महिला दिवस पर काहे की बधाई जब उन पर वीर्य भरा गुब्बारा फेंकते हैं

By संज्ञा पाण्डेय | Mar 07, 2018

पिछले साल महिला दिवस पर एक पुरुष मित्र ने पूछा कि मुझे क्या तोहफा मिला, मैंने आश्चर्य से सवाल किया कि तोहफा कैसा तो उन्होंने कहा महिला दिवस का, क्योंकि मैंने तो अपनी पत्नी को नेकलेस गिफ्ट किया। उनका ये सवाल मुझे सोच में डाल गया कि महिला दिवस का तोहफे से क्या लेना देना।

पिछले लगभग 100 सालों से पूरा विश्व 8 मार्च को महिला दिवस के रूप में मनाता रहा है, जिसकी शुरुआत तो 1909 में अमेरिका में ही हो गई थी किन्तु 8 मार्च का दिन 1917 में रूस की महिलाओं ने चुना। तब से ले कर अब तक हर साल 8 मार्च का दिन महिलाओं के लिए सुनिश्चित माना जाता है, पर सवाल यह है कि क्या ये एक दिन महिलाओं की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए बहुत है? खास तौर पर भारत जैसे देश में जहाँ महिलाएं आज़ादी के 70 साल बाद भी दोयम दर्जा ही रखती हैं।

 

भारत में आज भी लिंगानुपात अंतराष्ट्रीय मानकों से बहुत पीछे है, 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 पुरुषों पर केवल 940 महिलाएं ही हैं, जन्म के अधिकार के बाद शिक्षा का अधिकार भी आधी आबादी को पूरी तरह नहीं मिल पाया है, जहाँ कुल जनसंख्या के 82.14% पुरुष शिक्षित है वहीं महिलाओं में ये प्रतिशत 65.46% ही है। इसी प्रकार भारत में महिलाओं की कार्यक्षेत्र में भागीदारी भी बहुत कम है, शहरी क्षेत्रों में 25 से 54 वर्ष की केवल 26-28% महिलायें ही कामकाजी हैं, ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति भी इससे बहुत बेहतर नहीं है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा के बढ़ता स्तर भारत के लिए चिंताजनक विषय बना हुआ। देश की राजधानी दिल्ली में तो हालत बद से बतर बन गए हैं और इसे रेप कैपिटल कहा जाने लगा है। नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2018 के शुरूआती 3 महीनों में बलात्कार की संख्या लगभग 240 रही है। घरेलू हिंसा, दहेज़ उत्पीड़न, छेड़खानी, कार्यस्थल पर यौन शोषण भी बढ़ते ही जा रहे हैं। अभी हाल में दिल्ली एक बस में पुरुष ने लड़की के सामने अश्लील हरकतें कीं और बस में बैठे लोगों ने इसका विरोध नहीं किया। उसी प्रकार दिल्ली में होली के समय एक लड़की के ऊपर वीर्य से भरा गुब्बारा फेका गया, ये सारी घटनायें महिलाओं के प्रति समाज का व्यवहार दिखाती हैं और साथ ही लोगों की घिनौनी सोच भी बताती हैं।

 

जहाँ एक और महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है और वो बराबरी का दर्जा लेने के लिए लड़ रही हैं वही दूसरी और महिला दिवस के नाम पर लगातार बाजारीकरण बढ़ता जा रहा है। गूगल पर एक क्लिक में ही शॉपिंग के लिए तमाम लुभावने ऑफर दिखते हैं जो विशेष रूप से महिला दिवस के लिए लाये गए हैं, क्या महिला की प्रसन्नता केवल शॉपिंग और तोहफों में ही है और अगर है भी तो महिला दिवस में कोई सामान खरीद कर देने की जगह उन्हें सम्मान दीजिये, बराबरी का स्थान दीजिये और उनकी हक़ की लड़ाई में उनका साथ दीजिये।

 

तो इस बार महिला दिवस पर किसी महिला को बधाई और तोहफा देने से पहले सोचिये कि क्या महिलाओं को मूलभूत अधिकार मिले हैं। भारत में विशेष तौर पर महिला अधिकारों की लड़ाई बहुत लम्बी है और जब तक उन्होंने पूरा हक़ नहीं मिलता तब तक हर रोज महिला दिवस मानते हुए लड़ाई लड़नी है।

 

-संज्ञा पाण्डेय

(लेखिका जेएनयू में शोधरत हैं और महिला मुद्दों पर पठन पाठन करती रही हैं।)

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