By अनन्या मिश्रा | Oct 15, 2025
प्रसिद्ध हिंदी कवि, लेखक और निबंधकार रहे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का 15 अक्तूबर को निधन हो गया था। उन्होंने अपनी अंतहीन रचनाओं से हिंदी को समृद्ध करने के साथ ही कविताओं को बंधनमुक्त करते हुए उन्हें आजादी भी दी। वह छायावाद युग के चार स्तंभों में शामिल हैं। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को जितना उनके साहित्य के लिए जाना जाता है, उससे कहीं ज्यादा विडंबनाओं से भरे जीवन के लिए भी जाना जाता है। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में 21 फरवरी 1896 को सूर्यकांत त्रिपाठी का जन्म हुआ था। 20 साल की उम्र में उन्होंने हिंदी सीखना शुरू किया औऱ इसको अपनी लेखनी का माध्यम बनाया। महज 3 साल की उम्र में मां और फिर 20 साल की उम्र में सूर्यकांत के सिर से पिता का साया उठ गया। उनको बचपन से ही नौकरी न होने और उससे जुड़े सम्मान और अपमान का अनुभव करना पड़ा।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद एक फ्लू महामारी में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी पत्नी समेत आधे परिवार को खो दिया था। उनके साथ आर्थिक तंगी ऐसी थी कि उनका जीवन कल की चिंता के बिना नहीं बीता। प्रकृति और संस्कृति के अभिशापों को सहते हुए निराला ने अपना पूरा जीवन साहित्यिक गतिविधियों को समर्पित कर दिया था। उन्होंने न सिर्फ हिंदी में निपुणता प्राप्त की थी, बल्कि हिंदी साहित्य की नव-रोमांटिक धारा का भी बीड़ा उठाया।
छायावाद के स्तंभ 'निराला'
महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत के साथ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला छायावाद युग के चार स्तंभों में से एक थे। वह एक छायावादी कवि थे, लेकिन निराला रूसी रोमांटिक कवि एलेक्जेंडर पुश्किन की तरह क्रांतिकारी यथार्थवादी भी थे। निराला की कलम ने शोषण और सामाजिक अन्याय के खिलाफ प्रभावशाली लेखन किया था।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने 'वो तोड़ती पत्थर' में एक छोटी बच्चे की जीवन का चित्रण किया है, जोकि आजीविका के लिए पत्थर तोड़ने का काम करती है। इसके अलावा उनकी रचनाएं 'बंधु' और 'जूही की कली' भी करुणा और वीरता से भरपूर हैं। निराला की रचनाएं 'राम की शक्ति पूजा', 'सरोज स्मृति' और 'वर दे वीणा वादिनी वर दे' उनकी विरासत में नया आयाम जोड़ने का काम करती हैं। कवि के रूप में उनका सबसे बड़ा योगदान कविता को रिक्त छंद से मुक्त करना था। जिसके लिए निराला को तमाम लेखकों की आलोचना की भी सामना करना पड़ा था।
साल 1936 में एक साहित्य उत्सव में गांधी जी ने पूछा कि 'हिंदी का टैगोर कहां है', तब सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने महात्मा गांधी से पूछा कि क्या उन्होंने पर्याप्त हिंदी साहित्य पढ़ा है। जिस पर गांधीजी ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने अधिक हिंदी साहित्य का अध्ययन नहीं किया है। ऐसे में निराला ने कहा, 'फिर आपको मेरी मातृभाषा हिंदी में बात करने का अधिकार कौन देता है।' उन्होंने आगे कहा कि वह गांधीजी को अपनी और रवींद्रनाथ टैगोर की कुछ रचनाएं भेजेंगे, जिससे कि वह हिंदी साहित्य को अधिक बेहतर तरीके से समझ सकें।
साहित्यिक दौलत और शोहर से समृद्ध रहे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को अपने जीवन के आखिरी दिनों में घोर आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। वहीं 15 अक्तूबर 1961 को सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का निधन हो गया।