सोमरस बहुत ज़रूरी है (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Feb 09, 2022

उस पार्टी में हम चार और छोटी उम्र के बच्चे सोमरस के सेवक नहीं थे। पार्टीवियर चुनते, मूड बनाते, यार दोस्तों के पहुंचते वक़्त लग जाता है। मंगलरस के बिना डांस नहीं होता। जब रस, रंग बहाने लगे तो विश्वास होने लगता है कि उत्सव रंग जमाने के लिए मुर्गे की टांग वाली पार्टी ज़रूरी है। इसके होने से वैवाहिक आयोजन की थकान चढ़ने से पहले ही उतर जाती है। सकारात्मकता भरी है इसमें। मानसिक सेहत और शारीरिक आनंद का ग्राफ बढ़ जाता है। परम आनंद का द्वार खुल जाता है।

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जिन लोगों ने शुरुआती ज़िंदगी में आर्थिक कमियां सही, बाद में जुगाड़, मेहनत और किस्मत के बल पर दौलत कमाई उनके लिए भी यह हररोज़रस, विकसित समाज की सीढियों पर बैठकर, ज़िंदगी का लुत्फ़ है। परिवार मनचाहा सोमरस लेकर आयोजन की शान बढाते हैं लेकिन पिछड़े लोग अभी भी इसे अपनी शान के खिलाफ समझते हैं और कांच के खूबसूरत खाली पात्रों को, नफरत में लपेटी नज़र से तोड़ते रहते हैं। उन्हें क्या पता, जिन्हें थोड़े या ज़्यादा काम से थकावट हो जाती है उनकी मालिश रोजाना इससे बेहतर कोई नहीं कर सकता। वे नहीं जानते कि शर्म खत्म करने में भी सोमरस एहम भूमिका निभाता है। साहस और आत्मसम्मान बढाता है तो ठण्ड घटाता है और शासन करने की नीतियां तक बदलवा देता है।  


बहुत दुःख होता है जब किस्मतरस के महंगे भंडार को ‘अवैध’ मानकर खत्म कर दिया जाता है। बुलडोज़र के नीचे सुन्दर कांच, विभिन्न आकार, दिलकश डिज़ाइन, विविध स्वाद युक्त, सभी तनावों का क्षरण करने वाले रसवाहकों को बेरहमी से कुचला जाता है। इतनी बेअदबी से तो अवैध बिल्डिंग निर्माण को भी नष्ट नहीं किया जाता। क्यूं नहीं किसी कानूनी दांव पेंच से इन्हें बचाया जाता और इनके प्रेमियों से मिलन कराया जाता। जान माल  की रक्षा करने व जान माल न बचा सकने वालों से लेकर भविष्य बताने वाले तक इसका सुखपान करते हैं। जहां तन और मन मुक्ति महसूस करें वहीं तो मुहब्बत होती है। कुछ तो अदा है कोई यूं ही किसी का दीवाना नहीं होता।

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यह नई सकारात्मकता है कि नारी शक्ति की बढ़ती ताक़त के साथ अवसररस का साथ बढ़ रहा है। उनके लिए सुरक्षित आनंदरस उगाऊ केन्द्रों का निर्माण हो रहा है। सोमरस क्या, प्रतिदिनरस  की होम डिलीवरी बढ़ रही है। बदलते माहौल में यह सुविधा अपेक्षित हो रही थी। स्थानीय सोमरस निर्माण की अवैध मुहिम जीवित रखी जा रही है। कालाबाजारी के रंग बदले जा रहे हैं। आबकारी समंदर का पुण्य कार्य है यह, जुर्म नहीं। यह बात दीगर है कि लोक सम्पर्क कहता है कि लोक इसके संपर्क में न आएं। बाज़ार को मुनाफ़ा चाहिए तभी सामंती व्यवस्था नए भेस बदल कर आती है। अवैध और वैध का फर्क तो कब का मिट चुका। हम विश्वगुरु, अब अंतर्राष्ट्रीय शैली में जीवन का आनंद ले रहे हैं। हमें सोमरस को मृत्युरस समझने और बनाने वालों से क्या लेना। यह बहुत लाभदायक है क्यूंकि अभी भी माना जाता है कि इस संपर्करस से छोटे या मोटे मसले तरल हो जाते हैं। सफलता के वृक्ष तपाक से रोपित हो जाते हैं। महुआ से पारम्परिक शैली में बनाया जा रहा हरदिवस रस ‘वैध’ होना इसका नया प्रमाण है। सोमरस बेहद ज़रूरी है और यह साबित हो रहा है।


- संतोष उत्सुक

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