By विजयेन्दर शर्मा | Aug 17, 2021
शिमला -- देवभूमि हिमाचल में वैसे तो वर्ष भर मेले, त्यौहार व जातरें होती रहती हैं मगर चंबा मणिमहेश भरमौर जातर का विशेष महत्व है। माना जाता है कि ब्रम्हाणी कुंड में स्नान किए बिना मणिमहेश यात्रा अधूरी है।
आदिकाल से प्रचलित मणिमहेश यात्रा कब से शुरू हुई यह तो पता नहीं मगर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह बात सही है कि जब मणिमहेश यात्रा पर गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ जा रहे थे तो भरमौर तत्कालीन ब्रम्हापुर में रुके थे। ब्रम्हापुर जिसे माता ब्रम्हाणी का निवास स्थान माना जाता था मगर गुरु गोरखनाथ अपने नाथों एवं चौरासी सिद्धों सहित यहीं रुकने का मन बना चुके थे।
वे भगवान भोलेनाथ की अनुमति से यहां रुक गए मगर जब माता ब्रम्हाणी अपने भ्रमण से वापस लौटीं तो अपने निवास स्थान पर नंगे सिद्धों को देख कर आग बबूला हो गईं। भगवान भोलेनाथ के आग्रह करने के बाद ही माता ने उन्हें रात्रि विश्राम की अनुमति दी और स्वयं यहां से 3 किलोमीटर ऊपर साहर नामक स्थान पर चली गईं, जहां से उन्हें नंगे सिद्ध नजर न आएं मगर सुबह जब माता वापस आईं तो देखा कि सभी नाथ व चौरासी सिद्ध वहां लिंग का रूप धारण कर चुके थे जो आज भी इस चौरासी मंदिर परिसर में विराजमान हैं। यह स्थान चौरासी सिद्धों की तपोस्थली बन गया, इसलिए इसे चौरासी कहा जाता है।
गुस्से से आग बबूला माता ब्रम्हाणी शिवजी भगवान के आश्वासन के बाद ही शांत हुईं। भगवान शंकर के ही कहने पर माता ब्रम्हाणी नए स्थान पर रहने को तैयार हुईं तथा भगवान शंकर ने उन्हें आश्वासन दिया कि जो भी मणिमहेश यात्री पहले ब्रम्हाणी कुंड में स्नान नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं मानी जाएगी। यानी मणिमहेश जाने वाले प्रत्येक यात्री को पहले ब्रम्हाणी कुंड में स्नान करना होगा, उसके बाद ही मणिमहेश की डल झील में स्नान करने के बाद उसकी यात्रा संपूर्ण मानी जाती है। ऐसी मान्यता सदियों से प्रचलित है।
इस वर्ष इस पवित्र यात्रा का छोटा स्नान कृष्ण जन्माष्टमी यानी 30 अगस्त को तथा मुख्य एवं बड़ा स्नान उसके 15 दिन बाद होगा। यात्रा पूरी तरह से मणिमहेश यात्रा ट्रस्ट के अधीन हो रही है। हड़सर से 13 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई एवं समुद्र तल से 13500 फुट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश की डल झील एवं कैलाश दर्शन में भोलेनाथ के प्रति लोगों में इतनी श्रद्धा बढ़ गई है कि मौसम एवं कड़ाके की शीतलहर के बावजूद लाखों की संख्या में शिव भक्त यहां आते हैं। यही वजह है कि अटूट श्रद्धा के प्रतीक चौरासी मंदिर परिसर, ब्रम्हाणी माता एवं मणिमहेश लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींच कर महीनों तक शिवजी के उद्घोषों से पूरे वातावरण को शिवमयी बनाए रखते हैं।
मणिमहेश यात्रा का आयोजन इस बार भी कोविड संक्रमण के दृष्टिगत रस्मी तौर पर ही होगा 29 अगस्त से 12 सितंबर तक आयोजित होने वाली श्री मणिमहेश यात्रा के दौरान धार्मिक रस्मो का निर्वहन सीमित रूप में ही होगा । इस दौरान छड़ी यात्रा में 25 सदस्यों से ज्यादा लोग शामिल नहीं हो पाएंगे । सचुँई के शिव चेलों की संख्या भी सीमित रूप में ही रहेगी
आपदा प्रबंधन नियमों के तहत जारी नई दिशा निर्देशों के मुताबिक श्री मणिमहेश यात्रा में भी कोविड नियमों की अनुपालना को कड़ाई से सुनिश्चित किया जाएगा । प्रशासन की अनुमति से छड़ी यात्रा में शामिल व शिव चेलों के लिए भी वैक्सीन की दोनों डोज लगी होनी चाहिए तथा 72 घंटे पूर्व आरटी पीसीआर की नेगेटिव रिपोर्ट भी होना अनिवार्य होगी । भद्रवाह से आने वाली सभी छड़ियों में पच्चीस से ज्यादा लोग शामिल नहीं हो पाएंगे ।
राधा अष्टमी को ही इन लोगों के लिए यात्रा के दौरान व्यवस्था रहेगी। कृष्ण जन्माष्टमी से पूर्व पुलिस विभाग द्वारा जिला के प्रवेश द्वारों पर चेक पोस्ट निगरानी के लिए स्थापित की जाएगी । होली,तयारी , हड़सर, दुर्गेठी, राख, सुल्तानपुर, लाहडू, लंगेरा, खैरी और तुनू हट्टी में भी चेक पोस्ट बेरियर स्थापित किए जाएंगे ताकि श्री मणिमहेश यात्रा के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को कोविड- संक्रमण से एहतियातन रोका जा सके ।