Famous Temple: भारत ही नहीं विदेशों में भी हैं भगवान हनुमान के पैरों के निशान, दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं लोग

By अनन्या मिश्रा | Dec 16, 2023

हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। इन्हीं देवताओं में हनुमान जी हैं। जिन्हें भगवान श्रीराम का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। वहीं धर्म की रक्षा के लिए और अधर्म के नाश के लिए भगवान ने कई बार धरती पर जन्म लिया है। भगवान के प्राचीन उपस्थिति के भौतिक निशान पृथ्वी पर साफ देखे जा सकते हैं। आपको बता दें कि कई जगहों पर हनुमान जी के विशाल पैरों के निशान पाए गए हैं। 


ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको कुछ ऐसी जगहों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। जहां पर भगवान हनुमान के बड़े विशाल पैरों के निशान जमीन पर बने हुए हैं। मान्यता के अनुसार, इनमें से कुछ पदचिन्ह सैकड़ों-लाखों वर्ष पुराने हैं। रामायण में वर्णित भगवान राम और भगवान हनुमान के संबंध से सभी परिचित हैं। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि धरती पर आज भी भगवान हमारे बीच हैं। तो आइए जानते हैं इन जगहों के बारे में...

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श्रीलंका में हनुमान के पदचिह्न

श्रीलंका में पाए जाने वाले विशाल पैरों के निशान को भगवान हनुमान के पदचिन्ह माने जाते हैं। बताया जाता है कि जब भारत से श्रीलंका की ओर हनुमान चले, तो वह इसी स्थान पर उतरे थे। भगवान हनुमान के शरीर की शक्ति इतनी अधिक थी कि इस ठोस पत्थर में उनके पदचिन्ह दब गए। 


मलेशिया के पेनांग में पदचिन्ह

आपको बता दें कि मलेशिया के पेनांग में भी हनुमान जी के विशाल पदचिन्हों को देखा जा सकता है। भगवान के इन पदचिन्हों के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए श्रद्धालु हनुमान जी के पदचिन्ह पर सिक्के फेंकते हैं।


थाइलैंड में हनुमान के पदचिन्ह

इसके अलावा थाइलैंड में भी विशाल पदचिन्ह पाए जाते हैं। हांलाकि यह पदचिन्ह किसके हैं। इसके बारे में साफ जानकारी नहीं है। ऐसे में विशाल पैरों के निशान आंध्र प्रदेश के लेपाक्षी में भी मिलते हैं। यहां के लोगों का मानना है कि यह भगवान हनुमान के पदचिन्ह हैं। लेकिन कुछ लोगों का मानना है यह पदचिन्ह माता सीता के हैं।


आप भारतीय महाकाव्य रामायण में भी लेपाक्षी के ऐतिहासिक शहर के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। जब लंकापति रावण माता सीता का हरण कर ले जा रहा था। तब जटायू और रावण का युद्ध हुआ था। उस दौरान धरती पर मां सीता के पदचिन्ह बने थे। वहीं जटायु वृद्ध होने के कारण अधिक समय तक रावण से युद्ध नहीं कर पाया। रामायण के मुताबिक जटायु अपने अंतिम समय में भगवान श्रीराम और भ्राता लक्ष्मण से इसी स्थान पर मिला था।

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