India Pak Journey Part 4  | 1987 का चुनाव, सैयद सलाहुद्दीन की हार, हिंसक चक्रव्यूह में कैसे कश्मीर फंसता गया

By अभिनय आकाश | Aug 30, 2025

1980 के दशक की शुरुआत में कश्मीर फिर से भारत-पाकिस्तान तनाव के केंद्र में आ गया था। एक अलगाववादी आंदोलन ने जड़ें जमा लीं। जम्मू कश्मीर की सरकार के खिलाफ जनभावनाएँ अलगाववादियों द्वारा भड़काई जाने लगी। स्थानीय कश्मीरियों को पड़ोसी मुल्क से फंडेड अलगाववादियों ने ये नैरेटिव बनाना शुरू कर दिया किनई दिल्ली के साथ घनिष्ठ संबंधों के बदले में यह उनके हितों के साथ विश्वासघात हो रहा है। 1987 का राज्य विधानमंडल चुनाव एक निर्णायक मोड़ था, जिसमें भारतीय संविधान के प्रति प्रतिबद्ध पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने लोकप्रिय, भारत-विरोधी राजनेताओं को बाहर रखने के लिए भारी धांधली के व्यापक आरोपों के बीच जीत हासिल की। 1989 तक, भारत प्रशासित कश्मीर में भारत के खिलाफ एक पूर्ण सशस्त्र प्रतिरोध ने आकार ले लिया था, जो भारत से अलग होने की मांग कर रहा था। 

1987 का वो चुनाव

1990 के दशक में कश्मीर में जो चरमपंथ का दौर शुरू हुआ, उस पर 'कश्मीर और कश्मीरी पंडित' में अशोक पांडेय लिखते हैं, ''नब्बे के दशक में कश्मीर घाटी में जो दौर शुरू हुआ, उसे अक्सर 1987 के चुनावों की धांधली का परिणाम बताया जाता है। 1987 में चुनावों में धांधली हुई और 1989 में हिंसक घटनाओं की शुरुआत हो गई। दरअसल, 1987 में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए थे। इस चुनाव में श्रीनगर के आमिर कदल से मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के यूस़़ूफ शाह भी चुनाव लड़ रहा था। रुझानों में युसूफ़ शाह आगे था। लेकिन चुनाव के नतीजों पर धांधली का आरोप लगा। युसूफ़ शाह चुनाव हार गया। इसके विरोध में युवा सड़कों पर आ गए। बाद में युसूफ़ शाह को गिरफ़्तार कर लिया गया, कई महीनों तक वो जेल में रहा। ये युसूफ़ शाह ही पाकिस्तान स्थित हिज़्बुल मुजाहिदीन का कमांडर सैयद सलाहुद्दीन हैं। इन चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन को जीत हासिल हुई थी। 

हिंसक चक्रव्यूह में कश्मीर फंसता चला गया

कश्मीर घाटी में 1989 में कुछ इसलामिक चरमपंथी गुटों ने आजादी की मांग को लेकर और कुछ गुटों ने पाकिस्तान में शामिल होने को लेकर विद्रोह कर दिया। इन विद्रोही गुटों को उकसाने और हथियार मुहैया कराने में पाकिस्तान की बड़ी भूमिका थी। हत्याओं का जो सिलसिला उस दौर में शुरू हुआ, भारत और कश्मीर के अपरिपक्व राजनीतिक नेतृत्व के चलते वो एक ऐसे हिंसक चक्रव्यूह में फंसता चला गया, जिसे बाहर निकलना आज तक मुमकिन नहीं हुआ, और इसकी क़ीमत सबको चुकानी पड़ी। 

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