By अनन्या मिश्रा | May 05, 2024
आज ही के दिन यानी की 05 मई को अमृतसर के 'बासर के' गांव में सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम तेजभान और मां का नाम लखमीजी था। सिखों के तीसरे गुरु अमर दास आध्यात्मिक चिंतन वाले व्यक्ति थे। वहीं पूरा दिन व्यापार और खेती में व्यस्त रहने के बाद लगातार हरि नाम का जप करते रहते थे। जिसके कारण लोग उनको अमर दास कहकर पुकारने लगे।
गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब की स्थापना कर सिख धर्म के भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया था। उन्होंने सांझी बावली का निर्माण कराया था, जहां पर सब एक साथ बैठकर लंगर चखते थे। बताया जाता है कि उन्होंने अपनी पुत्रवधु से गुरु नानक देवजी द्वारा रचित एक 'शबद' सुना। उसको सुनकर वह इतना अधिक प्रभावित हुए कि गुरु अंगद देवजी का पता पूछकर फौरन गुरु चरणों में पहुंच गए। गुरु अमरदास जी ने खुद से 25 साल छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले दूसरे सिख गुरु अंगद देवजी को अपना गुरु बना लिया और लगातार 11 सालों तक उनकी निष्ठाभाव से सेवा करते रहे।
समाज में फैली बुराइयों को किया दूर
गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म के प्रसार में समाज सेवा को अपना आधार बनाया। उन्होंने समाज में फैली सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने की पहल की और स्त्री शक्ति को यथोचित सम्मान दिया। इसके साथ ही उन्होंने भेदभाव और छुआछूत को मिटाने के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हैं। द्वितीय गुरु ने गुरु अमर दास को व्यास नदी के तट पर एक नया गांव बसाने और सिख धर्म के प्रसार-प्रचार की अनुमति दी थी।
गुरुगद्दी पर विराजमान
बता दें कि 1522 में गुरुगद्दी पर विराजमान होने के बाद 'गोइंदवाल साहिब' की स्थापना हुई। गुरु अमरदास ने सारे सिख समाज को 22 भागों में बांटकर 22 पीठ स्थापित किए। इनको मंजियां कहा जाता था। इसके अलावा उन्होंने महिला धर्म प्रचारकों के लिए पृथक से 'पीढि़यों' की स्थापना की। गुरु अमरदास ने समाज सुधार की ओर विशेष ध्यान दिया था। बताया जाता है कि जब मुगल बादशाह अकबर गुरु दर्शन हेतु गोइंदवाल साहिब आया, तो उसने भी पंगत में बैठकर लंगर छका था। उन्होंने सती प्रथा को समाप्त करने में भी विशेष भूमिका निभाई थी।
मौत
महान प्रबंधक, समाज सुधारक और तेजस्वी व्यक्तित्व वाले श्री गुरु अमरदास जी का 1 सितंबर 1574 को 95 साल की आयु में निधन हो गया।