By दिव्यांशी भदौरिया | Dec 08, 2025
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत विशेष महत्व है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित हैं। वर्ष में कुल 24 एकादशी तिथि पड़ती हैं और प्रत्येक महीने में 2 एकादशी मनाई जाती है। पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर सफला एकादशी तिथि मनाई जाती है। इस दिन पूजा-पाठ, व्रत और दान करने से जातक को सफलता, सौभाग्य और मनचाहे फल प्रदान करता है। एकादशी के दिन विधिवत रुप से पूजा व व्रत करने से साधक को सभी कार्यों में सकारात्मक परिणाम मिलता है। एकादशी का दिन छात्रों के लिए उत्तम होता है, भगवान विष्णु को कुछ चीजों का भोग लगाने से करियर-परीक्षा में सफलता के योग बनते हैं। इतना ही नहीं, श्री विष्णु अपने भक्तों के सभी कष्ट, पाप और बाधाओं को दूर करते हैं। ऐसे में कुछ लोगों को कन्फ्यूजन है कि 14 या 15 को कब सफला एकादशी मनाई जाएगी। आइए आपको बताते हैं कब है सफला एकादशी।
सफला एकादशी 2025
हिंदू पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 14 दिसंबर को शाम 6:49 बजे से प्रारंभ होकर 15 दिसंबर को रात 9:19 बजे समाप्त होगी। तिथि के अनुसार, सफला एकादशी का व्रत 15 दिसंबर 2025 को ही मान्य माना जाएगा।
पूजा का मुहूर्त
पंचांग के मुताबिक, सफला एकादशी पर ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5 बजकर 17 मिनट से लेकर 6 बजकर 12 मिनट तक रहेगा। अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 56 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 37 मिनट तक मान्य है। इस दौरान चित्रा नक्षत्र बन रहा, जिस पर शोभन योग का संयोग बना रहेगा।
सफला एकादशी पूजा विधि
- सबसे पहले आप एक साफ चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं। अब इस चौकी पर भगवान विष्णु जी की मूर्ति को स्थापित करें।
- अब आप भगवान को वस्त्र पहनाएं। इस दौरान श्री विष्णु का श्रृंगार करें और माला पहनाएं।
- इसके बाद आप भगवान विष्णु को चंदन का तिलक लगाकर 'ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात:' मंत्र का जाप करना।
- अब साफ शुद्ध घी से दीपक जलाएं। इसके बाद बेसन का लड्डू, केले, पंजीरी और पंचामृत से श्री विष्णु को भोग लगाएं।
- इसके बाद सफला एकादशी की कथा पढ़ें। फिर आरती करें और सुख-समृद्धि की कामना करें।
- इसके बाद आप अन्न दान कर सकते हैं या फिर आप किसी जरुरतमंद को पैसे भी दे सकते हैं।
भगवान विष्णु की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥