कर्म से ज्यादा भाग्य और ज्योतिष पर ध्यान देने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है

By संतोष उत्सुक | Jul 23, 2018

हमारा विश्व गुरु देश, विश्व शक्ति बनने की ओर अग्रसर है। विज्ञान नए मुहावरे गढ़ रहा है। ऐसे में कल अख़बार के साथ आए एक पैम्फलेट को पढ़ते हुए हंसी स्वतः आने लगी। पैम्फलेट पढ़िए, ‘आपके शहर में स्थाई ज्योतिषी काली उपासक, नूरी हजूरी, काले इल्म के माहिर, हर इल्म की काट, हस्तक रेखा, मस्तक रेखा, जन्मपत्री, फोटो दिखाकर अपने जीवन का सम्पूर्ण हाल जाने। आपकी आर्थिक, मानसिक, पारिवारिक समस्याएं, नौकरी में तरक्की या रूकावट, शादी में बाधा या देरी, घर परिवार मकान बनाने में अड़चन रूकावट या मन न लगना, विदेश यात्रा न होना, व्यापार में लाभ हानि, प्रेम विवाह में रूकावट, सन्तान सुख पाने के लिए, विद्या में फेल को पास करने, सौतन से छुटकारा आदि आदि आदि। इन समस्याओं के इलावा कालसर्प, मंगलिक दोष निवारण के लिए पूजा एवं हर काम का समाधान किया जाता है।' इतने मुश्किल व बड़े दोष निवारक के नाम के साथ साफ साफ लिखा हुआ था, एक प्रश्न की फीस मात्र 51 रूपये।

हर बड़े व छोटे चैनल, अख़बार व मोबाइल पर सभी राशियों के दैनिक भविष्य के बारे में चंद्रराशि, सूर्यराशि, अंक ज्योतिष, टैरो कार्ड या लाल किताब के माध्यम से प्रेम, कैरियर, व्यवसाय के बारे में भविष्यवाणियां उपलब्ध कराई जा रही हैं। कल भाग्य कितने प्रतिशत साथ देगा आज बताया जा रहा है। ज्योतिष के माध्यम से शादी विवाह, जीवन में सभी किस्म के संभावित खतरों से सावधान, जीवन स्थितियां सुधारने के बारे में हमेशा से भविष्यवाणी की जाती रही है मगर अब अधिकतर भारतवासी ज्योतिष एडिक्ट होते जा रहे हैं। इसका सीधा कारण है मानव जीवन में बढ़ रहा असंतोष, तनाव व असुरक्षा। इसका दोष हम सहज ही माहौल, किस्मत, भगवान व दूसरों को देते हैं मगर, यदि हम सच स्वीकार करें तो इस खतरनाक तिकड़ी को पैदा करने में हमारी अपनी बेहद सक्रिय भूमिका ज़्यादा है। खरा और नंगा सच यह है कि हमने स्वयं को स्वार्थों में कैद कर लिया है। हमें हर कीमत पर ज़्यादा पैसा और अधिक सफलता चाहिए और दोनों चीज़ें हमेशा बढ़ती रहें और दूसरों से ज्यादा रहें। दूसरों के जीवन उनके दुख दर्द, दिक्कतों, असफलताओं से हमें कोई मतलब नहीं। हमने ऐसी सोच विकसित कर ली है कि अपनी दुकान चलती रहनी चाहिए, चाहे सभी की गर्क हो जाएं।

 

हमारे स्वार्थ हमें अपनी दुनिया से बाहर देखने की इज़ाजत नहीं देते। हमारा सुखचैन गुम हो गया है। जीवन से सन्तुष्टि असन्तुष्ट होकर लापता हो गई है। ऐसे में हम ज्योतिष को एक सम्बल मानकर अपने जीवन में एक सुरक्षात्मक दीवार खड़ी करना चाहते हैं। हमें लगता है ज्योतिषियों के बताए नुस्खे, टोटके व उपायों की यह दीवार हमारे जीवन में रक्षा कवच बन जाएगी। ऐसे व्यक्तियों की कमी नहीं है जो अपने हाथों की आठों उगंलियों व गले में स्टोन आदि धारण करते हैं मगर उनके कर्म प्रशंसा हासिल नहीं करते। लगभग हर चैनल व सीरियल में अंधविश्वासों, शुभ अशुभ, टोने टोटकों और विशेष रूप से मार्गदर्शक ज्योतिषी को दिखाया जा रहा है। हमारे देश के दिग्गज नेताओं, अभिनेताओं, अफसरों व अन्य सामाजिक दिग्गजों के अनेक कर्म मानवता, नैतिकता, समाज, धर्म व संस्कृति को नुकसान पहंचाने वाले निम्नस्तरीय कार्य हैं मगर वे ज्योतिषियों द्वारा सुझाए मंहगे स्टोन धारण कर अपनी सफलता व सुरक्षा की गारंटी समझते हैं।

 

वास्तव में पैसा व प्रसिद्धि तो वह खूब कमा रहे हैं मगर सही मायनों में उन्होंने समाज को बिगाड़ कर रख दिया है। आम आदमी दुखी है मगर भ्रमित क्योंकि वह अपने इन सामाजिक हीरोज़ के कारनामों की नकल कर वैसा ही कर्म करता है और सुकर्म उससे छूटते जाते हैं। अपने आप को सुरक्षित करने के लिए वह भी ज्योतिषियों के चक्कर काटता है जो अपनी सामर्थ्य अनुसार ठगा जाता है। अवसर व ज़रूरत के कारण समाज के प्रबुद्ध लोग जिनमें मैथस, फिजिक्स, कैमिस्ट्री पढ़ाने वाले व डॉक्टर, इंजीनियर जैसे तकनीकी लोग भी शामिल हैं, ज्योतिषियों से सलाह ले रहे हैं। वे यह मानते हैं कि ज्योतिष आपको आने वाले खतरों से सावधान करता है ताकि आप अपने जीवन की व्यवस्थाओं को सुधार कर परिस्थितियों को अपने हित में कर सकें। हालांकि ऐसे ज्योतिषी जिनकी ज्योतिष गणना सही मानी जाती है का स्पष्ट मानना है कि मानव जीवन कर्म क्षेत्र है और जीवन में कर्म सबसे पहले है उसके बाद भाग्य और तीसरा स्थान ज्योतिष का है। मात्र एक या आठ अगूंठियां पहनने से कुछ नहीं हो सकता। यहां व्यवस्था सुधारने का मतलब आंख व कान खुले रखकर सही समय पर सही कार्य करने से है।

 

ज्योतिषी के पास जाना आजकल फैशन की मानिंद हो गया है। विकास की मैराथन में ऐसे लाखों लोग हैं जो यात्रा प्रारम्भ करने के लिए या छोटा मोटा सामान खरीदने जैसी ज़रा ज़रा सी बात के लिए ज्योतिषियों की सलाह लेते हैं। हम कभी अपने आप से यह नेक सलाह क्यों नहीं देते कि यदि हम अपने कर्म सुधार लें, जीवन की ज़रूरतें व जीवन शैली संपादित कर लें अपनी अन्दरूनी शक्ति को टटोल कर एकजुट कर लें तो हमारी ज़िन्दगी बदल सकती है। हम अपने सुविचारों, दृढ़निश्चयों, विश्वास, मेहनत व कर्मठता के बल पर अंर्तमन को समृद्ध करना शुरू करेंगे तो कुछ समय बाद हमारा आत्मबल ही हमारी असली शक्ति बन जाएगा।

 

-संतोष उत्सुक

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