जब होममेड हो आचार (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Feb 09, 2023

जिस तरह राजनीति में पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक संबंधों का बढ़िया आचार कई तरीकों से डाला जाता है उसी प्रकार स्वाद की दुनिया में भी अनेक तरह के आचारों का बहुत महत्त्व है। ग्राहक बाज़ार की रौनक बनने, नए नए आचार डाले जाते हैं और नए नए आकर्षक, स्वादिष्ट तरीकों से बेचे जाते हैं। दर्जनों कम्पनियां सिर्फ आचार ही बेचती हैं। नए आचार के ईमानदार व शोरदार विज्ञापन में आचार को सलीके से होममेड बताया जाता है यानी घर में बनाया या घर का बना। वैसे हमें इसका अर्थ किसी बिल्डिंग में बनाया लेना चाहिए क्यूंकि ऐसा विज्ञापन में ही इंगित कर दिया जाता है। आचार और व्यवहार में से आम तौर पर चटपटे आचार को ज़्यादा पसंद किया जाता है और व्यवहार को किनारे रख दिया जाता है। वह बात अलग है कि अच्छे व्यवहार का प्रभाव उगाने वाला विज्ञापन सफल हो जाए तो आचार खरीददारों की लाइन लग जाती है।


विज्ञापन का ज़माना है, नया और लुभावना रचने का समय है इसलिए विज्ञापन में दर्शाए गए चित्र रचनात्मक प्रस्तुति के लिए बनाए होते हैं। होममेड शब्द लिखना केवल एक ट्रेड मार्क चिन्ह है और आचार की वास्तविक प्रकृति का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। पिछले कुछ समय से तो परिस्थितियां भी ऐसी चल रही थी कि होम निवासियों का आचार और व्यवहार, अप्रत्याशित और अस्वादिष्ट बना हुआ था।  विज्ञापन पकाने वालों की तारीफ़ होनी चाहिए। वे मानते हैं कि विज्ञापन शब्दों, चित्रों और कल्पना का खेल है। वह बात चुनाव से सम्बद्ध है कि खेलने का मैदान समाज, धर्म या राजनीति में से क्या हो या सभी मैदानों में एक साथ, एक ही खेल खेला जाए। हमारे यहां तो हर चीज़ ट्रेड मार्क हो चली है और हर काम ट्रेड यानी व्यापार। यहां तो व्यवहार भी ट्रेडमार्क है ठीक होममेड शब्द की तरह। व्यवहार भी किसी व्यक्ति या महाव्यक्ति की वास्तविक प्रकृति, प्रवृति का प्रतिनिधित्व नहीं करता।

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इधर नए होममेड आचार का विज्ञापन आता रहता है और संहिता का ताज़ा आचार जगह जगह डाला जाता रहता है। इस व्यवहारिक अनुशासन के लिए हमें करवट बदलती व्यवस्था का शुक्रगुजार होना चाहिए।  संहिता के आचार को नई नई विधियों से डालकर ज्यादा स्वादिष्ट और बिकाऊ बनाने के पूरे प्रयास हमेशा किए जाते रहे हैं। आचार की पुरानी संहिता में नए होममेड मसाले डाले जाते रहे हैं। हर स्वाद का स्तर उठाए रखने के लिए धार्मिक, क्षेत्रीय, जातीय व साम्प्रदायिक आंच पर खूब पकाया जाता है। सामाजिकता, नैतिकता व इंसानियत के होममेड गुण विशेष घरों की ऐतिहासिक एवं पारम्परिक रसोई में पकाकर लाए जाते हैं।  


हमने समय को पूरा बदल दिया है, अब तो कहीं भी ‘नेचुरल’ शब्द पढ़ाकर  प्रकृति की याद दिलाई जाने लगती है इस शब्द द्वारा ज़ोर शोर से कुदरत का प्रतिनिधित्व कराया जाता है। हर चीज़, विचार, व्यवहार और कर्मों का ‘होममेड’ आचार डालकर उसे सबसे बढ़िया, स्वादिष्ट और टिकाऊ बताकर बाज़ार में उतारने का ज़माना है। इन उत्पादों को बेचने के लिए हर कोई तैयार बैठा है लेकिन गुणवता सम्बंधित शिकायत करना वर्जित है। हां, सप्लाई एवं सर्विस से सम्बंधित कोई भी शिकायत करनी हो तो संपर्क केन्द्रों की भरमार है। सीधी बात यही है कि अब होममेड सिर्फ ट्रेड मार्क है।    


- संतोष उत्सुक

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