कौन सा त्याग, कौन सा समर्पण, कौन सा योगदान... नेशनल हेराल्ड केस को लेकर कांग्रेस पर बरसे सुधांशु त्रिवेदी

By अंकित सिंह | Apr 16, 2025

प्रवर्तन निदेशालय ने नेशनल हेराल्ड मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कांग्रेस नेताओं सोनिया और राहुल गांधी पर पीएमएलए के तहत एजेएल की 2,000 करोड़ रुपये की संपत्ति अर्जित करने की साजिश का आरोप लगाया है। इसको लेकर सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस केंद्र सरकार पर हमलवार है। वहीं, भाजपा भी कांग्रेस पर पलटवार कर रही है। इसी बीच भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि सवाल नैतिकता का है। कांग्रेस पार्टी ने जिस तरह से स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत के साथ खिलवाड़ किया है, वह पुरानी बीमारी है। 

 

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भाजपा नेता ने कहा कि कांग्रेस आरोप लगाएगी कि हम नेहरू को दोष दे रहे हैं, लेकिन हम नेहरू को दोष नहीं दे रहे हैं। सरदार पटेल और सीबी गुप्ता ने अपने संस्मरणों में पुरुषोत्तम दास टंडन, आचार्य नरेंद्र देव, शिव प्रसाद गुप्ता और श्रीप्रकाश जी का संदर्भ देते हुए यह बात लिखी है। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस को नेहरू-गांधी परिवार पर लगाए गए आंतरिक आरोपों की जानकारी नहीं है, तो मेरे लिए कहने को ज्यादा कुछ नहीं है। कानूनी प्रक्रियाओं को दोष देना गलत है। 


त्रिवेदी ने कांग्रेस से सवाल करते हुए कहा कि मैं कांग्रेस पार्टी से पूछना चाहता हूं कि कौन सा त्याग, कौन सा समर्पण, कौन सा योगदान... ये (नेशनल हेराल्ड केस) शुद्ध बिजनेस ट्रांजैक्शन का मामला है तो वो कैसे कह सकते हैं कि ये ईडी के परव्यू से बाहर है या ये किसी राजनीतिक दुर्भावना से प्रेरित है। जबकि ये विषय 2012 में उठा, अक्टूबर 2013 में UPA सरकार के शासनकाल में एक जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोई के निर्देश पर ये केस शुरू हुआ था।

 

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उन्होंने दावा किया कि यह स्पष्ट है कि कांग्रेस नहीं चाहती थी कि नेशनल हेराल्ड अखबार चलता रहे। इसीलिए उन्होंने इसे पदेन संस्था नहीं बनाया। कांग्रेस के नेताओं को भी उनकी मंशा पर संदेह था। श्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने भी पंडित जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर इस पर सवाल उठाया था, जिसे नेहरू ने आसानी से नकार दिया। उन्होंने दावा किया कि यह एक व्यापारिक लेन-देन का स्पष्ट उदाहरण है, न कि स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि। फिर यह प्रवर्तन निदेशालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर कैसे है? इस मामले की जांच 2012 में यूपीए सरकार के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के बाद शुरू हुई थी और 1950 के दशक से ही कांग्रेस के नेता इसे संदेह की दृष्टि से देखते रहे थे।

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