रोशनी चली गई...पंडित नेहरू की मौत वाले दिन क्या हुआ था, क्या चीन के ‘धोखे’ ने ली थी जान?

By अभिनय आकाश | May 27, 2024

भारत देश के पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू की 60 वीं पुण्य तिथि मना रहा है। देश के हर कोने से स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 15 अगस्त, 1947 को कार्यालय और आने वाली सरकारों के लिए एक गहन विरासत छोड़ गए। 27 मई 1964 को लोकसभा का एक विशेष सत्र बुलाया गया। इसका मकसद कश्मीर मुद्दा था जिस पर खुद देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू बोलने वाले थे। लेकिन थोड़ी ही देर में नेहरू सरकार के स्टील मंत्री चिंदबरम सुब्रमण्यम राज्यसभा में दाखिल होते हैं। उतरे चेहरे और रुहांसी आंखों के साथ उन्होंने केवल एक लाइन कही- रोशनी खत्म हो गई। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का 27 मई 1964 को हार्ट अटैक से निधन हो गया। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की मौत की वजह क्या थी। ये विषय आज भी चर्चित रहती है। नेहरू की मौत को लेकर एक दो नहीं बल्कि कई सवाल हैं, कई पहलू हैं, जिन्हें समझने की कोशिश करते हैं।  

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ट्रिस्ट विद डेस्टिनी 

''Long years ago we made a tryst with destiny, and now the time comes ...'' वायसराय लॉज से पंडित नेहरू ने अपने भाषण की शुरूआत करते हुए कहा था- कई साल पहले हमने भाग्य को बदलने का प्रयास किया था और अब वो समय आ गया है जब हम अपनी प्रतिज्ञा से मुक्त हो जाएंगे। 14-15 अगस्त की आधी रात को जब आधी दुनिया सो रही थी तो हिन्दुस्तान अपनी नियती से मिलन कर रहा था। भारत से ब्रिटिश राज चला गया नेहरू ने अपने ऐतिहासिक, भाषण में कहा था किबहुत साल पहले, हमने नियति के साथ मुलाकात की थी। अब समय आ गया है जब हम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें - पूरी तरह या पूरी मात्रा में नहीं - लेकिन बहुत हद तक। आधी रात के समय, जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जागेगा। एक क्षण आता है, लेकिन इतिहास में शायद ही कभी, जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं, जब एक युग समाप्त होता है, और जब लंबे समय से दबी हुई एक राष्ट्र की आत्मा को अभिव्यक्ति मिलती है।

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 चीन से मिली हार ने नेहरू को तोड़ कर रख दिया 

प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए साल 1962 के बाद लगातार पंडित नेहरू की सेहत गिर रही थी। उस साल चीन ने भारत पर हमला किया था और नेहरू इसे विश्वासघात मानते थे। कहा तो ये भी जाता है कि चीन के हाथों मिली जबरदस्त हार ने उन्हें काफी तोड़ दिया था। 1963 का साल नेहरू ने कश्मीर में बिताया था। उसके बाद वो देहरादून चले गए। साल 1964 में वो देहरादून से  दिल्ली लौटे थे। जिसके बाद आती है कयामत की वो रात जिन दिन भारतीय राजनीति का ये बड़ा चेहरा हमेशा के लिए हमसे जुदा हो जाता है।  

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