क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय हथकरघा दिवस? क्या इससे सुधरेगी बुनकरों की स्थिति?

By नीरज कुमार दुबे | Aug 07, 2018

देशभर में आज राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जा रहा है। यह तीसरा हथकरघा दिवस है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य हथकरघा उद्योग के महत्व एवं आमतौर पर देश के सामाजिक आर्थिक विकास में इसके योगदान के बारे में जागरूकता फैलाना है। 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चेन्नई में पहले राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर ‘भारतीय हथकरघा’ लोगो का अनावरण किया था और कहा था कि हथकरघा गरीबी से लड़ने में एक अस्त्र साबित हो सकता है, उसी तरह जैसे स्वतंत्रता के संघर्ष में स्वदेशी आंदोलन था। प्रधानमंत्री मानते हैं कि खादी और हथकरघा उत्पाद भी वही उत्साह प्रदान करते हैं, जैसा कि मां के प्रेम से प्राप्त होता है। हथकरघा उत्पाद जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण आबादी को रोजगार मुहैया कराते हैं वहीं यह पर्यावरण के अनुकूल भी है।

क्यों मनाया जाता है हथकरघा दिवस

 

2014 में केंद्र में जब मोदी सरकार आई तो बुनकरों की समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया गया और राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का निर्णय किया गया। हथकरघा दिवस मनाने के लिए 7 अगस्त का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि इस दिन का भारत के इतिहास में विशेष महत्व है। उल्लेखनीय है कि घरेलू उत्पादों और उत्पादन इकाइयों को नया जीवन प्रदान करने के लिए 7 अगस्त 1905 को देश में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ था। स्वदेशी आंदोलन की याद में ही 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। प्रधानमंत्री ने 2015 में हथकरघा दिवस की शुरुआत करते हुए कहा था कि सभी परिवार घर में कम से कम एक खादी और एक हथकरघा का उत्पाद जरूर रखें।

 

सरकारी प्रयास क्या रहे?

 

सरकार ने 29 जुलाई, 2015 को राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में अधिसूचित किया था। सरकार का प्रयास है कि गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले और हथकरघा उद्योग का सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्तिकरण किया जा सके। सरकार कहती रही है कि वह बुनकरों की आय बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने उस्ताद योजना के तहत बुनकरों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था कराई जिससे उन्हें तकनीकी रूप से और समृद्ध किया जा सके।

 

यही नहीं, 2015 में जब राष्ट्रीय हथकरघा दिवस की शुरुआत हुई तब कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी ने हथकरघा पर बने परिधानों को लोकप्रिय बनाने और बुनकर समुदाय को मदद पहुंचाने के लक्ष्य के साथ सोशल मीडिया पर ‘आई वियर हैंडलूम’ अभियान की शुरुआत की थी जिसका कई मशहूर हस्तियों ने जमकर समर्थन किया था। इस अभियान के तहत मशहूर हस्तियों ने 'आई वियर हैंडलूम' हैशटैग के साथ हैंडलूम वस्त्र पहनी हुई अपनी तसवीरें भी सोशल मीडिया पर शेयर की थीं।

 

हो रहे हैं कई कार्यक्रम

 

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर आज मुख्य समारोह भले ही असम की राजधानी गुवाहाटी में हो रहा है लेकिन देश भर के विभिन्न शहरों में इस अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किये गये हैं जिनमें हथकरघा उद्योग के प्रति जागरूकता लाने के अलावा बुनकरों को सम्मानित किया जा रहा है। इस दौरान खादी और हथकरघा उद्योग के लिए चल रही सरकारी योजनाओं से भी लोगों को अवगत कराया जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इन योजनाओं का लाभ उठा सकें।

 

बहुत प्राचीन है हथकरघा उद्योग

 

हथकरघा उद्योग प्राचीनकाल से ही हाथ के कारीगरों की आजीविका प्रदान करता आया है। हथकरघा उद्योग से निर्मित सामानों का विदेशों में भी खूब निर्यात किया जाता है। माना जाता है कि इस उद्योग के विभिन्न कार्यों में लगभग 7 लाख व्यक्ति लगे हुए हैं। लेकिन अगर उनकी आर्थिक स्थिति की बात की जाये तो कहा जा सकता है कि तमाम सरकारी दावों के बावजूद उनकी स्थिति दयनीय ही बनी हुई है। हालांकि 2017 में सरकार ने बड़ा फैसला करते हुए कहा था कि देश में जगह जगह स्थापित बुनकर सेवा केंद्रों (डब्ल्यूएससी) पर बुनकरों को आधार व पैन कार्ड जैसी अनेक सरकारी सेवाओं की पेशकश की जाएगी। ये केंद्र बुनकरों के लिए तकनीकी मदद उपलब्ध करवाने के साथ साथ एकल खिड़की सेवा केंद्र बने हैं लेकिन सेवाओं का सही लाभ नहीं मिल पाने की शिकायतें भी बुनकर लगातार करते हैं।

 

- नीरज कुमार दुबे

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