China's Annexation Around the World Part 2 | चीन ने कितने सारे देशों की जमीन पर कब्ज़ा किया हुआ है? | Teh Tak

By अभिनय आकाश | Jul 15, 2025

चीन ऐसा देश है जिसने कई मुल्कों की जमीन पर कब्जा कर रखा है। छह देशों की करीब 41 लाख 13 हजार स्कायर किलोमीटर जमीन पर चीन का कब्जा है। ये उसकी कुल जमीन का 43 प्रतिशत होता है। ऐसे ही देश और जमीन के अलावा चीन समुद्र पर भी अपनी दावेदारी करता है। 35 लाख स्कव्यार किलोमीटर में फैले दक्षिण चीन सागर पर चीन अपना हक जताता है। वैसे आपको बता दें कि रूस और कनाडा के बाद चीन सबसे बड़ा देश है। उसकी 22117 किलोटीमर लंबी सीमा 14 देशों से लगती है। चीन दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसकी सीमा सबसे ज्यादा देशों से मिलती हैं। इन सभी देशों के साथ किसी न किसी तरह से चीन का सीमा विवाद चल रहा है। चीन के नक्शे को आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि उसमें पूर्वी तुर्किस्तान, तिब्बत, मंगोलिया, ताइवान, हांगकांग और मकाऊ छह देश है, जिनपर चीन ने कब्जा कर रखा है या इन्हें अपना हिस्सा बताता है। इन सभी देशों का कुल एरिया 41 लाख 13 हजार स्कायर किलोमीटर से ज्यादा है और ये चीन की कुल जमीन का 43 प्रतिशत है। 

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पूर्वी तुर्किस्तान 

चीन ने 1949 में पूर्वी तुर्किस्तान पर कब्जा किया था और वो इसे शिनजियांग प्रांत बताता है। यहां की कुल आबादी में 45% उइगर मुस्लिम हैं, जबकि 40% हान चीनी हैं। उइगर मुस्लिम तुर्किक मूल के माने जाते हैं। चीन ने तिब्बत की तरह ही शिनजियांग को भी ऑटोनॉमस क्षेत्र घोषित किया है। 

तिब्बत 

राजनीतिक दृष्टि से तिब्बत कभी चीन का अंग नहीं रहा। ईसा से एक शताब्दी पूर्व मगध के एक राजा ने तिब्बत के विभिन्न समुदायों को संगठित किया था। यह सम्बंध अनेक वर्षों तक बना रहा। अक्टूबर 1949 में माओ द्वारा, महज 15 साल के संघर्ष और हिंसक लड़ाई के बाद, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की स्थापना के साथ हुई। चेयरमैन माओत्से तुंग के एजेंडे में तिब्बत को हड़पना (और दंडित करना) शामिल था, जिसे उन्होंने ’चीन की दाहिनी हथेली’ कहा था, जबकि लद्दाख, सिक्किम, भूटान, नेपाल और अरुणाचल प्रदेश हथेली की ‘पांच अंगुलियां’ हैं। चीन ने 7 अक्टूबर 1950 को तिब्बत पर अपने आक्रमण के साथ भारत का सामना किया और न केवल तिब्बत और भारत की बल्कि पूरे एशिया की स्थिरता को खतरे में डाल दिया। तिब्बत को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा था। 1950 में चीनी सेनाओं ने तिब्बत पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया। 14वें दलाई लामा तेंजिन ग्यात्सो को तिब्बत छोड़ना पड़ा। उन्होंने एक ऐसी जगह बस्ती बसाता है, जहां का पानी दूध से भी ज्यादा मीठा बताया गया है। 1959 में दलाई लामा अपने कई समर्थकों के साथ भारत आए। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 23 साल की थी। दलाई लामा को भारत में शरण मिलना चीन को अच्छा नहीं लगा। तब चीन में माओत्से त्युंग का शासन था। चीन और दलाई लामा के बीच तनाव बढ़ता गया और उसे डर सताता रहा कि वो भारत के साथ मिलकर कोई साजिश न रचें। 

दक्षिणी मंगोलिया या इनर मंगोलिया 

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद चीन ने दक्षिणी मंगोलिया या इनर मंगोलिया पर कब्जा कर लिया था और 1947 में इसे ऑटोनॉमस क्षेत्र घोषित किया। एरिया के हिसाब से ये तीन का तीसरा सबसे बड़ा इलाका है। 

ताइवान 

चीन के साथ ताइवान का पहला संपर्क साल 1683 में हुआ था जब ताइवान, क्विंग राजवंश के नियंत्रण में आया था। लेकिन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में इसकी भूमिका पहले चीन-जापान युद्ध (1894-95) में सामने आई, जिसमें जापान ने क्विंग राजवंश को हराया था और ताइवान को अपना पहला उपनिवेश बनाया। इस पराजय के बाद चीन कई छोटे छोटे भागों में टूटने लगा। उस दौर में चीन के बड़े नेता सुन् यात-सेन हुआ करते थे जो सभी भागों को जोड़कर पूरे चाइना को एक देश बनाना चाहते थे। चीन को एक करने के लिए सुन् यात-सेन ने 1912 में कुओ मिंगतांग पार्टी का गठन किया और रिपब्लिक ऑफ चाइना वाले अपने अभियान में वो काफी हद तक सफल भी हुए। लेकिन 1925 सुन् यात-सेन की मौत हो गई। उनकी मृत्यु के बाद कुओ मिंगतांग पार्टी दो भागों में बंट गई एक बनी नेशनलिस्ट पार्टी और दूसरी कम्युनिस्ट। नेशनलिस्ट पार्टी जनता को ज्यादा अधिकार देने की पक्षधर थी। जबकि कम्युनिस्ट का मानना था कि सरकार तय करेगी की कैसे शासन करना है। नेशनलिस्ट पार्टी पूरी तरह से उदारवादी परिकल्पना पर आधारित था जबकि उसके वनस्पद कम्युनिस्ट वन मैन शो यानी पूरी तरह से डिक्टेटरशिप पर आश्रित था। यहीं से चीन के अंदर महायुद्ध की शुरुआत होती है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी चीन और ताइवान। इन दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी यानी माओ त्देसेंग का शासन था। 1945 में जब UN बना, तब मेनलैंड चीन ‘रिपब्लिक ऑफ चाइना’ हुआ करता था। वो UN के शुरुआती सदस्यों में था। शुरुआत में च्यांग काई-शेक वाले चीन यानी ताइवान को मान्यता मिली थी। चीन दावा करता है कि ताइवान भी उसका ही हिस्सा है। 

हांगकांग 

हॉन्गकॉन्ग पहले चीन का ही हिस्सा था, लेकिन 1842 में ब्रिटिशों के साथ हुए युद्ध में चीन को इसे गंवाना पड़ा। 1997 में ब्रिटेन ने चीन को हॉन्गकॉन्ग लौटा दिया, लेकिन इसके साथ 'वन कंट्री, टू सिस्टम' समझौता भी हुआ, जिसके तहत चीन हॉन्गकॉन्ग को अगले 50 साल तक राजनैतिक तौर पर आजादी देने के लिए राजी हुआ। हॉन्गकॉन्ग के लोगों को विशेष अधिकार मिले हैं, जो चीन के लोगों को नहीं हैं। ट 

मकाऊ 

मकाउ पर करीब 450 साल तक पुर्तगालियों का कब्जा था। दिसंबर 1999 में पुर्तगालियों ने इसे चीन को ट्रांसफर कर दिया। मकाउ को ट्रांसफर करते समय भी वही समझौता हुआ था, जो हॉन्गकॉन्ग के साथ हुआ था। हॉन्गकॉन्ग की तरह ही मकाउ को भी चीन ने 50 साल तक राजनैतिक आजादी दे रखी है। 

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