By अभिनय आकाश | Dec 01, 2025
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार चुनाव में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद यह बात तो कह दी कि जहां मां गंगा जाएंगी वहां पर बीजेपी आएगी। यानी पश्चिम बंगाल के लिए प्लानिंग तैयार है। लेकिन क्या पश्चिम बंगाल में बीजेपी को जीत दर्ज कर पाना उतना ही आसान होगा जितना बिहार में था? 2025 में पहले दिल्ली और अब बिहार के चुनाव हुए, जिसमें बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की है। 2026 में चार बड़े राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में चुनावी रथ दौड़ेगा। जिन पांच राज्यों में अगले वर्ष चुनाव होने हैं, उनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी हैं। वहीं 2027 में पंजाब, यूपी समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। एक तरह से देखा जाए तो भारत का राजनीतिक परिदृश्य 2025 से 2029 के बीच कई अहम चुनावी घटनाओं से भरा रहेगा। पश्चिम बंगाल में चुनाव मई के महीने में होंगे और बंगाल में बीजेपी के लिए रास्ते आसान नहीं होंगे। क्योंकि ना बिहार वाले मुद्दे होंगे ना बिहार वाला समीकरण होगा। बीजेपी को वहां पर अकेले ही पूरा दम लगाना होगा। वहां पर नीतीश कुमार, चिराग पासवान जैसे सहयोगी भी नहीं होंगे ।
पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य हैं, जहां पर पिछले कई साल से बीजेपी जी-तोड़ मेहनत कर रही है। 2021 में कोविड के दौरान हुए चुनाव में भी बीजेपी ने ममता बनर्जी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए बहुत कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो पाई। हालांकि पिछले चुनाव में बीजेपी का न केवल वोट शेयर अच्छा खासा बढ़ा बल्कि सीटों की संख्या भी 3 से बढ़कर 77 हो गई। 294 सदस्यों वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस ने 213 सीटें जीतकर और अब 2026 के चुनाव में फिर एक बार रोचक मुकाबले की उम्मीद है।
पूरे केंद्रीय नेतृत्व को दम लगाना होगा और उसके लिए मुसलमानों को साधना होगा। जरूरी नहीं है कि मुस्लिम बीजेपी को वोट करें। लेकिन वहां पर भी बीजेपी को उन मुसलमानों तक पहुंच बनानी होगी जो टीएमसी को घाटा पहुंचा सके। या तो मुस्लिम बीजेपी को वोट कर दें या फिर सीपीएम-सीपीआई और कांग्रेस के साथ चले जाए। जिससे बीजेपी बिहार वाले सीमांचल की तरह वहां पर प्रदर्शन कर पाए। हार्ड कोर हिंदुत्व वाली पॉलिटिक्स जो है अगर वो बीजेपी ने बंगाल में की तो फिर उसके लिए हालात थोड़े चुनौतिपूर्ण हो सकते हैं। सबसे बड़ा सवाल ये कि 70 से 75% वाले हिंदू बहुल पश्चिम बंगाल में हिंदुत्व वाली हार कोर्ट पॉलिटिक्स क्यों नहीं चल सकती? तो इसके पीछे का कारण लगभग 30 प्रतिशत की मुस्लिम आबादी सीधे सीधे 50 सीटों पर टर्निंग फैक्टर हैं। 25 से 30 सीटों पर उनका प्रभाव ऐसा है कि वो वहां का माहौल बदल देते हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में अगर देखें और 204 के लोकसभा चुनाव में तो मुस्लिमों का साथ बीजेपी को नहीं मिला। 2026 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ऐसा नहीं होने देना चाहती है और मुस्लिमों तक पैठ बनाने की तैयारी कर ली गई है। बीजेपी का मानना है कि राष्ट्रवादी मुस्लिमों के खिलाफ वो नहीं है। वो उन मुस्लिमों के खिलाफ हैं जो देश को दहलाने की कोशिश करते हैं। जो कट्टरपंथ वाले विचारधारा वाले हैं। बीजेपी ऐसे मुस्लिमों के बीच पहुंच बना रही है जो टीएमसी के खिलाफ हैं। बहुत ज्यादा पिछड़े हैं। यानी सीधे से पसमांदा मुस्लिम। टीएमसी से नाराज मुस्लिम सीपीएम और कांग्रेस के पास अक्सर चले जाते हैं। उनको वोट कर देते हैं। लेकिन अब की बीजेपी उन्हें अपने साथ लाने की पूरी कोशिश कर रही है। बीजेपी का यह प्लान है कि अबकी सीपीआई या सीपीएम के पास टीएमसी से नाराज मुस्लिम वोटर ना जाएं।
यह तो पता ही है कि जो घुसपैठिए हैं जो जबरदस्ती जिनका वोटर आईडी आधार कार्ड बनवा दिया गया वो तो वोट नहीं करेंगे। हालांकि एसआईआर में उनका सफाया हो जाएगा। वो एक बड़ा फैक्टर होगा यहां पर। तो एसआईआर में सफाए के बाद जो इसी देश के मुस्लिम बचेंगे और जो टीएमसी से नाराज होंगे उनको खींचने की तैयारी बीजेपी आलाकमान ने कर ली है। अब ऐसे में पश्चिम बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष का बयान आया है। उन्होंने दावा किया है कि पिछले तीन सालों में पश्चिम बंगाल में हुई राजनीतिक हिंसा में सबसे ज्यादा मौत मुसलमानों की हुई। मुसलमान ही मुसलमानों को मार रहे हैं। बीजेपी अब यह बता रही है मुस्लिमों को कि आपके दुश्मन हिंदू नहीं है। आपके दुश्मन मुसलमान हैं।
भ्रष्टाचार का मुद्दा भी दिल्ली चुनाव में बड़ा फैक्टर रहा। बंगाल में भी घर घर तक ममता सरकार के भ्रष्टाचार के किस्से बताने की योजना बीजेपी की तरफ से बनाई गई है। पश्चिम बंगाल में 2011 से ही ममता बनर्जी की सरकार है। तब टीएमसी ने 34 साल पुराने लेफ्ट के किले को ढहा कर पहली बार सत्ता हासिल की थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की दो सीटें जीती और तब से ही वहां अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए लगातार कोशिश कर रही है। 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को तीन सीटें मिली लेकिन वोट शेयर 10 पसेंट रहा, जो बीजेपी का उत्साह बढ़ाने के लिए काफी था। हालांकि 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रही। लेकिन बीजेपी 77 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 12 सीटें ही जीत पाई। लेकिन लेफ्ट और कांग्रेस की स्थिति को देखते हुए अभी तो ये लग रहा है कि पश्चिम बंगाल में मुख्य मुकाबला टीएमसी और बीजेपी के बीच हो सकता है।
गौरतलब है कि बंगाल में 2026 में चुनाव है और बीजेपी के लिए वहां सत्ता पाना अभी तक ख्वाब सरीखा ही रहा है। संघ से लेकर बीजेपी संगठन के पूरी ताकत लगाने के बावजूद वो ममता के किले को भेद नहीं पा रही है। 2016 विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 211 सीटें मिली थी। बीजेपी को महज 3 सीटें मिल पाई थी। 2021 में भी ममता की पार्टी को 213 सीटें मिली। इस दौरान बीजेपी 77 सीटों के साथ मजबूत तो हुई लेकिन उसे सत्ता नहीं मिल सकी। केवल विधानसभा ही नहीं लोकसभा चुनाव में भी बंगाल में ममता के आगे बीजेपी का भगवा रथ अटकता रहा। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बंगाल में ममता को कड़ी टक्कर दी। बावजूद इसके टीएमसी 42 में से 22 सीटें जीत गई और बीजेपी को 18 सीटें मिली। वहीं 2024 के चुनाव में तो ममता के आगे बीजेपी पिछला प्रदर्शन भी नहीं दोहरा सकी। 2024 में बीजेपी को सिर्फ 12 सीटें मिल पाईं। लेकिन इस बार संघ इस गुणा गणित को बदलना चाहता है।
बीजेपी 2027 में अपने मजबूत गढ़ जैसे उत्तर प्रदेश, गुजरात में प्रभुत्व बनाए रखने की कोशिश करेगी। गोवा, मणिपुर, पंजाब में फरवरी- मार्च 2027 में चुनाव हो सकते हैं। गोवा में तो बीजेपी की सरकार है लेकिन पंजाब में बीजेपी को लगातार हार मिल रही है। यूपी में अप्रैल मई 2027 में चुनाव हो सकते हैं। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में नवंबर-दिसंबर में चुनाव हो सकते हैं।