतार।

लेते हैं अवतार, भक्त को अभय दिलाते

और दुष्ट को मार, धरा का भार घटाते।

कह ‘प्रशांत’ श्रीरामचंद्र आये इस कारण

असुरजनों का नाश हुआ, संतों का रक्षण।।68।।

-

जाने कितने कल्प हैं, जाने कितने नाम

अलग-अलग हैं रूप पर, एक वही श्रीराम।

एक वही श्रीराम, सभी की कथा सुनाना

नहीं लेखनी को संभव सब बात बताना।

कह ‘प्रशांत’ यह सब सुन पार्वती चकराई

तब शंकरजी ने आगे कुछ कथा बढ़ाई।।69।।

-

एक बार नारद मुनी, को जागा अभिमान

तब उस कृपानिधान ने, सोचा एक निदान।

सोचा एक निदान, नगर इक नया बसाया

और स्वयंवर एक वहां विशाल रचवाया।

कह ‘प्रशांत’ नारद का बंदर रूप बनाकर

छोड़ दिया फिर उनको सबके साथ बिठाकर।।70।।


- विजय कुमार

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