बैंकों की पूंजी, ऋण देने पर पाबंदी के नियम मोटे अनुमानों, नियमों पर आधारित

By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Nov 08, 2018

मुंबई। भारतीय स्टेट बैंक की एक अनुसंधान रपट में कहा गया है कि भारत में बैंकों के पूंजी आधार, वसूल नहीं हो रहे ऋणों के लिए नुकसान के प्रावधान और कमजोर बैंकों पर कर्ज आदि देने पर पाबंदी के लिए तत्काल सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) के नियमन मोटे अनुमानों के आधार पर और नियम आधारित हैं। एसबीआई की इस रपट में कहा गया है कि इन पर पुनर्विचार करने की फिलहाल कोई जरूरत नहीं दिखती। यह रपट ऐसे समय आयी है जबकि इन विषयों पर सरकार और बैंकिंग विनियामक आरबीआई के दृष्टिकोण को लेकर तीखी बहस छिड़ी हुई है।

 

रपट में कहा गया है कि नियम आधारित या मोटे अनुमानों पर आधारित विनियमन या प्रतिबंध में से कौन सा अच्छा होता है, यह हमेशा से बहस का विषय है। सोमवार को जारी इस रपट में भारत में पीसीए नियमों की तुलना अमेरिका के संघीय जमा बीमा निगम (एफडीआईसी) के नियमों से की गयी है। भारत में रिजर्व बैंक सुधार कार्रवाई (पीसीए) के तहत 11 सरकारी बैंकों के खिलाफ अब तक रिण कारोबार में कई पाबंदिया लगा चुका है। 

 

पीसीए के नियम पिछले साल ही लागू किए गये ताकि शुद्ध एनपीए (अवरुद्ध रिणों) के ऊंचे अनुपात, निवेश की गयी पूंजी पर घाटा और सुरक्षित पूंजी के हल्के आधार वाले बैंकों को अधिक जोखिम में पड़ने से बचाया जा सके। बहुत से देशों में नियामक की ओर से बैंकों को बासेल-3 नियमों के तहत निर्धारित न्यूनतम पूंजी से अधिक अनुपात में पूंजी रखने को कहा गया है। मसलन अमेरिका में बफर के लिए 5 प्रतिशत पूंजी रखने का नियम है। प्रणाली की दृष्टि से महत्वपूर्ण कंपनियों के लिए यह बफर में न्यूनतम पूंजी 6 प्रतिशत रखने की अनिवार्यता की गयी है। 

 

भारत में रिजर्व बैंक ने बैंकों के लिए न्यूतम बफर पूंजी का अनुपात जोखिम भरी सम्पत्तियों का 9 प्रतिशत रखने का नियम लागू कर रखा है। रपट में कहा गया है कि इन मामलों में नियम आधारित या मोटे अनुमान के आधार पर लागू प्रावधान या पाबंदियों में से किसी एक का पक्ष लेना मुश्किल है। ऐतिहासिक अनुसंधानों (ग्रेग मैनकीव) से यह संकेत मिलता है कि विनियामक विश्वसनीय हो तो उसका विवेक के आधार पर अपनाया गया दृष्टिकोण भी वांछित परिणाम के लिए उपयुक्त हो सकता है।

 

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