कवि संतोष उत्सुक की ओर से प्रेषित बाल कविता 'गर्मी का मौसम' दर्शाती है कि कैसे गर्मी के मौसम में सूरज मामा की चमक से लोगों के पसीने छूट रहे हैं और हालत बेहाल जैसी हो गयी है।
सूरज मामा खूब चमकते
पसीने आजकल खूब निकलते
बर्फ पहाड़ पर खूब सुहाती
हम सब काश वहां पर होते
गर्मी के मौसम में भैया
फ़ल भी कितने ज्यादा होते
बाग़ों में ठुमकती तितलियाँ
फूल भी नाचते मचलते रहते
आइसक्रीम का मौसम आया
दोपहर रात हम खूब हैं खाते
सैर करना सुहाना लगता
सुबह शाम हम रोज़ हैं करते
सुस्ती दूर भागती फिरती
नित व्यायाम सभी जो करते
-संतोष उत्सुक