बारिश रोकने के लिए (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Jun 28, 2025

इस बार मानसून अग्रिम आ गया लेकिन हर साल तो बारिश अब कम ही होती है। जहां चाहिए वहां नहीं होती, जहां बिलकुल नहीं चाहिए वहां ज़रूर होती है और तबाही मचाती है। वन विभाग हर साल करोड़ों वृक्ष लगाता है। पूरे देश में कुछ नालायकों को छोड़ दें, नहीं तो लाखों संस्थाएं वृक्षारोपण करती हैं। बड़े आकार के नेता अपने स्वार्थी हाथों से वृक्ष लगाते हैं। कुछ कर लो बारिश का बिगड़ा हुआ अनुशासन सधता नहीं।

 

बारिश करवाने के लिए पारम्परिक टोटके इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। हवन यज्ञ भी किए जाते रहे हैं। देवताओं को मनाया जाता रहा कि बारिश हो क्यूंकि फसल बर्बाद हुई जाती है। कई बार उसी बारिश को रुकवाने के लिए भी स्थानीय देव से आग्रहपूर्वक निवेदन किया जाता रहा है कि आज हमारे क्षेत्र में अमुक व्यवसायी, छ मंत्री, दो फिल्मी सितारे आ रहे हैं, हे देव बारिश न होने देना हम आपको यह और वह भेंट चढ़ाएंगे लेकिन बारिश है कि कुदरत की मर्ज़ी से होती है या रुकती है ।

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इस बार बारिश ने जल्दी आकर वही काम किए जो देर से आकर करती रही है। हम सामान्य भाषा में इसे बारिश का सितम कहते हैं हालांकि हमने कुदरत का नुकसान मनचाहे नए तरीकों से किया है। सौ प्रतिशत प्राकृतिक गलती के कारण, सड़कों पर मलबा गिर जाता है सड़कें टूट जाती हैं। विकास के रास्ते बंद हो जाते हैं। जिन सड़कों को बनाने में करोड़ों रूपए खर्च होते हैं उनका करोड़ों का नुकसान कर देती है। इंसान की मेहनत पर पानी फेर देती है। वैसे तो बारिश से बचने के गुम हुए उपाय खोजने के लिए बैठकें होने में हमेशा देर हो जाती है। इस बार तो बैठक करनी भी संभव नहीं लग रही। 


पानी ने इस बार नए रास्ते भी खोज लिए हैं जिसका फायदा वीडियो बनाने वालों को हो रहा है। वे नए नए वीडियो बनाकर डाल रहे हैं जिन्हें लाइक करने वाले नए लोग जुड़ रहे हैं। बाढ़ से बचने के लिए नए फार्मूले बताए जा रहे हैं। राजनीतिक लोग अपने अपने लोगों से सच्चे वायदे कर रहे हैं कि वे उनके साथ हैं। उनके कुछ बंदों को पता है कि उन्हें मुआवजा मिल ही जाएगा। सभी आम लोगों की तो मदद कभी नहीं की जा सकती। हां, बाढ़ में मरने वालों की मृत्यु को असामयिक, दुर्भाग्यपूर्ण बताने और उनके परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करने में देर नहीं की जाती।  


इस बार भी बारिश को रोकने के लिए घिसे पिटे तरीके प्रयोग किए जा रहे हैं। बारिश के कारण हुए नुकसान का मुआवजा देना आसान है। हम तो बारिश का पानी इक्कठा करने के उपाय भी नहीं करना चाहते। वास्तव में बारिश का पानी कोई रोकना नहीं चाहता क्यूंकि यह काम मुश्किल है। हमारे यहां तो आसान काम करना मुश्किल है, मुश्किल काम कौन करना चाहता है। फिलहाल तो कुदरत का इन्सान से बदला लेने का कार्यकम जारी रहने वाला है। असंतुलित बारिश हमारे गलत कारनामों का प्रसाद ही तो है।


- संतोष उत्सुक

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