हाथरस कांड के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैले जातीय तनाव को कम करने के लिए मैदान में उतरा संघ

By अंकित सिंह | Oct 05, 2020

हाथरस कांड के बाद से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जातीय तनाव को हवा दी जा रही है। खुद उत्तर प्रदेश सरकार ने भी यह दावा किया है कि हाथरस के जरिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दंगा कराने की साजिश थी। इसी को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चिंतित है। हाथरस कांड पर मुस्लिम नेताओं ने भी मुसलमानों से इसका विरोध करने और धरना प्रदर्शन में बढ़-चढ़कर शामिल होने की अपील की है जिससे संघ का शक और भी बढ़ रहा है। इसी तनाव और कड़वाहट को दूर करने के लिए संघ अब जमीन पर काम कर रहा है जिसका उद्देश्य एक बार फिर से सामाजिक समरसता बनाना है। इसमें संघ की मदद उसके सहयोगी संगठन भी कर रहे है।

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इस तनाव को रोकने के लिए संघ के तमाम संगठन गुपचुप तरीके से लोगों के बीच बैठक कर रहे हैं। लोगों को यह समझाया जा रहा है कि वह किसी साजिश में ना फंसे और हिंदू समाज को कमजोर ना होने दें। आरएसएस की ओर से साफ तौर पर यह आरोप लगाए जा रहे है कि हाथरस कांड के बाद से हिंदुओं को बांटने की कोशिश की जा रही है। इस बंटवारे को रोकने के लिए संघ अपने तमाम संगठनों के साथ क्षेत्र के लोगों से संपर्क में है। लोगों को इस बात को लेकर समझाया जा रहा है कि कुछ राजनीतिक ताकत है अपनी राजनीतिक वजहों के लिए हिंदू समाज को बांटना चाहती है। ऐसे में समाज में एकता बनाए रखें। यह और भी बढ़ गया है क्योंकि हाथरस कांड के बाद से पीड़ित और आरोपी पक्ष आमने-सामने हो गए है। दोनों ही तरफ से जातिगत समर्थक लामबंद हो चुके हैं।

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जहां पीड़िता के परिवार के समर्थन में दलित समुदाय के लोग सड़कों पर उतर आए हैं और लगातार आरोपियों को फांसी देने की मांग कर रहे हैं, वही आरोपी पक्ष के समर्थन में ठाकुर व अन्य सवर्ण बिरादरी के लोग एकजुट हो गए हैं। इनकी पंचायतें भी शुरू हो गई है। दरअसल, हाथरस कांड पर अब राजनीति हावी होती जा रही है। इसका कारण यह भी है कि 2014 में दलित और मुसलमानों के गठजोड़ की सियासत दरक गई थी उसे एक बार फिर लामबंद करने की कोशिश की जा रही है। देखना होगा इससे किसका फायदा होता है। पर एक बात तो साफ है कि ऐसे मामले में राजनीति होती है तो समाज और सामाजिक समरसता पर इसका गलत असर पड़ता है।

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