हम सब पॉलिटिक्स में हैं

By संतोष उत्सुक | Feb 24, 2022

चुनावी गिद्ध हमारे क्षेत्र में भी मंडरा रहे हैं। कल शाम मोहल्ले की सात महिलाएं अपनी पार्टी के बिल्ले लगाए, पता नहीं कैसे, ऐसे, वैसे टाइप उम्मीदवार के लिए वोट मांगने आ गई। इस मोहल्ले में आए हमें अड़तालीस महीने  बीत गए हैं। कभी इनसे हैल्लो शैलो भी नहीं हो पाई, मगर कल वे पूरे जोश, खरोश और होश से मिली मानों मेरी पत्नी को रोज़ मिलती हों। पत्नी को अपने गरीबखाने पर बुलाया, हमारे दौलतखाने में फुर्सत में आने का वायदा किया। हाथ जोड़कर मानो वोट ले ही गई।

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पत्नी का हाथ पकड़कर उन्होंने साथ चलने के लिए बहुत कहा, आप हाउस लेडी हैं प्रचार करने चलिए। जेब खर्च क्या, चलने का खर्च भी पार्टी देगी। पांच मास्क देगी। कोई काम होगा तो ‘डन’ करवा देंगे। टाइम पास के लिए नौकरी की इच्छा है तो वो भी ‘डन’ करवा देंगे। मैंने कहा कई अच्छे ऑफर्स एक साथ मुफ्त मिल रहे थे क्यूं नहीं गई। पता नहीं कौन सा कैसा टाइप का बंदा जीतेगा, इसलिए किसी को भी ओपनली सपोर्ट न करना ही ज़्यादा सुरक्षित है। मैं तो पिछली सात आठ बार की तरह, हर उम्मीदवार और नाउम्मीदवार के समर्थकों के सामने अपने हाथ पूरी तरह जोड़कर, दो तीन बार नकली स्माइल के साथ, ‘ज़रूर ज़रूर’ बोल देती हूं।


उनके साथ कोई निकट पड़ोसी आ ही जाए तो आइए बैठिए, चाय पीजिए भी बोलना पड़ता है। वैसे तो आजकल कोई आता नहीं लेकिन मुश्किल यह है कि माहौल ठीक मानकर कोई पसर ही जाए तो चाय पिलानी ही पड़ती है। एक्टिंग करना सीख गई हो आप, मैंने कहा। अभिनय युग है जनाब, अधिकांश लोग डर, अविश्वास, स्वार्थ, धोखा, झूठ और उदंडता को छिपाकर निडरता, विश्वास, निस्वार्थ, भरोसा, सच, सौम्यता का अभिनय कर रहे हैं। बेचारी जनता चुप रह्कर बोल रही। अगर कोई उसकी भाषा समझे तो वह किसी के साथ नहीं बदलाव के साथ होना चाहती है। अखबार, चैनल, मीडिया और नामचीन हस्तियाँ समझा रही हैं कि गधों को नहीं घोड़ों को घास डालें।

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नेता ज़्यादा वोट चाहते हैं मगर उन्होंने ही तो मतदाताओं के उत्साह को मुद्दों की उदासी में गुम कर दिया है। वोटर ने मान लिया है कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की तरह ही वोट दिवस भी एक पेड होलीडे है।  उसे किसी ऐसे व्यक्ति के लिए भला क्यूं नष्ट करना जो लाखों खर्च कर करोड़ों कमाना चाहता है। सब कुछ अपने और अपनों के लिए करके उसे इलाके, प्रदेश और देश के लिए बताने वाला है। चुनाव में करोड़पति दिग्गज इसलिए उतरे हैं ताकि ताक़तपति बनने के मौके हथियाए जाएं। चुनाव कोई भी लड़ सकता है लेकिन यह मौक़ा हर किसी से भड़ास निकालने और बाद में राजनीतिक बिजनेस करने का होता है।  


आज इन सबके दिल से पूछो तो भरपूर दौलत और शोहरत के बावजूद यह सभी, दूसरों से कम अपनी करतूतों से ज्यादा डरे हुए हैं। सब अभिनेता हैं इसलिए काफी कुछ छिपाए हुए हैं। मैंने पूछा, आपको खुश होना चाहिए ज़्यादा महिलाएं चुनाव में भाग्य आज़मा रही हैं। क्यों खुश होऊं भला, उनमें से कितनी हमारी जैसी की रसोइयों में आकर देखेंगी कि रोटी और दाल जुटाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। पत्नी की बातों से लगा हम सब पॉलिटिक्स में हैं।


- संतोष उत्सुक

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