Sri Aurobindo Birth Anniversary: क्रांतिकारी और योगी थे श्री अरबिंदो घोष, स्वतंत्रता संग्राम में दिया था अहम योगदान

By अनन्या मिश्रा | Aug 15, 2025

आज ही के दिन यानी की 15 अगस्त को महान क्रांतिकारी और योगी श्री अरबिंदो का जन्म हुआ था। उन्होंने स्वाधीनता संग्राम के लिए जनमानस को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी। वहीं इस दौरान उनको जेल यात्रा भी करनी पड़ी थी। वह साल 1910 के के प्रभावशाली नेताओं में से एक थे। इसके अलावा श्री अरबिंदो एक भारतीय दार्शनिक, योगी, कवि और भारतीय राष्ट्रवादी थे। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर महान क्रांतिकारी और योगी श्री अरबिंदो के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और परिवार

कलकत्ता में 15 अगस्त 1872 को श्री अरबिंदो का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम श्री कृष्णधन घोष था। जोकि एक समृद्ध डॉक्टर थे। जब वह सात वर्ष के थे, तो उनको अपने भाइयों के साथ इंग्लैंड भेजा गया था। क्योंकि उनके पिता की इच्छा थी कि वह प्रशासनिक सेवा की प्रतियोगिता में भाग लें और भारत वापस आने के बाद उच्च पद पर कार्य करें। श्री अरबिंदो को गुजराती, मराठी, बंगला और संस्कृत आदि भाषाओं का ज्ञान था।


हालांकि पिता की इच्छा होने की वजह से उन्होंने परीक्षा दी, लेकिन उनकी इसमें रुचि नहीं थी। ऐसे में श्री अरबिंदो जानबूझकर घुड़सवारी की परीक्षा देने नहीं गये। दरअसल, उनका इस परीक्षा में सम्मिलित न होने का कारण अंग्रेजों की नौकरी के प्रति उनकी घृणा भावना थी।

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स्वाधीनता संग्राम

श्री अरबिंदो ने 'वंदे मातरम' नामक अखबार का प्रकाशन किया। इस समाचार पत्र के जरिए उन्होंने तत्कालीन जनमानस को स्वाधीनता संग्राम के लिए तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। इस समाचार पत्रों में उनके संपादकीय लेखों ने उन्हें अखिल भारतीय ख्याति दिला दी। उस दौरान अंग्रेज कहते थे कि वंदे मातरम की एक-एक पंक्ति में राजद्रोह भरा है। जिसको इतनी चालाकी से छिपाया गया है कि उस पर मुकदमा नहीं चल सकता।


फिर साल 1908 से लेकर 1909 तक अंग्रेज सरकार ने श्री अरबिंदो को अलीपुर जेल में रखा था। इस दौरान जेल में रहते हुए उन्होंने ध्यान, धारणा और योगाभ्यास को समय दिया। जेल में रहते हुए उन्होंने भारतीय दर्शन और वेदों का अध्ययन भी किया जिसके बाद वे योगी बन गए। वहीं जेल से बाहर आने के बाद वह कोलकाता छोड़कर पुडुचेरी रहने के लिए चले गए। वहीं योगी बनने के बाद उन्होंने पुडुचेरी में आश्रम स्थापित कर लिया था। उन्होंने 40 सालों तक पुडुचेरी में रहकर पृथ्वी पर दिव्य जीवन के लिये प्रसार किया था।

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