By अनन्या मिश्रा | Sep 11, 2025
आपने अक्सर देखा होगा कि जब भी हम मंदिर में पूजा के लिए जाते हैं, तो जूते-चप्पल बाहर उतार देते हैं। हालांकि कई लोग इस बात पर भी तर्क करते हैं कि विदेशों में लोग जूते पहनकर पूजा करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इससे क्या फर्क पड़ता है। क्या जूते पहनकर पूजा-अर्चना करने से पाप पड़ता है और इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण क्या हैं। हिंदू धर्म में पूजा-पाठ को बहुत पवित्र कार्य माना जाता है।
पूजा-पाठ करने से शारीरिक, मानसिक और आत्मा की शुद्धि के अलावा पवित्रता का बड़ा महत्व होता है। इसी कारण से जूते-चप्पल को मंदिर के बाहर उतारा जाता है। क्योंकि इस दौरान सड़कों पर चलते हुए कई तरह की गंदगी से गुजरते हैं।
ऐसे में मंदिर जैसी पवित्र जगहों पर उस गंदगी को लेकर नहीं जाना चाहिए। इसलिए भी मंदिर के बाहर जूते-चप्पल बाहर उतार दिए जाते हैं। क्योंकि हम मंदिर में बैठकर ध्यान लगाते हैं। इसलिए अगर आप मंदिर के परिसर में जूते-चप्पल पहनकर घूमते हैं। तो बीमारियां फैल सकती हैं। इसलिए मंदिरों में पैर धोने की भी सुविधा होती है। ऐसे में जूते-चप्पल बाहर उतारने से यह मंदिर को अपवित्र और दूषित होने से बचाती है।
वहीं भगवान की शरण में जाने के लिए जरूरी है कि आप सांसारिकता और भौतिकता को छोड़ देना चाहिए। वहीं जब हम मंदिर के बाहर जूते उतारते हैं, तो हम अपने अहंकार को छोड़ते हैं। भारतीय परंपरा में आश्रमों, मंदिरों और घर के पूजा स्थलों में नंगे पैर जाना नम्रता, श्रद्धा और आत्मसमर्पण का प्रतीक है।
जब हम मंदिर में जाते हैं, तो पूजा और ध्यान करने के लिए जमीन पर बैठना होता है। वहीं गहरे ध्यान में उतरने के लिए शरीर का सहज और हल्का होना जरूरी होता है। ऐसे में आप जूते या चप्पल पहनकर उतनी सहजता से नहीं बैठ पाएंगे।
इसलिए हिंदू धर्म में धार्मिक जगहों पर जूते-चप्पलों को बाहर उतारने की परंपरा रखी गई है। ऐसे में जूते पहनकर मंदिर जाना पाप नहीं हैं, लेकिन यह धार्मिक दृष्टिकोण से गलत जरूर है।