By अंकित सिंह | Mar 09, 2021
4 साल जेल की सजा काटने के बाद बाहर निकली वीके शशिकला ने सक्रिय राजनीति में लौटने का ऐलान किया था। हालांकि इसके कुछ दिन बाद ही उन्होंने इस बात का भी ऐलान कर दिया कि वह राजनीति से दूर रहेंगी। दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयललिता की करीब सहयोगी वीके शशिकला ने घोषणा की थी कि ‘वह राजनीति से दूर रहेंगी’ लेकिन दिवंगत पार्टी सुप्रीमो के ‘स्वर्णयुगीन’ शासन की प्रार्थना करेंगी। एक अप्रत्याशित एवं आकस्मिक एलान के तहत उन्होंने ‘‘अम्मा के समर्थकों’’ से भाई-बहन की तरह काम करने की अपील की और यह भी गुजारिश की कि वे यह सुनिश्चित करें कि जयललिता का ‘स्वर्णयुगीन शासन जारी रहे।
लेकिन सवाल यह है कि आखिर शशिकला के इस फैसले के पीछे का कारण क्या है? शशिकला जो राजनीति में सक्रिय होने के लिए प्रयासरत थीं, उन्होंने अचानक इससे दूरी क्यों बना ली। शशि कला का यह ऐसा फैसला है जो इतनी आसानी से किसी को हजम नहीं हो रहा है। राजनीतिक विश्लेषक इसके कई मायने निकाल रहे हैं। कुछ के मन में यह सवाल चल रहा है कि शशि कला की राजनीति से दूरी उनकी मजबूरी थी या फिर कोई बड़ा राजनीतिक दांव था। विश्लेषक तो फिलहाल शशिकला का इसे मजबूरी में खेला गया खेल बता रहे हैं। हालांकि विश्लेषक अब भी मान रहे हैं कि उनकी यह सोचना अस्थाई है। एक राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक शशिकला का यह दांव मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए खेला गया है। सबसे पहला कारण यह है कि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है और दूसरा कि उनके खिलाफ अभी 20 से ज्यादा मामले अदालतों में चल रहे है।
इसके अलावा वह डीएमके में शामिल भी नहीं सकती हैं और ना ही उसके साथ गठबंधन कर सकती हैं। खुद की पार्टी यानी कि एआईएडीएमके में उनके जाने का रास्ता नहीं बचा है। और सबसे बड़ा कारण यह है कि शशिकला को यह पता है कि भाजपा और एआईएडीएमके में गठबंधन होने के बाद तमिलनाडु चुनाव में लड़ाई अब डीएमके बनाम एआईएडीएमके के बीच में है। अगर इस चुनाव में एआईएडीएमके हारती है तो उसका सारा ठीकरा उनके ही सिर फूटेगा। हालांकि, आने वाले दिनों में शशिकला की राजनीति में वापसी होगी, वह भी जोरदार तरीके से। यह दावा हम नहीं बल्कि तमिलनाडु की राजनीति को समझने वाले विश्लेषक कर रहे हैं।
वर्तमान में देखे तो सभी ओपिनियन पोल में तमिलनाडु में सत्ता परिवर्तन के संकेत मिल रहे हैं। डीएमके और कांग्रेस गठबंधन को एआईएडीएमके और बीजेपी के गठबंधन से ज्यादा सीटें मिल रही है। पंचायत चुनाव में भी यही झलका था। ऐसे में अगर एआईएडीएमके की हार होती है तो शशिकला के लिए रास्ते खुल सकती हैं। शशिकला इस परिस्थिति में जयललिता की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी ले सकती हैं। ऐसी परिस्थिति में शशिकला एक बार फिर से पुराना इतिहास दोहराएंगी। जब एमजी रामचंद्रन की मृत्यु के बाद जयललिता को पार्टी से बाहर निकाल दिया गया था। डीएमके ने वह चुनाव जीता। बाद में जयललिता ने एमजीआर की विरासत को संभाला।