हाथी और ड्रैगन का साथ आना जरूरी- लेकिन भरोसा बड़ी चीज है

By संतोष कुमार पाठक | Sep 02, 2025

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रवैए से त्रस्त दुनिया के कई देशों की नजरें इस बार चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक पर लगी हुई थी। क्योंकि इस बैठक के दौरान दुनिया के 3 ताकतवर देशों- भारत, रूस और चीन के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात भी होनी थी और साथ ही अलग-अलग द्विपक्षीय बैठक भी तय थी। खासतौर से दुनियाभर की निगाहें इस बात पर टिकी हुई थी कि भारत और चीन के आपसी संबंधों में क्या बदलाव आने वाला है।


चीन के तियानजिन शहर में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक भी हुई। बैठक के दौरान अलग से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात भी हुई और दोनों नेताओं के साथ पीएम मोदी ने अलग-अलग प्रतिनिधिमंडल स्तर की बैठक भी की।

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पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच बहुत ही अच्छे माहौल में द्विपक्षीय बैठक हुई। बैठक के दौरान दोनों देशों के साथ आने की बात कहते हुए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा, "दुनिया बदलाव की ओर बढ़ रही है। चीन और भारत दुनिया की दो सबसे प्राचीन सभ्यताएं हैं। हम दोनों दुनिया के सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश हैं और ग्लोबल साउथ का हिस्सा हैं। दोस्त बने रहना, अच्छे पड़ोसी होना, ड्रैगन और हाथी का साथ आना बहुत ज़रूरी है।" 


जिनपिंग की ये तमाम बातें सुनने में भले ही बहुत अच्छी लगती हो लेकिन कड़वी हकीकत तो यही है कि दोनों देशों के बीच जारी तनाव को कम करने के लिए चीन के राष्ट्रपति ने जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम उठाने का ऐलान नहीं किया। जबकि पिछले महीने ही भारत की यात्रा पर आए चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ बातचीत में दोनों देशों के आपसी रिश्तों को सुधारने के लिए 10 सूत्रीय एजेंडे पर सहमति बनी थी। ऐसे में यह अनुमान लगाया जा रहा था कि इस 10 सूत्रीय एजेंडे के तहत चीन के राष्ट्रपति पीएम मोदी से मुलाकात के दौरान सीमा पर शांति एवं स्थिरता बनाए रखने, चीनी सेना को बॉर्डर से पीछे हटाने और विश्वास बहाली के तहत कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं कर सकते हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।


भारत के अभिन्न अंग लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर 2020 से पहले की स्थिति अभी तक बहाल नहीं हो पाई है। सीमा पर पूरी तैयारी और साजो-सामान के साथ चीन ने 50 हजार से ज्यादा की फौज को तैनात कर रखा है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश के कई इलाकों का मंदारिन में नामकरण करके भी अपने नापाक इरादों को जाहिर कर दिया है। इतना ही नहीं, आतंकवाद की फैक्ट्री बन चुके पाकिस्तान की पीठ पर भी चीन का हाथ बना हुआ है। भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी चीन पूरी तरह से पाकिस्तान के साथ ही खड़ा नजर आया। 


तियानजिन शहर में जिनपिंग ने भारत के साथ संबंधों को लेकर शब्दों से एक माहौल बनाने की कोशिश तो की लेकिन यह सभी जानते हैं कि जब तक वह भारत की चिंताओं पर ठोस काम नहीं करेंगे तब तक शायद ही कोई भारतीय उन पर भरोसा कर पाएगा। 


अमेरिका के टैरिफ आतंकवाद से त्रस्त भारत को चीन के साथ जाने से पहले पाकिस्तान के आतंकवाद और उसे चीन द्वारा दिए जा रहे समर्थन के बारे में भी ध्यान रखना होगा। इस मौके का फायदा उठाकर चीन, न केवल भारत में निवेश और व्यापार करने की खुली छूट चाहेगा बल्कि टिकटॉक सहित 50 से ज्यादा चीनी एप्स पर भारत द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को भी हटवाने की कोशिश करेगा। 


भारत के सामने कई तरह की चुनौतियां हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन चीन का रास्ता भी पूरी तरह से साफ नहीं है। चीन ने वर्ष 2013 में अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को धमाकेदार अंदाज में शुरू किया था लेकिन यह कई तरह के संकटों में घिर गया है। तिब्बत पर चीन के अवैध कब्जे का मामला हो या तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुनने का मामला हो या फिर ताइवान को लगातार धमकाने का मामला हो, वास्तविकता तो यही है कि इन सभी मुद्दों का स्थायी और अंतिम समाधान भारत के बिना चीन हासिल नहीं कर सकता है।


ऐसे में मोदी सरकार को हर मौके और हर मंच पर चीन को यह बताना होगा कि हाथी और ड्रैगन तभी डांस कर सकते हैं जब ड्रैगन के हाथ में किसी भी तरह का कोई खंजर नहीं होगा। क्योंकि भरोसा बड़ी चीज है, जिसे चीन ने हर बार तोड़ने का काम किया है और पाकिस्तान के रवैए से तो पूरी दुनिया ही वाकिफ है।


- संतोष कुमार पाठक

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।

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