By नीरज कुमार दुबे | Nov 28, 2025
उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर में एक प्रेरणादायक घटना सामने आई है, जहां 26 वर्षीय दूल्हे ने 31 लाख रुपये की दहेज राशि लेने से इंकार कर दिया और केवल 1 रुपये का शुभ-शगुन स्वीकार किया। मेहमानों के अनुसार, 24 वर्षीय दुल्हन जिसने कोविड महामारी के दौरान अपने पिता को खो दिया था, उसके परिवार ने ‘तिलक’ रस्म के लिए यह राशि एक थाल में सजा कर रखी थी। लेकिन दूल्हे ने उस पैसे के सामने झुककर उसे लौटा दिया और कहा— “मेरा इस पर कोई अधिकार नहीं है। यह दुल्हन के पिता की मेहनत की कमाई है, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता।”
दूल्हे के इस शांत लेकिन साहसिक कदम ने पहले तो सबको स्तब्ध कर दिया, लेकिन देखते ही देखते पूरे समारोह में इसकी जोरदार सराहना होने लगी। दूल्हे के माता-पिता भी उसके इस निर्णय के साथ खड़े रहे, जबकि दुल्हन के परिवार ने कृतज्ञता प्रकट की। इसके बाद विवाह की सभी रस्में— ‘जयमाला’ से लेकर ‘कन्यादान’ तक, उमंग और सम्मान के वातावरण में संपन्न हुईं। दुल्हन विदाई के समय मुस्कान और गरिमा के साथ अपने नए घर के लिए रवाना हुई। गांव वालों ने दूल्हे के इस फैसले को दहेज प्रथा के खिलाफ एक मजबूत संदेश बताते हुए खूब प्रशंसा की।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अवधेश राणा द्वारा हाथ जोड़कर सार्वजनिक रूप से दहेज लौटाना पूरे जिले में चर्चा का विषय बन गया है। एक ग्रामीण ने कहा— “उनकी शादी अब हानिकारक सामाजिक प्रथाओं को त्यागने का उदाहरण बन चुकी है।” हम आपको बता दें कि अवधेश, जो कि नगवा गांव के रहने वाले और कॉस्मेटिक्स का कारोबार करते हैं, उन्होंने इस संबंध में मीडिया से कहा है कि 22 नवंबर को शादी के दौरान आदिति सिंह के परिवार द्वारा 31 लाख रुपये दहेज में दिए जा रहे थे, पर हमने लौटा दिए क्योंकि हम दहेज प्रथा के खिलाफ हैं। आदिति की मां सीमा देवी मूल रूप से सहारनपुर के रंखनडी गांव की रहने वाली हैं। उनके पति सुनील सिंह का निधन कोविड के दौरान हो गया था। तब से आदिति और उसका भाई अपनी ननिहाल शाहबुद्दीनपुर में नाना सुखपाल सिंह के साथ रह रहे हैं। आदिति एमएससी पूरी कर चुकी है और उसके बाद नाना ने ही उसकी शादी अवधेश से तय की।
देखा जाये तो दहेज जैसी सामाजिक बुराई पर भारत में लंबे समय से बहस होती रही है, लेकिन वास्तविक बदलाव हमेशा किसी क़ानून से नहीं, बल्कि साहसिक व्यक्तिगत कदमों से आता है। मुज़फ्फरनगर के अवधेश राणा का यह निर्णय उसी परिवर्तन की एक प्रेरक मिसाल है। 31 लाख रुपये की चमक-दमक के सामने भी उन्होंने अपने मूल्य नहीं बेचे। यह सिर्फ एक दहेज लौटाने भर का कदम नहीं था, यह एक लड़की और उसके परिवार की इज़्ज़त का सम्मान था। एक ऐसे समाज में, जहां अक्सर बेटियों के परिवार को शादी का ‘खर्चा’ उठाने के नाम पर कर्ज़ और अपमान झेलना पड़ता है, अवधेश का यह निर्णय उम्मीद की एक लौ जगा देता है।
यह घटना उन सभी परिवारों के लिए एक संदेश है जो दहेज को अधिकार समझकर मांगते हैं। देखा जाये तो किसी भी रिश्ते की नींव सम्मान, बराबरी और प्रेम पर होनी चाहिए न कि पैसों की थाली पर। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि दूल्हे के माता-पिता ने भी इस फैसले का समर्थन किया। सामाजिक सुधार तभी संभव है जब परिवार और समुदाय मिलकर दमनकारी प्रथाओं के विरुद्ध खड़े हों।
दुल्हन आदिति की कहानी भी उतनी ही भावुक है। पिता के निधन के बाद ननिहाल में पली-बढ़ी इस लड़की के लिए दहेज देने की तैयारी निश्चय ही भारी रही होगी। ऐसे में दूल्हे का यह कदम न केवल एक सामाजिक संदेश है, बल्कि एक बेटी के परिवार के प्रति संवेदनशीलता का सुंदर उदाहरण भी है। हैरानी की बात है कि 21वीं सदी के भारत में भी दहेज प्रथा उतनी ही मजबूती से मौजूद है। लेकिन ऐसे साहसिक कार्य दिखाते हैं कि बदलाव संभव है, बस किसी एक व्यक्ति को ‘नहीं’ कहने की हिम्मत दिखानी चाहिए।
अवधेश का दहेज लौटाना एक छोटे गांव से उठी बड़ी आवाज़ है, एक ऐसी आवाज़ जो बताती है कि शादी दो व्यक्तियों का पवित्र बंधन है, न कि सौदेबाज़ी का मंच। अगर हर युवक इस रवैये को अपनाए, तो दहेज प्रथा खत्म होना कोई दूर का सपना नहीं रहेगा। ऐसी घटनाएँ समाज को नई दिशा देती हैं। और उम्मीद है कि यह कहानी केवल एक जिले की चर्चा बनकर न रह जाए, बल्कि पूरे देश में दहेज-विरोधी चेतना को मजबूती दे।