मैं और मेरा मोटापा (व्यंग्य)

By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ | Oct 14, 2022

मैं गंडीपेट (हैदराबाद का सबसे बड़ा जलाशय) का अवतार नहीं हूँ। फिर भी बहुत मोटा हूँ। माँ का प्यार कहिए या उनके घी का कमाल कि बचपन में मच्छर सा दिखने वाला मैं अब बाहुबली फिल्म का सांड लग रहा हूँ। मुझे बचपन से इतना घी खिलाया गया कि मुझे पानी पीते समय भी उसमें घी दिखाई देने लगा। मेरे लिए सावन का हरा वाला मुहावरा घी की चमक से चौंधियाई आँखों को हर चमकती चीज़ घी दिखाई देने लगी। कभी-कभी तो मुझे लगता है कि मेरे बदन में खून नहीं घी की नदियाँ बह रही हैं। बचपन में मुझे घरवाले छोटू कहकर पुकारते थे। अब इतना भोदू हो गया हूँ कि वह विशेषण मेरे बदन के सभी अंगों को चिढ़ाते हैं। घरवालों को केंचुआ सा दिखाई देने वाला मैं कब लोगों की नजर में भारी-भरकम अजगर बन गया पता ही नहीं चला। वैसे भी पौधा खाद-पानी पाकर हमेशा के लिए पौघा थोड़े न रहता है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो भारी-भरकर वृक्ष बन ही जाता है।  

  

छठी कक्षा पढ़ते समय मुझे बेंच पर खड़ा होने का दंड दिया गया था। शिक्षिका मेरे शोर से इतनी परेशान थी कि उन्होंने मेरी तुलना लोटे से कर दी। तब से मेरा नाम लोटा पड़ गया। जब मैं बड़ा हुआ तो हम सभी स्कूली दोस्तों ने एक वाट्सप समूह बनाया। सबने हाय हैलो करना शुरु किया। मैंने अपना नाम सुरेश बताया। सभी ने प्रश्नचिह्न जैसा मुँह वाला इमोजी लगाया। मैंने अपना फोटो भी पोस्ट किया। लेकिन किसी ने मुझे पहचाना नहीं। जैसे ही मैंने अपना नाम लोटा बताया सबके सब टूट पड़े। ऐसे टूटे जैसे बिस्कुट का टुकड़ा देखते ही कुत्तों का झुंड टूट पड़ता है। एक अपराधी अपने अपराधों की सजा काटकर नए जीवन की शुरुआत करना चाहता है तो उसे उसके पुराने कारनामों के नाम पर लज्जित करने जैसी हालत मेरी थी। मैंने पुराने नाम से पिंड छुड़ाने के लिए बाकायदा पेपर में विज्ञापन भी दिया। चिढ़ाने वालों को अपना चुल शांत करने से मतलब होता है। 

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दीपावली पर कपड़े खरीदने के लिए एक बड़े शॉपिंग मॉल में गया। वहाँ जाकर देखा कि स्माल, मीडियम, लार्ज कुछ कपड़ों में, जो मेरी पसंद के नहीं थे, उनमें एक्स्ट्रा लार्ज की साइजें भी उपलब्ध थीं। मेरा आकार इनमें फिट होने वाला नहीं था। मुझे एक्स्ट्रा एक्स्ट्रा लार्ज की जरूरत थी। साफगोई से कहना हो तो ट्रिपल एक्सेल मेरा मुँह मांगा इनाम है। मेरा आकार देखकर वहाँ काम करने वाला एक बंदा आगे आया। सोचा शायद मेरी साइज के कपड़े ला रहा है। लेकिन उसने मुझे नंगा किए बिना नंगा कर दिया। उसने कहा कि आपकी साइज के कपड़े यहाँ तो क्या किसी भी शो रूम में नहीं मिलेंगे। आपकी साइज के कपड़े तो दर्जी ही सी सकता है। मैं अपमान का घूँट पीकर रह गया। शोरूम से बाहर निकला ही था कि एक सेल्समैन गले पड़ गया। वह गारंटी के साथ दुबला होने का दावा करते हुए हर्बल प्रॉडक्ट बेचने के प्रयास में मेरे मोटापे पर न दिखाई देने वाली सुइयाँ चुभोने लगा। इससे पहले की मैं उसे लताड़ता वह अपने रास्ते हो लिया। तभी उसका मैनेजर दार्शनिक की तरह बातें करते हुए घुमा फिराकर हर्बल प्रॉडक्ट पर आ गया। मेरा खून उबल रहा था। मेरे हाथों उसका खून न हो जाए इस डर से उसके हाथ जोड़े और मैं अपने रास्ते हो लिया। 


मैं जहाँ कहीं भी जाता, मेरा मोटापा पहले पहुँचता और मैं बाद में। इसका मुझे इतना दुख नहीं हुआ जितना कि मेरी गर्लफ्रेंड ने मुझे टेड्डी बेअर कहा। मुझ जैसे मोटे अक्सर खूबसूरत लड़कियों और कभी-कभी औसतों को टेड्डी बेअर क्यों लगते हैं, यह मेरी समझ के परे था। यह राष्ट्रीय स्तर पर शोध का विषय बन सकता है। एक दिन हम लड़की देखने गए। लड़की की आँखों पर बड़े नंबर का चश्मा चढ़ा हुआ था। मैं सोचने लगा मुझे तो बहुत दिनों से ऐसी ही लड़की की तलाश थी। जिनको दिखाई देता था वे मुझे अपने सामने टिकने नहीं देते थे। घर आने पर बहुत देर तक लड़की वालों के स्वीकृति-तिरस्कृति संबंधी संदेश की प्रतीक्षा करता रहा। झकमारकर मैंने ही पिता जी से फोन लगवाया। सामने वालों ने जवाब दिया कि लड़की को इतने दिनों तक कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, लेकिन आपके लड़के का मोटापा साफ-साफ दिखाई दे पा रही थी। लड़की ने रिश्ता ठुकरा दिया है। हम माफी चाहते हैं। उस दिन मुझे पहली बार लगा कि मेरा मोटापा चमत्कार भी कर सकता है। मेरा मोटापा मोटापा न हुआ दूसरों को हँसाने का अड्डा हो गया।  मैं और मेरा मोटापा अक्सर ये बातें करते हैं कि यह न होता तो कैसा होता और मैं ही न होता तो कैसा होता...  


- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’

(हिंदी अकादमी, तेलंगाना सरकार से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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