अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से लोकसभा चुनावों पर क्या असर पड़ेगा?

By उमेश चतुर्वेदी | Mar 30, 2024

लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया जारी हो, इसी बीच किसी राज्य के मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी हो और उस पर राजनीति ना हो, ऐसा संभव ही नहीं है। दिल्ली के कथित आबकारी घोटाले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता को प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने गिरफ्तार किया है। ईडी का दावा है कि इन गिरफ्तारियों के पीछे कोई राजनीति नहीं है। लेकिन राजनीति और लोक का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है, जो इन गिरफ्तारियों के पीछे राजनीति देख रहा है। मोदी विरोधी आईएनडीआईए गठबंधन में चूंकि केजरीवाल भी शामिल हैं, लिहाजा गठबंधन के नेता इन गिरफ्तारियों को सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक बताने-बनाने में जुट गए हैं। उनका एक ही सवाल है कि आखिर सिर्फ विपक्षी नेताओं को ही ईडी या सीबीआई निशाना क्यों बना रहे हैं? बार-बार ऐसा कहकर एक तरह से मोदी विरोधी मोर्चे के नेताओं की कोशिश यह है कि इन गिरफ्तारियों को भ्रष्टाचार की बजाय सिर्फ राजनीति का रंग दिया जाए और इसके जरिए मोदी विरोधी वोटों की फसल काट ली जाये।


लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसा संभव है? मोदी के उभार के बाद के दोनों संसदीय चुनावों में दिल्ली विधानसभा में अपार बहुमत रखने वाली आम आदमी पार्टी एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई है। इस बार तो आम आदमी पार्टी ने उस कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लिया है, जिसके भ्रष्टाचार के विरोध में उसका समूचा अस्तित्व पनपता रहा। दिल्ली में लोकसभा की सात सीटें हैं, जिनमें तीन सीटों पर जहां कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, वहीं आम आदमी पार्टी चार सीटों पर मैदान में है। पिछले दो आम चुनावों में आम आदमी पार्टी की स्थिति तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई थी। गठबंधन करके कांग्रेस और आम आदमी पार्टी-दोनों ने उम्मीद लगा रखी है कि दो आम चुनावों से जारी दिल्ली में उनका सूखा शायद कम हो जाए। केजरीवाल की गिरफ्तारी के पहले तक ऐसा नहीं लग रहा था कि विगत के दो चुनावों से इतर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का इतिहास इस बार इतर होने जा रहा है। लेकिन केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद दोनों पार्टियों को सहानुभूति लहर उठने की उम्मीद है। उन्हें लगता है कि सहानुभूति की वजह से इस बार भारतीय जनता पार्टी के किले में सेंध लग सकती है।

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शराब घोटाले में केजरीवाल के पहले उनके दो स्तंभों पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह गिरफ्तार हो चुके हैं। उनकी जमानत की याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं। दिल्ली शराब नीति घोटाले में दिल्ली से तीसरी बड़ी गिरफ्तारी केजरीवाल की हुई है। इसी केस में भारत राष्ट्र समिति की नेता और पार्टी अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव की बेटी के कविता भी गिरफ्तार हैं। केजरीवाल को गिरफ्तार करने से पहले ईडी ने नौ बार समन देकर उन्हें बुलाया। लेकिन हर बार वे ईडी के सामने जाने से बचते रहे। केजरीवाल का राजनीतिक अनुभव भले ही कम हो, लेकिन उनकी पैंतरेबाजी से साफ है कि राजनीति करने में वे पुराने से पुराने नेताओं पर भारी हैं। समन को अनदेखा करके एक तरह से वे इस मुद्दे को जिंदा रखने और इसके जरिए अपने लिए वोटरों की सहानुभूति हासिल करने की कोशिश करते रहे। गिरफ्तारी के बावजूद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा ना देकर भी केजरीवाल राजनीति कर रहे हैं। ईडी की हिरासत से ही वे दिल्ली के लिए दो आदेश जारी कर चुके हैं। पहले में जहां उन्होंने दिल्ली की सीवर व्यवस्था दुरूस्त करने का आदेश दिया है, वहीं उनका दूसरा आदेश स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त रखना है। दिल्ली में विपक्षी भूमिका निभा रही भारतीय जनता पार्टी इस पर हंगामा कर रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से केजरीवाल को हटाने की मांग वाली याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल की गई। जिसे हाईकोर्ट ठुकरा चुका है। इसके बावजूद नैतिकता के आधार पर भाजपा केजरीवाल से इस्तीफे की मांग कर रही है। लेकिन केजरीवाल के खेमे के तर्क है कि संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति को अपने पद से इस्तीफा दे ही देना होगा। इस तर्क के सहारे केजरीवाल मुख्यमंत्री के पद पर जमे हुए हैं।


हिरासत से आदेश देना और उसका आम आदमी पार्टी द्वारा भरपूर प्रचार किया जाना दरअसल केजरीवाल के प्रति सहानुभूति हासिल करने की प्रक्रिया का ही विस्तार है। भारतीय समाज भावुक होता है। इस भावुकता का फायदा हर राजनीतिक दल अपने तईं उठाते रहे हैं। इसी अंदाज में केजरीवाल परिवार भी आगे बढ़ रहा है। केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल के भावुकताभरे बयान भी इसका ही उदाहरण हैं। दरअसल इन कदमों से आम आदमी पार्टी दिल्ली के लोगों को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि जेल में रहते हुए भी आम आदमी पार्टी प्रमुख सिर्फ दिल्ली के ही बारे में सोच रहे हैं। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी की कोशिश इस बहाने सहानुभूति हासिल करना है।


इस बीच दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के एक बयान से दिल्ली सरकार की बर्खास्तगी को लेकर अटकलें तेज हो गईं। उपराज्यपाल ने यह कह दिया कि जेल से दिल्ली की सरकार नहीं चलने दी जाएगी। उपराज्यपाल के इस बयान के बाद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने की कोशिशों का जोरदार विरोध किया। वैसे माना यह जा रहा है कि यह विरोध भी आम आदमी पार्टी की रणनीति का ही हिस्सा है। ताकि केंद्र सरकार दिल्ली सरकार को बर्खास्त कर दे। इससे केजरीवाल के पक्ष में जोरदार लहर उठ खड़ी होगी और मौजूदा आम चुनावों में आम आदमी पार्टी इसका फायदा उठा सकेगी।


वैसे भारतीय जनता पार्टी की ओर से केजरीवाल को दोषी बताने की खूब कोशिशें हो रही हैं। दिल्ली में विपक्षी दल होने के नाते उसकी यह जिम्मेदारी भी है। लेकिन यह भी सच है कि दिल्ली बीजेपी की यह कोशिश बहुत ज्यादा कामयाब नहीं है। दिल्ली का एक वर्ग ऐसा भी है, जो मानता है कि केजरीवाल को तंग किया जा रहा है। दिल्ली की बसों, मेट्रो आदि में ऐसी चर्चाएं सुनाई दे रही हैं। हालांकि एक तबका ऐसा भी है, जो मानता है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उभरे केजरीवाल भी भ्रष्ट हो गए हैं। केजरीवाल के प्रति सहानुभूति रखने वाले में उस वर्ग के लोग ज्यादा हैं, जिन्हें दिल्ली सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का फायदा मिल रहा है। हालांकि दिल्ली की खस्ताहाल बसें, व्यवस्था की ढिलाई आदि के चलते केजरीवाल सरकार से नाराजगी रखने वाला भी एक वर्ग है। जो इस गिरफ्तारी को जायज ठहरा रहा है। केजरीवाल की गिरफ्तारी को नाजायज बताने में जुटी कांग्रेस की स्थित सांप-छछूंदर जैसी हो गई है। लोग चुटकियां लेने से बाज नहीं आ रहे। लोगों का कहना है कि जिस कांग्रेस को भ्रष्टाचारी बताते-बताते केजरीवाल ने नष्ट कर दिया, वह भी उसकी ईमानदारी की गारंटी दे रही है। यही वजह प्रहसन का बिंदु है, जिसकी वजह से दिल्ली के आम चुनावों में बीजेपी उम्मीद लगा सकती है। हालांकि इस प्रहसन के प्रभाव को कम करने की कोशिश में आम आदमी पार्टी ही नहीं, कांग्रेस भी प्राणपण से जुटी है। दिल्ली की काया पलटने वाली कांग्रेसी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित कभी कहा करते थे कि वे केजरीवाल से अपनी मां के अपमान का बदला जरूर लेंगे। वह संदीप दीक्षित भी अब केजरीवाल की गिरफ्तारी को गलत बताने लगे हैं। संदीप दीक्षित जैसों के बयानों को भाजपा के दिल्ली के लोकसभाई किले में सेंध लगाने की कोशिश का विस्तार मान सकते हैं।


दिल्ली के अपने छह सांसदों के टिकट भाजपा ने काट दिए हैं। सिर्फ मनोज तिवारी ही ऐसे हैं, जिन्हें तीसरी बार टिकट मिला है। भाजपा के इस कदम का आम आदमी पार्टी और कांग्रेस- दोनों भाजपा की नाकामी के रूप में दिखाने-जताने की कोशिश कर रहे हैं। इसका मकसद यह है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद उपजी सहानुभूति लहर को उभारते हुए भाजपा की नाकामी से जोड़ दिया जाए और उसका चुनावी फायदा उठाया जाए। दिल्ली में पांचवें दौर में 25 मई को चुनाव होना है। जिसमें काफी वक्त है। अभी तक तो कांग्रेस अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान तक नहीं कर सकी है। ऐसे में चुनावी पानी की धार को लेकर फिलहाल कुछ कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन एक बात स्वीकार करनी होगी कि अगर केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर सहानुभूति लहर बढ़ी तो दिल्ली का चुनावी इतिहास बदल सकता है। वैसे अब तक जैसी सहानुभूति है, उससे इतिहास बदलने की उम्मीद फिलहाल बेमानी है।


-उमेश चतुर्वेदी

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

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