Tatya Tope Death Anniversary: अंग्रेजों से लोहा लेने वाले तात्या टोपे को दी गई थी फांसी की सजा, अंग्रेजों के छुड़ा दिए थे छक्के

By अनन्या मिश्रा | Apr 18, 2025

आज ही के दिन यानी की 18 अप्रैल को महान क्रांतिकारी तात्या टोपे की मृत्यु हो गई थी। उन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ी जाने वाली पहली लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। तात्या टोपे का नाम उन क्रांतिकारियों में शामिल हैं, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह छेड़ा था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर महान क्रांतिकारी तात्या टोपे की जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और परिवार

तात्या टोपे का जन्म 16 फरवरी 1814 को एक मराठी परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम रामचंद्र पाण्डुरंग राव था। लेकिन उनको लोग तात्या टोपे के नाम से जानते थे। साल 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ हुई क्रांति में तात्या टोपे का अहम योगदान रहा था।

इसे भी पढ़ें: Sarvepalli Radhakrishnan Death Anniversary: देश के दूसरे राष्ट्रपति और महान दार्शनिक थे डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

1857 का विद्रोह

जब 1857 के विद्रोह की लड़ाई उत्तर प्रदेश के कानपुर तक पहुंची तो नाना साहेब को नेता घोषित कर दिया गया। यहीं पर आजादी की लड़ाई में तात्या टोपे ने अपनी जान लगा दी थी। उन्होंने कई बार अंग्रेजों के खिलाफ कई बार लोहा लिया था। नाना साहेब ने तात्या टोपे को अपना सैनिक सलाहकार नियुक्त किया था। साल 1857 में बुंदेलखंड में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ नाना साहेब पेशवा, तात्या टोपे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवध के नवाब और मुगल शासकों ने विद्रोह कर दिया था।


हालांकि उस दौरान तात्या पेशवा की सेवा में लगे थे। लेकिन उनको कोई सैन्य नेतृत्व का अनुभव नहीं था। अपनी कोशिशों के कारण तात्या टोपे ने यह भी हासिल कर दिया था। साल 1857 के बाद वह अपने आखिरी समय तक लगातार युद्ध में लगे रहे या फिर यात्रा करते रहे। तात्या टोपे नाना साहेब के दोस्त, दीवान, प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख जैसे पदों पर रहे। साल 1857 के स्वाधीनता संग्राम के शुरूआती दिनों में तात्या की योजना काफी हद तक कामयाब रही थी।


बता दें कि दिल्ली में 1857 के विद्रोह के बाद झांसी, लखनऊ और ग्वालियर जैसे साम्राज्य तो 1858 में स्वतंत्र हो गए। लेकिन झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को बाद में हार का सामना करना पड़ा। वहीं आजमगढ़, वाराणसी, इलाहाबाद, दिल्ली, कानपुर, फैजाबाद, बाराबंकी और गोंडा जैसे इलाके भी अंग्रेजों से मुक्त हो गए। इस दौरान तक तात्या टोपे ने नाना साहेब की सेना को मोर्चा संभाल रखा था। इसमें सैनिकों भर्ती, वेतन, प्रशासन और योजनाएं तात्या ही देख रहे थे।


मृत्यु

भारत के कई हिस्सों में तात्या टोपे ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। लेकिन अंग्रेज सेना उनको पकड़ने में नाकाम रही। तकरीबन एक साल तक तात्या ने अंग्रेजों के साथ लंबी लड़ाई लड़ी। फिर 08 अप्रैल 1959 को अंग्रेजों ने तात्या टोपे को पकड़ लिया और 15 अप्रैल को उनको शिवपुरी में कोर्ट मार्शल किया गया। फिर 18 अप्रैल 1959 को तात्या टोपे को फांसी की सजा दी गई।

प्रमुख खबरें

IndiGo Flights Cancellation: उड़ानें रद्द होने के बीच DGCA ने फ्लाइट क्रू के लिए बनाए गए Weekly Rest Norms वापस लिए

IndiGo ने आज की सारी उड़ानें रद्द कीं, हजारों यात्री फंसे, Civil Aviation Minister ने Airline को लगाई फटकार

एक महीने चावल छोड़ा, तो शरीर में दिखे ये 3 बड़े बदलाव, आप भी हो जाएंगे हैरान!

Rahul Gandhi को Putin से मिलने नहीं दिया गया या पुतिन खुद राहुल से मिलना नहीं चाहते? चक्कर क्या है?