जब झुंझुनू से चुनाव हार गए थे उद्योगपति कृष्ण कुमार बिड़ला

By रमेश सर्राफ धमोरा | Apr 11, 2024

हरियाणा सीमा पर स्थित राजस्थान का झुंझुनू जिला एक तरफ जहां पूरे देश में सैनिकों के लिए जाना जाता है। वहीं दूसरी तरफ देश के बहुत से बड़े-बड़े उद्योगपति भी झुंझुनू जिले के रहने वाले हैं। हालांकि सभी बड़े उद्योगपति झुंझुनू जिले से बाहर जाकर अपना व्यवसाय बढ़ा कर उद्योग जगत में अपना नाम कमाया है। मगर कई बार औद्योगिक घरानो के परिवार के सदस्य अक्सर झुंझुनू आते रहते हैं। इसी तरह भारतीय सेना में देश में किसी एक जिले से सबसे अधिक सैनिक झुंझुनू जिले के जवान है। वही देश में सबसे अधिक शहीद भी झुंझुनू जिले के सैनिक हुए हैं।


देश में लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है। सभी जगह चुनावी चर्चाएं जोरों से चल रही है। झुंझुनू जिले में 1971 का लोकसभा चुनाव पूरे देश में चर्चित रहा था। उस समय देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में शुमार बिड़ला घराने के कृष्ण कुमार बिड़ला स्वतंत्र पार्टी से झुंझुनू लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे थे। उनके सामने कांग्रेस पार्टी ने एक साधारण किसान के घर जन्मे शिवनाथ सिंह गिल को चुनाव मैदान में उतारा था। पिलानी के रहने वाले बड़े उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला के सुपुत्र कृष्ण कुमार बिड़ला का उस समय देश के उद्योग जगत में एक बड़ा नाम होता था। लाखों की संख्या में लोग बिड़ला घराने के औद्योगिक संस्थानों में काम करते थे। 

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दूसरी तरफ बैंकों के राष्ट्रीयकरण व पाकिस्तान युद्ध में मिली जीत के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की देशभर में हवा चल रही थी। उस समय देश में इंदिरा गांधी आई है, नई रोशनी लाई है नारा बहुत चर्चित हुआ था। उस नारे की बदौलत देश में कांग्रेस की ऐसी हवा चली थी कि विपक्ष के कई बड़े धुरंधर नेता चुनाव हार गए थे। इंदिरा गांधी ने बिड़ला घराने के कृष्ण कुमार बिड़ला को हराने के लिए जिले के धमोरा गांव के शिवनाथ सिंह गिल को चुनाव मैदान में उतार दिया था। उस समय शिवनाथ सिंह गिल गुढ़ा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक थे। 


चुनाव में एक तरफ देश के सबसे धनवान प्रत्याशी थे तो दूसरी तरफ कांग्रेस के एक साधारण किसान चुनाव लड़ रहा था। उस वक्त के चुनाव में धनवान बनाम किसान का नारा लगा था। स्वतंत्र पार्टी के प्रत्याशी कृष्ण कुमार बिड़ला ने अपने कल कारखानों में कार्यरत झुंझुनू जिले के सभी लोगों को चुनाव प्रचार के लिए झुंझुनू भेज दिया था। बिड़ला की ओर से बड़े भव्य तरीके से चुनाव लड़ा जा रहा था तथा जमकर पैसा खर्च किया जा रहा था। वहीं दूसरी तरफ शिवनाथ सिंह गिल सामान्य प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। 


जब चुनाव नतीजे आए तो सभी राजनीतिक पर्यवेक्षक दंग रह गए। बड़े-बड़े राजनीतिक भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणी फेल हो गई। देश के सबसे बड़े उद्योगपति परिवार के कृष्ण कुमार बिड़ला को कांग्रेस के एक किसान परिवार के प्रत्याशी शिवनाथ सिंह गिल ने 98949 वोटो के अंतर से चुनाव हार दिया था। उस चुनाव में कांग्रेस के शिवनाथ सिंह गिल को 223286  यानी 59.79 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं स्वतंत्र पार्टी के कृष्ण कुमार बिड़ला को 124337 यानी 33.30 प्रतिशत वोट मिले थे। कामरेड घासीराम को 9548 वोट, हणुताराम को 5073 वोट, बलदेव प्रसाद को 3143 वोट, दुलाराम को 3013 वोट, महादेव प्रसाद को 2113 वोट, बृजमोहन को 1801 वोट, तारावती को 1113 वोट मिले थे। उस चुनाव में मुल 9 प्रत्याशी खड़े हुए थे। मगर मुख्य मुकाबला कृष्ण कुमार बिड़ला व शिवनाथ सिंह गिल के बीच ही हुआ था। 


लोकसभा चुनाव में हारने के बाद बिड़ला परिवार का झुंझुनू जिले से मोह भंग हो गया और उन्होंने अपनी जन्म भूमि पिलानी में एक शैक्षणिक संस्थान बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (बिट्स) के अलावा और कोई भी ऐसा काम नहीं किया जो जिले की जनता के काम आ सके। हालांकि बाद में कृष्ण कुमार बिड़ला कांग्रेस के टिकट पर 1984 से 2002 तक लगातार 18 वर्षों तक राज्यसभा सदस्य रहे। बाद में कृष्ण कुमार बिरला की बेटी व हिंदुस्तान टाईम्स अखबार की अध्यक्ष शोभना भरतीया भी एक बार कांग्रेस के टिकट पर राजस्थान से राज्यसभा सदस्य रह चुकी है।


कहते हैं कि उस चुनाव में बिड़ला परिवार ने अपने यहां काम करने वाले लोगों को चुनाव प्रचार के लिए झुंझुनू भेज दिया था और बिड़ला परिवार के बड़े-बड़े मैनेजर अलग-अलग विधानसभा चुनाव के प्रभारी बनाए गए थे। जब वह अपने समर्थन में आए हुए लोगों से चुनाव के दौरान चुनाव की स्थिति पूछते थे तो सभी लोग कहते थे कि बाबू बारह आना यानी की 12 आने में बाबू है बाकी में शिवनाथ सिंह गिल है। मगर जब बिड़ला परिवार की चुनाव में हार हो गई तो लोगों ने एक जुमला बना लिया कि बाबू बिड़ला तो पहले ही बारह आना थे। यानी कि पहले ही उनके भाव खराब थे। उस समय बाबू बारह आना बहुत चर्चित हुआ था।

पुराने लोग बताते हैं कि चुनाव के दौरान बिड़ला परिवार ने लोगों से वायदा किया था कि यदि कृष्ण कुमार बिड़ला चुनाव जीतते हैं तो जिले में ऐसे बड़े उद्योग धंधों की स्थापना की जाएगी जिससे आने वाले समय में लोगों को रोजगार मिलेगा। मगर बिड़ला परिवार की हार के बाद उन्होंने जिले के विकास में कोई रुचि नहीं ली। 1971 में बिड़ला को भारी मतों से हराने वाले शिवनाथ सिंह गिल भी 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की लहर में कन्हैयालाल महला से सवा लाख से ज्यादा मतों से चुनाव हार गए थे।


रमेश सर्राफ धमोरा

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार है।)

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